कर्नाटक में सियासत के समीकरण

B S Yeddyurappaनई दिल्ली। कर्नाटक की राजनीति में जातीय समीकरणों की अहम भूमिका होती है। राज्य की प्रमुख जातियों, उनके प्रभाव और क्षेत्रीय संतुलन पर एक नजर:

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लिंगायत: राज्य का सबसे बड़ा समुदाय है। 12वीं सदी के संत बासवन्ना के सुधारवादी आंदोलन से इस समुदाय की उत्पत्ति हुई है। राज्य के उत्तरी हिस्से में वर्चस्व रखने वाले इस समुदाय की पूरे प्रदेश में उपस्थिति है। ये शिव के उपासक हैं और परंपरागत रूप से कृषि और व्यापार से जुड़े हैं। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इसी के समर्थन के चलते वह पिछली बार भाजपा को सत्ता में लाने में कामयाब रहे।

वोक्कालिगा: दक्षिण कर्नाटक में इस जाति का प्रभुत्व है। बड़े भू-भाग पर कब्जा रखने वाली और खेती-बाड़ी करने वाली इस जाति पर जनता दल (एस) पार्टी की पकड़ है। इस पार्टी के मुखिया एचडी देवगौड़ा खुद भी वोक्कालिगा हैं। कांग्रेस भी इस जाति पर प्रभाव बनाने की कोशिश करती रही है

कुरुबा: यह जाति पूरे राज्य में फैली हुई है। यह जाति पिछड़े वर्ग से संबंध रखती है और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्दरमैया कुरुबा जाति से ही हैं।

क्षेत्रीय संतुलन: 1956 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से पहले कर्नाटक के अलग-अलग हिस्सों को विभिन्न नामों से जाना जाता था:

पुराना मैसूर क्षेत्र: दक्षिण कर्नाटक के बड़े हिस्से को कहा जाता था। कर्नाटक राज्य के अस्तित्व में आने से पहले इसको मैसूर के नाम से जाना जाता था।

हैदराबाद-कर्नाटक: राज्य के उत्तरी हिस्से के बेल्लारी, रायचूर, गुलबर्ग, कोप्पल, बीदर और यादगीर निजाम के शासन के दौरान हैदराबाद का हिस्सा थे।

मुंबई-कर्नाटक: उत्तरी हिस्से के बेलगाम, धारवाड़ और आस-पास के हिस्से आजादी के पहले बांबे प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे।

तटीय कर्नाटक: पश्चिमी तट के दक्षिण कन्नड़, उत्तरी कन्नड़ और उडुपी इस हिस्से में शामिल है। भाजपा का गढ़ माना जाता था लेकिन पिछले साल नगरपालिका के चुनाव में यहां से पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया।

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