एक था नानाराव पेशवा महल

nana rao peshwa palaceकानपुर। वह ऐतिहासिक दिन 10 मई ही था, जब भारत की आजादी के लिए पहली चिंगारी भड़की थी। 1857 में मेरठ छावनी में मंगल पांडेय ने देश की आजादी के लिए हल्ला बोला और अमर हो गए। यह निशानियां मेरठ में सहेजी गई हैं लेकिन दुर्भाग्य यह कि क्रांति आंदोलन में अहम रहे कानपुर में ‘बंधक’ नानाराव पेशवा के महल तक को छुड़ाया तक नहीं जा सका। धीरे-धीरे महल ढह रहा है। यही हाल रहा तो एक दिन लोग कहेंगे कि यहां था नानाराव पेशवा का महल।

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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बिठूर की अहम भूमिका थी। नानाराव पेशवा के महल में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध के गुर सीखे थे। यहां क्रांतिकारी बाबा राघवदास द्वारा बनवाया गया ध्वजस्थल और कुआं उनके होने की प्रामाणिकता का एहसास दिलाता है। ध्वज स्थल पर लगा पत्थर गवाह है कि वहां पर नाना साहेब के नेतृत्व में तात्याटोपे, अजीमुल्ला खां व नानाराव ने बैठकें की थीं। सशस्त्र क्रांति में मुंह की खाने के बाद बौखलाए विदेशी हुक्मरानों ने यहां तोपों से हमला कर दिया। महल के अवशेष ब्रितानिया हुकूमत की बर्बरता की कहानी बयां कर रहे हैं। दरअसल पर्यटन विभाग का अंग राजकीय पुरातत्व विभाग महल को अपने संरक्षण में लेकर सहेजना चाहता था लेकिन टाउन एरिया के पूर्व चेयरमैन रहे सुरेंद्र पाल सिंह लाली ने पूर्वजों की जमीन होने का दावा कर दिया और अदालत चले गए।

उन्हें स्थगनादेश मिल गया और महल के अवशेष व जमीन को उन्होंने कंटीले तारों से घिरवा दिया। आज वह जंगल बन चुका है। करीब दस वर्ष पूर्व शहीदों की याद में पर्यटन निदेशालय ने बिठूर को विकसित करने की योजना बनाई। इसके बाद वहां नानाराव पेशवा स्मारक पार्क विकसित हुआ, लेकिन मामला न्यायालय में विचाराधीन होने की वजह से प्राचीन महल को पार्क से बाहर छोड़ना पड़ा। ध्वजस्थल और कुआं ही पार्क का हिस्सा हैं लेकिन इन्हें भगवान भरोसे ही छोड़ दिया गया है। महल के दूसरे गेट के पास खड़े होने पर दाहिनी ओर प्राचीन पेशवा महल के अवशेष हैं। लोग पास जाकर देखना चाहते हैं लेकिन पहुंच नहीं पाते हैं। फिलहाल पेशवा स्मारक स्थल पर कुआं बंद करा दिया गया और ध्वजारोहण वाले स्थल को भी भूल गए हैं। अब तो प्रभावी पैरवी न होने की वजह से कोई नतीजा तक नहीं निकल रहा है।

जलियावाला जैसी ज्वाला भी न जली

नानाराव पेशवा स्मारक पार्क ध्वज स्थल पर अनवरत ज्वाला जलवाने के प्रयास हुए थे। इंडियन आयल गैस देने को भी राजी हो गया था लेकिन बाद में योजना अधूरी रह गई। बिठूर महोत्सव समिति के सचिव नीरज श्रीवास्तव ने कहा कि अब तो ज्वाला जलने की आस भी टूटती दिख रही है।

म्यूजियम बिठूर शिफ्ट, पर बंद

गांधी भवन फूलबाग स्थित प्राचीन संग्रहालय को बिठूर के स्मारक पार्क में स्थानांतरित किया गया। उसे उत्तर प्रदेश पर्यटन विकास निगम को चलाना था लेकिन वह भी नहीं चला। वहां ताला ही पड़ा रहता है।

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