कर्नाटक में जयजयकार, सुप्रीम कोर्ट से पड़ी फटकार

suprem courtनई दिल्ली। बुधवार दो बड़े फैसलों का दिन था। पहला कर्नाटक में जनता जनार्दन को देना था और दूसरा देश की शीर्ष अदालत को। कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को खुशी प्रदान की और वह उससे फूली भी नहीं समाई, क्योंकिउसने अपनी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भाजपा को करारी मात देते हुए तीसरे स्थान पर पटक दिया था, लेकिन दोपहर ढलते-ढलते सुप्रीम कोर्ट में उसकी उम्मीदों और साख का सूरज ढलने लगा।

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कोयला घोटाले की सीबीआइ जांच में छेड़छाड़ के मामले की सुनवाई कर रही तीन सदस्यीय पीठ ने इस जांच एजेंसी के साथ-साथ अटॉर्नी जनरल, एडिशनल अटॉर्नी जनरल, कानून मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिवों को जमकर लताड़ लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ और सरकार के खिलाफ इतनी कठोर टिप्पणियां कीं कि कांग्रेसप्रवक्ताओं के लिए मुंह छिपाना मुश्किल हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी लाग-लपेट कहा कि सरकार ने सीबीआइ की जांच रपट में इस हद तक छेड़छाड़ की है कि उसकी मूल आत्मा ही बदल गई। शीर्ष अदालत के कठोर रुख से कांग्रेस की यह उम्मीद तो ध्वस्त हुई ही कि शायद कानून मंत्री अश्विनी कुमार के लिए बचाव की कोई संकरी सी गली निकल आए, साथ ही उसके लिए प्रधानमंत्री का बचाव करना भी मुश्किल हो गया।

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कोयला घोटाले की जांच की स्थिति रिपोर्ट कानून मंत्री और अधिकारियों को दिखाए जाने और उनके कहने पर रिपोर्ट में बदलाव किए जाने पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई। अब कोर्ट सीबीआइ को सरकार के चुंगल से मुक्त कराने और उसे स्वायत्त जांच एजेंसी बनाने पर अडिग हो गया है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या उसके पास सीबीआइ की स्वायत्तता का कोई कानून विचाराधीन है। बेहतर हो कि सरकार 10 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई तक इस बावत कानून ले आए। साथ ही कोर्ट ने सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा को आदेश दिया है कि वह कोयला घोटाले की जांच या स्थिति रिपोर्ट भारत सरकार के किसी भी मंत्री, कानून मंत्री, सरकारी अधिकारी, सीबीआइ के निदेशक अभियोजन, विधि अधिकारी या किसी अन्य से साझा नहीं करेंगे।

ये निर्देश न्यायमूर्ति आरएम लोधा, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर व न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पीठ ने कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताओं के मामले में सुनवाई के दौरान दिए। पीठ ने देश की प्रमुख जांच एजेंसी की स्वायत्तता पर चिंता जताते हुए कहा कि सीबीआइ तो पिंजड़े के तोते की तरह व्यवहार कर रही है। उसे अपनी स्वायत्तता के लिए उठना चाहिए। वह किसी से जांच रिपोर्ट साझा कैसे कर सकती है।

कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ की स्वायत्तता पर 15 साल पहले विनीत नारायण का फैसला आया था। क्या उसके बाद सीबीआइ को स्वायत्त बनाने के लिए कुछ किया गया। सीबीआइ को सारे दबावों से मुक्त होकर रिपोर्ट साझा करने से मना कर देना चाहिए था। कोयला मंत्रालय व पीएमओ के अधिकारियों को स्थिति रिपोर्ट का मसौदा दिखाए जाने और उनके कहने पर बदलाव करने पर नाराजगी नाराजगी जताते हुए कहा कि सीबीआइ क्या सबके लिए खुली है कि कोई भी आए जांच रपट देखे अपने सुझाव देकर उसमें बदलाव करा दे।

