नई दिल्ली । जिसकी हत्या के जुर्म में वह पत्नी समेत ग्यारह साल से जेल काट रहा है वह तो जिंदा है। ना मानो तो उन लोगों से पूछ लो जिन्होंने 9 साल पहले उसे देखा था। यही दलील तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा भुगत रहे बीरबल ने सुप्रीम कोर्ट में दी है। कोर्ट ने बीरबल की याचिका पर संज्ञान लेते हुए उसके केस से संबंधित सारे रिकार्ड तलब किए हैं।
ये शायद अपनी तरह का बिरला मामला होगा जिसमें सुप्रीम कोर्ट तक से उम्रकैद की सजा पर मुहर लगने के बाद दोषी ने याचिका दाखिल कर पूरे सिस्टम पर सवाल उठाया है। उसने कोर्ट से जमानत भी मांगी है। जस्टिस एके पटनायक और एके सीकरी की पीठ ने बीरबल की वकील शारदा देवी की दलीलें सुनने के बाद केस का सारा रिकार्ड ट्रायल कोर्ट से मांगा है। अगली सुनवाई जुलाई में होगी।
ज्ञात हो, बीरबल व उसकी पत्नी को मोतीलाल की हत्या के जुर्म में 2001 में दिल्ली की सत्र अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने 2009 में उसकी अपील खारिज कर दी। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उम्रकैद पर मुहर लगा दी। लेकिन बीरबल ने गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट में नई रिट दाखिल कर दावा किया कि जिस व्यक्ति की हत्या के जुर्म में वह और उसकी पत्नी उम्रकैद भुगत रहे हैं वह जिंदा है। कुछ लोगों ने उस व्यक्ति को 2004 में देखा है।
बीरबल का आरोप है कि उसे झूठे मामले में फंसाया गया है। उसके खिलाफ अपने पिता की हत्या का मुकदमा दर्ज कराने वाले ने लावारिस लाश के आधार पर उसके पूरे परिवार के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया जिसमें अदालत ने उसे और उसकी पत्नी को सजा दी। नाबालिग होने के कारण बेटे छोड़ दिए गए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पहली निगाह में बीरबल की याचिका पर भरोसा नहीं किया और उससे कुछ ऐसे सुबूत मांगे जो साबित करते हों कि मोतीलाल (जिसकी 1995 में हत्या हुई है) जिंदा है। कोर्ट के आदेश पर बीरबल की ओर से कुछ हलफनामे दाखिल किए गए जिनमें मोतीलाल के जीवित होने का संकेत मिलता था।
कोर्ट ने हलफनामे देखने के बाद ही दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था और बीरबल की याचिका का जवाब मांगा था। बीरबल ने मांग की है कि सरकार को इस बात की जांच करने का आदेश दिया जाए कि जो व्यक्ति मरा बताया गया है वह शिकायतकर्ता का पिता ही है। बीरबल ने आरटीआइ से प्राप्त जानकारी के आधार पर दलील दी है कि जिस व्यक्ति की हत्या का उस पर दोष है उसका कोई फोटो, परिचयपत्र, डीएनए रिपोर्ट या मृत्यु प्रमाणपत्र मुकदमे के रिकार्ड में मौजूद नहीं है जिससे साबित हो कि वह शिकायतकर्ता का पिता ही था।
बीरबल की ओर से पेश हलफनामों में 2004 में मोतीलाल को देखने की बात कही गई है। हलफनामों में कहा गया है कि बीरबल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वाले की दूसरों के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराने की आदत है। मुकदमा दर्ज कराने के बाद वह पैसे मांगता है और पैसे मिलने के बाद मुकदमा खारिज करा लेता है।