कोयले और स्टील पर गठित स्टैंडिंग कमेटी ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 1993 से लेकर 2008 के बीच आवंटित किए गए सभी कोयला ब्लॉक गैरकानूनी हैं। जिन ब्लॉकों में अभी उत्पादन नहीं शुरू हुआ है उनको रद करने की भी सिफारिश रिपोर्ट में की गई है।
कोयला ब्लॉक
* ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य एवं दक्षिण भारत के हिस्सों में पाए जाने वाले कोयले को ब्लॉक में विभाजित कर उनके खनन को लीज पर दिया जाता है।
* 1973 में सरकार ने कोयला खनन पर अधिकार किया। 1976 में निजी स्टील निर्माताओं को कोयले की खदानें खरीदने की अनुमति दी गई। 1993 में इस तरह की अनुमति बिजली कंपनियों को भी दी गई।
* 1993-2005: 41 निजी और 29 सरकारी कंपनियों को कोयला खनन के लाइसेंस दिए गए।
* सरकार ने महसूस किया कि बढ़ती मांग को कोल इंडिया पूरा नहीं कर पा रहा है लिहाजा 2006-09 के बीच 75 निजी ब्लॉक निजी क्षेत्र और 70 सरकारी कंपनियों को दिए गए।
आवंटन का तरीका
* 1992 में गठित स्क्रीनिंग कमेटी के आधार पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कोयला मंत्रालय सरकारी और निजी कंपनियों को लाइसेंस देता रहा।
* 2005, 2006 और 2008 में लाइसेंस देने के नियमों में परिवर्तन किया गया।
कैग की रिपोर्ट
* 17 अगस्त 2012 को नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक [कैग] ने कोयला ब्लॉक आवंटन पर अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। कैग ने कहा कि आवंटन के तरीके में पारदर्शिता नहीं बरती गई। नियमों में फेरबदल किए गए। मूल्यांकन प्रणाली में खामियां पाई गई। कोयला संपन्न राज्यों के मंत्रियों एवं मुख्यमंत्रियों ने निजी कंपनियों के लिए लॉबिंग की। इससे निजी कंपनियों को लाभ मिला।
* इस रिपोर्ट के बाद संसद में 21 अगस्त को भाजपा ने हंगामा खड़ा करते हुए प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगा।
* 27 अगस्त को प्रधानमंत्री ने सरकार का बचाव करते हुए सदन में बयान दिया।
* तीन सितंबर को अंतर-मंत्रालयी समूह ने 58 ब्लॉकों से संबंधित कंपनियों से खनन में देरी की वजह पूछी।
* चार सितंबर को सीबीआई ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता समेत 10 शहरों के 30 ठिकानों पर छापा मारा।
सुप्रीम कोर्ट में मामला
* उसी महीने आवंटित कोल ब्लॉकों को रद करने की मांग करती हुई एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई।
* 13, मार्च 2013 को कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि वह अपनी रिपोर्ट सीधे कोर्ट में पेश करे। साथ ही सीबीआई निदेशक से 26 अप्रैल तक इस बात का हलफनामा दाखिल करने को भी कहा कि उन्होंने कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट को राजनीतिक आकाओं से साझा नहीं किया है। यद्यपि इस तरह की खबरें आ रही हैं कि कोर्ट में पेश करने से पहले सीबीआई ने रिपोर्ट को कानून मंत्री से साझा किया था और उनकी सलाह पर फेरबदल भी किया था।