रोहतास। रोहतास की पहाड़ियों में विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध छेड़ रखा था। उनकी गतिविधियों को लेकर प्रशासन परेशान रहा। 13 जनवरी, 1858 को सासाराम के डिप्टी मजिस्ट्रेट ने सूचना दी कि अमर सिंह मिर्जापुर में हैं। संभवत: वह रोहतास को कब्जे में लेने की तैयारी कर रहे हैं। मिर्जापुर से सैनिक तालमेल के लिए सासाराम में कोई टुकड़ी नहीं है- न ही देसी और न ही यूरोपियन। इस सूचना पर कैप्टन रैटे को सासाराम लौटने का आदेश हुआ ताकि रोहतास पहाड़ी को विद्रेाहियों से मुक्त कराने में मदद मिल सके।
कैप्टन रैट्रे को 23 जनवरी, 1858 को रोहतास कूच किया। वह 8 फरवरी को रोहतास पहुंचा और कोलन मिशेल को रोहतास की पहाड़ियों को विद्रोहियों से मुक्त करने का आदेश दिया। महारानी की 54 वीं पैदल सेना, रॉयल आर्टिलरी के कुछ सैनिकों तथा बंगाल पुलिस की एक टुकड़ी उसके साथ थी। इस बीच,सासाराम के जमींदारों ने रोहतास जंगल खाली कराने के लिए सहयोग करने का आग्रह किया और अपने 500 लोगों को सहयोग के लिए मुहैया कराने की इजाजत मांगी। जमींदारों को इसकी अनुमति दे दी गई। रैटे रोहतास की पहाड़ी पर 12 फरवरी को पहुंचा और उसने पाया कि किला पूरी तरह खाली है। तब उसके साथ दो सौ जवान थे। वह पुलिस बटालियन हेडक्वार्टर लौट आया।
लेकिन कैप्टन रैटे ने कैमूर की पहाड़ियों में अपना अभियान जारी रखा। रोहतास की पहाड़ियों में विद्रोहियों के खिलाफ अभियान चलाने में एक इंडिगो प्लांटर बिंघम ने अपनी सक्रिय भूमिका निभायी थी। डगलस ने उसे सिविल अधिकारी और मजिस्ट्रेट बना दिया था। चैनपुर के जमींदारों के साथ मिलकर वह विद्रोहियों के दमन के लिए सक्रिय था। अभियान के दौरान रोहतास में 35 वीं रेजिमेंट के 38 जवान, 23 अप्रैल 1958 को खाई में गिर जाने से मारे गए। मरने वालों में कैप्टन एजी ग्रांट भी शामिल था।
पीर बख्श की गिरफ्तारी
रोहतास की पहाड़ियों के साथ शाहाबाद के मैदानी इलाकों में भी लड़ाई जारी थी। संदेश में पुलिस ने पीर बख्श को गिरफ्तार किया। पीर बख्श की कार्रवाई को राज्य के खिलाफ विद्रोह की श्रेणी में रखा गया था। पीर बख्श 24 जनवरी, 1858 को संदेश में सोन नदी के दूसरे किनारे से पहुंचे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया और 23 अगस्त, 1858 को दस सालों की सजा दी गयी। पीर बख्श के बारे में अन्य कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
पीर बख्श की चर्चा पटना के कमिश्नर फगरुसन ने 1958 की पुलिस रिपोर्ट में की है। इस तरह की रिपोर्ट सरकार ने पहली बार तैयार करायी थी।
शेखपुरा के पठान
अमीर खां और कासिम अली 1857-58 के विद्रोह में शामिल हो गये थे। सोन नदी के दूसरे तरफ मौजा शेखपुरा के पठान डकैतियों को अंजाम देते थे। अंग्रेजों ने अमीर खां और कासिम अली को पकड़ कर फांसी पर लटका दिया गया था।
विद्रोहियों का पलटवार
चौकी सरैजा के चौकीदार सुधीन मंडल को विद्रोही पकड़ कर मौजा उत्तिमपुर लेते गये। 31 मई, 1858 को विद्रोही उसे धनसोई से राजपुर ले गये और फिर मार डाला। नासिरीगंज पुलिस चौकी से विद्रोहियों ने 6 जून, 1858 को बरकंदाज मोहम्मद नूकी को मोहिनी के पास पकड़ कर मार डाला। नूर अली ठेका बरकंदाज था। 3 सितम्बर, 1858 को विद्रोहियों ने इसे कायमनगर के पास मारा। तेग अली चपरासी था। जगदीशपुर में वह मजिस्ट्रेट के साथ था। वह अचानक लापता हो गया। समझा गया कि उसे विद्रोहियों ने मार डाला।
जॉन स्मेल पर हमला
विद्रोहियों के खिलाफ अभियान के बीच सासाराम के गांव में जॉन स्मेल नामक एक अंग्रेज पर विद्रोहियों ने हमला कर दिया। पदारथ सिंह और भंजन सिंह सहित कई लोग इस मामले के अभियुक्त बनाये गये। वे सासाराम के दाहोरा गांव के रहने वाले थे। शाहाबाद के सेशन जज आरजे रिचर्डसन ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हमला बहुत ही जघन्य था। हमला स्मेल की हत्या करने की नीयत से किया गया था।
हालांकि स्मेल बच गया। इस मामले में पदारथ सिंह, भंजन सिंह तथा अधीन सिंह को 14 साल की सजा दी गयी। भंजन सिंह और पदारथ सिंह ने माफी के लिए गवर्नर जनरल को पत्र लिखा था, लेकिन सरकार ने उनके आवेदन पर विचार नहीं किया।