शानदार मुहिम: बेजुबान जो इंसान पर हुए कुर्बान

indian-veterinary-research-institute-works-for-animal-बरेली। विश्व प्रयोगशाला जीव दिवस उन जीव-जंतुओं की खातिर मनाया जाने वाला दिन जो इंसानी जिंदगी महफूज रखने के लिए खुद कुर्बान हो गए। मानवीय जरूरतों के प्रयोग में करोड़ों जीव-जंतु हर साल जान गंवा देते हैं। इसका अहसास आम लोगों को तो नहीं बल्कि उन वैज्ञानिकों को है, जो प्रयोग में शामिल होते हैं। इसी वजह से ऐसे जीव-जंतुओं की याद में हर साल यह दिन मनाया जाता है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान यानी आइवीआरआइ भी उन्हीं में एक है। ये पशुओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए वेबसाइट के जरिए मुहिम चलाने में जुटा है।

20 करोड़ जीव-जंतुओं की कुर्बानी

व‌र्ल्ड डे फॉर लैबोरेट्री एनीमल्स मनाने की शुरूआत 1979 नेशनल एंटी वाइवीसेक्शन सोसायटी ने की। आइवीआरआइ की वेबसाइट बताती है कि करीब 20 करोड़ जीव-जंतु हर साल अनुसंधान संबंधी प्रयोग के दौरान मार दिए जाते हैं। इनमें 15 करोड़ पर टेस्ट किया जाता है, जबकि पांच करोड़ से उत्पाद बन जाते हैं।

2005 में सबसे ज्यादा मौतें

वैज्ञानिक शोध के दौरान 2005 में 16 करोड़ जीव चीन में इंसानों की खातिर कुर्बान हो गए। जबकि यूरोपीय संघ के देशों में 12 करोड़ जीवों को मारा गया। जापान में 17 करोड़ से ज्यादा जीव मार डाले। इस श्रेणी में अमेरिका सबसे ऊपर है। भारत की पेटा संस्था का दावा है कि नेशनल सेंटर फॉर लैबोरट्री एनीमल साइंस में हर साल 50 हजार जीवों की सप्लाई की जाती है। यहां से देश के अनुसंधान संस्थानों, दवा कंपनियों और शैक्षिक संस्थानों में उन्हें भेजा जाता है। आइवीआरआइ निदेशक प्रोफेसर गया प्रसाद का कहना है कि जीव प्रजातियों को शोध एवं विकास के प्रयासों के हर चरण में प्रयोग किया जाता है। खोज, विकास, सेफ्टी टेस्टिंग, क्लीनिकल ट्रायल से लेकर मैन्यूफैक्चरिंग में उनको इसलिए प्रयोग किया जाता है। उनका बायोलॉजिकल सिस्टम, आनुवांशिक संरचना आदि इंसान की संरचना के मेल खाता है। ऐसे जीवों के साथ ज्यादा संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है।

आइवीआरआइ इस मामले में खासी सतर्कता बरतता है। यहां आमतौर पर चूहों को भी प्रयोग में लाया जाता है या फिर किन्हीं जीवों के पोस्टमार्टम से अनुसंधान में मदद मिलती है।

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