अखिलेश सरकार का एक साल पूरा, क्या खोया क्या पाया

akhilesh yadav 2013-3-15लखनऊ। अखिलेश सरकार ने शुक्रवार को अपना एक साल पूरा कर लिया है। साल के दरम्यान राज्य में हुए कई सांप्रदायिक दंगों और हिंसा की कई बड़ी घटनाओं ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने के वादे पर सवालिया निशान लगाया है। कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार को विपक्ष के हमलों का बार-बार सामना करना पड़ा है। वैसे सरकार का कहना है कि पूर्ववर्ती बसपा सरकार ने राज्य की कानून-व्यवस्था को इतना छिन्न-भिन्न कर दिया था कि उसको दुरुस्त करने में वक्त तो लगेगा ही। सरकार इस बात को लेकर भी खुशी का इजहार कर रही है कि उसने ज्यादातर चुनावी वादों को पूरा कर दिखाया है।

भले ही विपक्ष एक साल के कार्यकाल को पूरी तरह से फेल करार दे रहा हो लेकिन इसकी परवाह किए बगैर शुक्रवार (15 मार्च) को समाजवादी पार्टी जिलों में समारोह आयोजित करेगी। आयोजनों में स्थानीय मंत्री और विधायक मौजूद रहेंगे। इसके बाद, अगले एक हफ्ते तक विधानसभा स्तर पर कार्यक्रम होंगे। इस मौके पर पूरे किए गए चुनावी वायदों और सरकारी उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने का काम किया जाएगा।

सपा प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बताया कि जिला और महानगर अध्यक्षों को कहा गया है कि वह स्थानीय सांसद, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, राष्ट्रीय व राज्य कार्यकारिणी के पदाधिकारियों और प्रकोष्ठों के अध्यक्षों के सहयोग से जिला मुख्यालयों पर समारोह आयोजित करें। सरकार की एक वर्ष की उपलब्धि छपवाकर गांव-गांव तक पहुंचाने का काम किया जाए। अखिलेश सरकार के प्रयासों से पहले वर्ष में ही सपा ने चुनाव के समय जारी घोषणा पत्र के कई वायदे पूरे कर दिए गये हैं।

उपलब्धियां एवं किरकिरी

– एक साल में सांप्रदायिक तनाव की 27 घटनाएं। मथुरा, बरेली, लखनऊ और फैजाबाद के दंगों ने सरकार के माथे पर दाग लगा दिया।

– कुंडा कांड ने सरकार के कानून-व्यवस्था ठीक होने के दावे को छलनी किया। बढ़ती आपराधिक घटनाओं से साख पर सवाल।

– बिजली संकट से निजात पाने को शाम को मॉल बंदी और उसके बाद विधायक निधि से विधायकों को गाड़ी खरीदने की अनुमति का फैसला जगहंसाई का सबब बना। इनकी वापसी से अखिलेश कमजोर सीएम की छवि बनी।

-पार्टी के शीर्ष स्तर से सरकार के कामकाज पर बार-बार अंगुली उठाने, पार्टी के कुछ अन्य बड़े नेताओं के कामकाज में हस्तक्षेप से सत्ता के कई सामानांतर केंद्र होने की धारणा को बल मिला।

– एक वरिष्ठ मंत्री के प्रभार वाला जिला बदलने से इस्तीफे की पेशकश और उसके बाद उनकी जिला बहाली से इस संकेत का जाना कि पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक नहीं।

– मंत्री और मंत्री का दर्जा प्राप्त अन्य नेताओं की कारगुजारियों से सरकार की छवि पर दाग। पंडित सिंह, केसी पांडे, नटवर गोयल के बाद रही सही कसर कुंडा कांड में राजा भैया का नाम आने से पूरी हुई।

– दिल्ली के शाही इमाम मौलाना बुखारी की हर बार धमकी के बाद कभी उनके दामाद को एमएलसी बनाना और उनके कई और चहेतों को लाल बत्ती देने से यह धारणा बनी कि सरकार दबाव में झुक जाती है।

– कुंभ हादसे के लिए तकनीकी रूप से भले ही केंद्र सरकार जिम्मेदार हो लेकिन आम लोगों के बीच उप्र सरकार के इंतजामों पर सवालिया निशान लगा।

उपलब्धियां

– बेरोजगारी भत्ता, लैपटाप, कन्या विद्याधन बंटना शुरू होने से सरकार के पास यह कहने का मौका जो कहा, वह किया। इन वादों पर अमल से युवाओं में खासा उत्साह।

– महिलाओं की सुरक्षा के लिए फोन हेल्पलाइन सेवा ‘1090’ शुरू। महिलाओं के लिए यह बड़ी ताकत साबित हो रही है।

– सरकार तक पहुंच आसान। सीएम ‘जनता दर्शन’ करते हैं जबकि पार्टी मुख्यालय में हर रोज जनता की समस्याओं को सुनने के लिए एक मंत्री की ड्यूटी रहती है।

– इस साल के बजट में कोई नई लोकलुभावन घोषणा करने के बजाय बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। अगर जैसा सोचा गया है, वैसा ही हुआ तो विकास नजर आएगा।

– आइएएस, आइपीएस की कमी को दूर करने के लिए काफी समय बाद राज्य सेवा से प्रोन्नति हुई। प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने की उम्र 35 वर्ष से बढ़ाकर 40 वर्ष की, इससे युवाओं के लिए सरकारी नौकरी में आने के अवसर बढ़े।

– निवेश को बढ़ाने के लिए खुद मुख्यमंत्री के स्तर से पहल। निवेश का माहौल तैयार करने को नई औद्योगिक नीति, सूचना एवं प्रौद्योगिकी नीति बनाई गई।

– विधायक निधि से गम्भीर रोगियों को अनुदान देने की अनुमति। इससे गरीब लोगों के लिए सरकारी स्तर से आर्थिक मदद का नया रास्ता खुला क्योकि विधायक तक पहुंच आसान होती है।

– एनआरएचएम घोटाले की कालिख साफ करने को अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की कोशिश। समाजवादी एम्बुलेंस सेवा भी शुरू। सभी मरीजों का भर्ती शुल्क भी माफ।

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