कोर्ट ने पूछा कि आखिर इन अधिकारियों को रपट क्यों दिखाई गई, जबकि इन्हीं के विभागों के खिलाफ जांच चल रही है। जब सीबीआइ ने कहा कि मामला तकनीकी था, इसलिए अधिकारियों से चीजें समझी गई। इस पर पीठ ने कहा कि सीबीआइ पूछताछ करती है या फिर उसी विभाग के अधिकारियों से केस समझेगी। सीबीआइ ऐसा कब से करने लगी। ऐसा लग रहा है कि सीबीआइ के कई मालिक हैं। सीबीआइ को स्वतंत्र-स्वायत्त और दबाव मुक्त बनाना जरूरी हो गया है।

पीठ ने अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती से कहा कि वह सरकार से पूछ कर बताएं कि क्या सरकार के पास सीबीआइ को स्वायत्त करने का कोई कानून विचाराधीन है। अगर सरकार सीबीआइ को स्वायत्त करने की दिशा में कदम उठाती है तो कोर्ट इस बारे में कुछ नहीं करेगा अन्यथा यह काम कोर्ट को करना पड़ेगा। पीठ ने सरकार से इस बावत 3 जुलाई तक हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने कहा कि अच्छा तो होगा कि सरकार अगली सुनवाई से पहले इस बारे में कानून ले आए। अगर इस दौरान संसद सत्र नहीं होता तो उसके और भी रास्ते हैं। शायद कोर्ट का इशारा अध्यादेश की ओर था।

इसके अलावा कोर्ट ने स्थानांतरित किए गए जांच अधिकारी रविकांत मिश्रा को दोबारा सीबीआइ में लाने का आदेश दिया। साथ ही कहा कि कोयला घोटाले की जांच में लगी 33 सदस्यीय टीम का कोई भी अधिकारी कोर्ट से पूछे बिना स्थानांतरित नहीं किया जाएगा। न ही कोर्ट से पूछे बगैर जांच की स्थिति रिपोर्ट विशेष अदालत को दी जाएगी। कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या कानून मंत्री सीबीआइ से जांच रिपोर्ट मंगा कर देख सकते हैं और उसमें बदलाव करा सकते हैं।

पीठ ने कहा कि विनीत ंनारायण केस में ऐसा नहीं कहा गया है। सीबीआइ जांच एजेंसी है। उसे बदलाव करने से मना कर देना चाहिए था। इसके लिए अलग से आदेश की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने सीबीआइ को 5 जुलाई तक अगली स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।

फैसले के खास बिंदु

-केंद्र सरकार 10 जुलाई से पहले सीबीआइ को बाहरी दबाव व हस्तक्षेप से मुक्त करने वाला कानून लाए।

-आइबी में स्थानांतरित रवि कांत को जांच सौंपने के लिए तत्काल कदम उठाए केंद्र व सीबीआइ।

-सीबीआइ अपने 33 सदस्यीय दल व निदेशक के अलावा किसी से साझा न करे जांच की प्रगति रिपोर्ट

-जांच एजेंसी कोयला घोटाले की प्रगति रिपोर्ट कानून मंत्री, अन्य केंद्रीय मंत्रियों, सीबीआइ के वकील या सीबीआइ के अभियोजन विभाग से भी साझा न करे।

सुप्रीम कोर्ट की खरी-खरी

-सीबीआइ बनी कई मालिकों की भाषा बोलने वाला तोता

-जांच एजेंसी का काम सरकारी अधिकारियों से बात करना नहीं

-सच का पता लगाने के लिए पूछताछ है जांच एजेंसी का काम

-जांच रिपोर्ट सरकार से साझा करने वाली प्रगति रपट नहीं

-मामला दर्ज करने के बाद नहीं हुई जांच में खास प्रगति

-सीबीआइ सरकारी दबाव के सामने खड़ा होना सीखे

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