जामा मस्जिद में भी छिड़ी थी जंग

jama masjid नई दिल्ली। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अंग्रेज लाल किला पर फतह करने के लिए साम दाम दंड भेद सभी तरह की नीतियां अपना रहे थे। इसके लिए अंग्रेजों ने किराए के सैनिकों के अलावा स्थानीय लोगों को पैसे का लालच देकर भी सूचनाएं देने के लिए मिला लिया था।

जिस समय निकलसन के नेतृत्व में अंग्रेज फौज काबुली गेट की ओर बढ़ने का असफल प्रयास कर रही थी उसी समय कर्नल कैंपबेल के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज का एक दस्ता जामा मस्जिद की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा था। तंग गलियों में बने मकानों, खिड़कियों और चौबारों पर शाही सेना द्वारा की जा रही गोलाबारी का जवाब देते हुए जामा मस्जिद तक जा पहुंचे। लेकिन वह ज्यादा देर तक नहीं टिक सके। जामा मस्जिद पर लगी तोपों से उन पर इतनी भारी गोलाबारी की गई कि अंग्रेजों के जान के लाले पड़ गए वह अपनी जान बचाकर भागने पर मजबूर हो गए। जामा मस्जिद के पास जब अंग्रेजों की सेना पहुंची तो जामा मस्जिद से निकल कर लोगों ने हमला कर दिया।

जामा मस्जिद से निकल कर अंग्रेजों की गोलियों का मुकाबला लोगों ने तलवारों से किया। जामा मस्जिद से निकल रहे सैकड़ों लोग मस्जिद की सीढि़यों पर ही गिर पड़े। इसके बाद भी शाही सैनिकों ने हार नहीं मानी। जामा मस्जिद के पास हुई जोरदार लड़ाई में दोनों तरफ की सेनाएं बुरी तरह से घायल हुई। इस लड़ाई में हार के बाद कैंपबेल ने लिखा है कि यदि उस समय मुझे सहायता मिली होती और मेरे पास बारूद के थैले होते तो मैं विस्फोट करके जामा मस्जिद को उड़ा देता। दिल्ली के इतिहास पर काम करने वाली दिल्ली विश्वविद्यालय की डा. अमृत कौर बसरा ने बताया कि दिल्ली का आम जन भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहा था।

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