अखिलेश का एक साल: थोड़ा हुआ नाम तो कुछ हुए बदनाम

akilesh 2013-3-15लखनऊ। अपनी करिश्माई व्यक्तित्व के सहारे अपार बहुमत हासिल करने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुक्रवार को अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। इस दौरान उनकी उपलब्धि मिली-जुली रही। एक ओर जहां उन्होंने बेरोजगारी भत्ते बांटकर, कन्या विद्याधन योजना चलाकर एवं स्कूल छात्रों के हाथों में लैपटॉप देकर युवाओं को खुश करने की कोशिश की, वहीं इस दौरान राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर उनकी आलोचना भी हुई। कोसीकला व फैजाबाद के दंगे, लखनऊ में क‌र्फ्यू और कुंडा कांड को लोग कैसे भूल सकते हैं।

राज्य में सपा सरकार बनने के साथ ही कई ऐसे मौके आए जब मंत्री व विधायकों को दबंगई करते देखा गया। इसके लिए खुद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को इन्हें नसीहत देने के लिए आगे आना पड़ा। उन्होंने नेताओं को बहुमत का सम्मान करने और विनम्र रहने की सलाह दी। इसके बावजूद लगातार कई ऐसी घटनाएं हुई जिसके कारण सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा।

ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि अखिलेश सरकार के एक साल के कार्यकाल में कुछ खास नहीं हुआ। मुख्यमंत्री के पास यह कहने का पुख्ता आधार है कि उन्होंने चुनाव में किए प्रमुख वादों को पूरा किया है। बेरोजगारी भत्ता बंटने लगा, लैपटॉप बंटने का भी सिलसिला शुरू हो चुका है। कुछ ही महीनों में छात्रों के बीच टैबलेट भी बंटने लगेगा। कन्या विद्याधन और मुस्लिम छात्रों के बीच वजीफा बंटना शुरू हो चुका है। तमाम दूसरे वादों को भी पूरा करने का काम तेजी से चल रहा है। पहले बजट में राज्य में बुनियादों सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर दिया गया है जिससे यूपी के नवनिर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा।

पिछले साल 15 मार्च को जब अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी तो अपेक्षा का घोर दबाव उनके कंधे पर था। अब जब एक साल का कार्यकाल सरकार ने पूरा कर लिया है तो निश्चित रूप से उनके कामकाज जनता की कसौटी पर होंगे।

उपलब्धियां :

-सरकार और जनता के बीच दूरी मिटाने के लिए ‘जनता दर्शन’ कार्यक्रम शुरू किया गया है। पार्टी मुख्यालय में हर रोज एक मंत्री की ड्यूटी लगती है जो जनता से जुड़ी शिकायतों को सुनता है।

-महिलाओं की सुरक्षा के लिए फोन हेल्पलाइन सेवा 1090 की शुरुआत की गई।

-आईएएस और आईपीएस की कमी दूर करने के लिए काफी समय बाद राज्य सेवा से प्रोन्नति हुई।

-राज्य की सरकारी सेवा के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वालों के लिए उम्र सीमा 35 वर्ष से बढ़ाकर 40 वर्ष कर दी गई।

-राज्य में निवेश बढ़ाने के लिए नई औद्योगिक नीति एवं सूचना प्रौद्योगिकी नीति बनाई गई।

-विधायक निधि से गंभीर रोगियों को अनुदान देने की अनुमति मिली।

-समाजवादी एंबुलेंस सेवा की शुरुआत, मरीजों का भर्ती शुल्क माफ, गर्भवती महिलाओं को घर से एंबुलेंस के जरिये अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था आदि।

मुश्किलें :

-एक साल में सांप्रदायिक तनाव की 27 घटनाएं। मथुरा, बरेली, लखनऊ और फैजाबाद में दंगे।

-कुंडा में डीएसपी हत्याकांड में मंत्री राजा भैया का नाम आने के बाद सरकार की किरकिरी हुई।

-बिजली संकट से निजात पाने को शाम को मॉल बंदी और उसके बाद विधायक निधि से विधायकों को गाड़ी खरीदने की अनुमति का फैसला जगहंसाई का सबब बना। इस फैसले को वापस लेने पर अखिलेश की कमजोर सीएम की छवि बनी।

-पार्टी के शीर्ष स्तर से सरकार के कामकाज पर बार-बार अंगुली उठाने, पार्टी के कुछ अन्य बड़े नेताओं के कामकाज में हस्तक्षेप से सत्ता के कई सामानांतर केंद्र होने की धारणा को बल मिला।

-पंडित सिंह, केसी पांडे, नटवर गोयल की कारगुजारियों से सरकार की छवि को धक्का लगा।

-दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना अब्दुल्ला बुखारी की धमकी के बाद कभी उनके दामाद को एमएलसी बनाना और उनके कई और चहेतों को लाल बत्ती देने से यह धारणा बनी कि सरकार दबाव में झुक जाती है।

-कुंभ हादसे के लिए तकनीकी रूप से भले ही केंद्र सरकार जिम्मेदार हो, लेकिन आम लोगों के बीच उप्र सरकार के इंतजामों पर सवालिया निशान लगा।

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