मई दिवस: मजदूरों की चट्टानी एकता का प्रतीक

international-labour-day-the-inside-storyनई दिल्ली। एक मई यानी अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस। दुनिया भर के मजदूरों के लिए अपनी एकता प्रदर्शित करने का दिन। इस दिन दुनिया भर में मजदूर इकट्ठा होकर पूंजीवादी लूट, शोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते हैं। वे अपने अधिकारों की रक्षा का संकल्प लेते हैं। पहली मई का दिन हर वर्ष जहां मजदूरों के लिए नया जोश लेकर आता है, वहीं पूंजीपतियों के दिलों में खौफ पैदा करता है।

सन् 1750 के आसपास यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई जिसके परिणामस्वरूप मजदूरों की हालत दयनीय होती चली गई। उनसे 12 से 18 घंटे तक काम लिया जाने लगा। इस बीच न कोई अवकाश, न कोई सुविधा। ऐसे अनेक कारण रहे जिसकी वजह से मजदूरों की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया। उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया। इसी तरह यह आंदोलन अमेरिका, सोवियत रूस में भी फैल गया। यहां भी मजदूरों ने अपना हक मांगना शुरू कर दिया।

उन्नीसवीं सदी के दूसरे व तीसरे दशक में अपने हकों की लड़ाई को लेकर मजदूरों खूब जागरुकता आ चुकी थी। इस दौरान अमेरिका में एक ‘मैकेनिक्स यूनियन ऑफ फिलाडेल्फिया’ नामक मजदूर संगठन गठित हुआ। यह संगठन संभवत: दुनिया की पहली ट्रेड यूनियन मानी जाती है। इस यूनियन के तत्वाधान में मजदूरों ने 1827 में एक बड़ी हड़ताल की और काम के घंटे 10 करने की मांग की। इसके बाद इस मांग ने बड़े आंदोलन का रूप ले लिया। यह कई वर्षो तक चला। आखिरकार वॉन ब्यूरेन की संघीय सरकार को इस मांग पर मुहर लगानी पड़ी। इस सफलता ने मजदूरों में एक नई ऊर्जा का संचार किया। कुछ दशकों बाद आस्ट्रेलिया के मजदूरों ने संगठित होकर ‘आठ घंटे काम और आठ घंटे आराम’ के नारे के साथ संघर्ष शुरू कर दिया। इसी तर्ज पर अमेरिका में भी मजदूरों ने 1866 में स्थापित नेशनल लेबर यूनियन के तले ‘काम के घंटे आठ करो’ आंदोलन शुरू कर दिया। वर्ष 1868 में इस मांग के ही अनुरूप एक कानून अमेरिकी कांग्रेस ने पास कर दिया।

‘मई दिवस’ मनाने की शुरुआत 1866 में हेमार्केट घटना के बाद हुई। दरअसल, शिकागो के इलिनोइस (अमेरिका) में तीन दिवसीय हड़ताल का आयोजन किया गया था। इसमें 80 हजार से ज्यादा मजदूरों, कारीगरों, छोटे व्यापारियों और अप्रवासी लोगों ने हिस्सा लिया। हड़ताल के तीसरे दिन पुलिस ने मेकॉर्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी संयंत्र में घुसकर शांतिपूर्ण हड़ताल कर रहे मजदूरों पर गोली चला दी जिसमें छह मजदूर मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। इस घटना के विरोध में अगले दिन 4 मई को हेमार्केट स्क्वायर में एक रैली का आयोजन किया गया। पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी, एक अज्ञात हमलावार ने पुलिस दल पर बम फेंक दिया। इस विस्फोट में एक पुलिसवाले की मौत हो गई। इसके बाद मजदूरों और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष शुरू हो गया। इस टकराव में सात पुलिसकर्मी और चार मजदूर मारे गए तथा दर्जनों घायल हो गए।

इस घटना के बाद कई मजदूर नेताओं पर मुकदमे चलाए गए। अंत में 11 नवंबर 1887 को न्यायाधीश गैरी ने कंपकंपाती आवाज में चार मजदूर नेताओं को मौत और कई अन्य को लंबी अवधि की कारावास की सजा सुनाई। इस घटना को यादगार बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1888 में अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर ने इसे मजदूरों के बलिदान को याद करने और अपनी एकता प्रदर्शित करते हुए आवाज बुलंद करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

इसके साथ ही 14 जुलाई 1888 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में विश्व भर के समाजवादी भारी संख्या में इकट्ठा हुए और अंतरराष्ट्रीय समाजवादी संगठन की नींव रखी। इस अवसर पर संयुक्त प्रस्ताव पारित करके विश्वभर के मजदूरों के लिए काम के घंटे आठ तक सीमित करने और पूरी दुनिया में एक मई ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इसके बाद धीरे-धीरे सभी देशों में एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। भारत में मई दिवस मनाने की शुरुआत 1923 से हुई।

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