नक्सलियों ने बर्बरता को सही बताया

maoist attack, maoists, violence, correct नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हमले से चर्चा में आया दंडकारण्य नक्सलियों का सबसे बड़ा और सुरक्षित पनाहगाह है। दंडकारण्य आंध्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा की सीमाओं में फैला है। इस वन का फैलाव उत्तर से दक्षिण में 320 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम में 480 किलोमीटर है। इस सघन और पहाड़ियों वाले वन के एक बड़े हिस्से में नक्सलियों का कब्जा जैसा है। वे इस जंगल में प्रशिक्षण कैंप लगाने के साथ हथियार बनाने का भी काम करते हैं। कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने वनवास का सबसे लंबा समय इस वन में ही व्यतीत किया था। आज इसी वन में नक्सलियों की तूती बोलती है। महेंद्र कर्मा और नंद कुमार पटेल की हत्या को जायज ठहराने वाले जिस नक्सली नेता गुड्सा उसेंडी ने खुद को दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का प्रवक्ता बताया है उसके बारे में माना जाता है कि वह यहीं छिपा है।

उसेंडी की ओर से जारी चार पेज की प्रेस विज्ञप्ति में पटेल, रमन सिंह, कारपोरेट घरानों, पुलिस, सुरक्षा बलों, केंद्र सरकार और खासकर कर्मा पर ढेरों आरोप लगाए हैं, लेकिन निर्दोष लोगों की मौत पर खेद सिर्फ एक पंक्ति में है। इस विज्ञप्ति से नक्सलियों की रीति-नीति के साथ-साथ पुलिस, नेताओं और सरकारों के प्रति उनकी घृणा भी जाहिर होती है। इसमें कहा गया है:

-कांग्रेस के काफिले पर जनमुक्ति गुरिल्ला सेना की एक टुकड़ी ने हमला किया।

– इस ऐतिहासिक हमले में महेंद्र कर्मा के मारे जाने से समूचे बस्तर क्षेत्र में जश्न का माहौल बन गया।

-इस हमले की पूरी जिम्मेदारी दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी लेती है।

-इस बहादुराना हमले में शामिल-सहयोग देने वालों को यह कमेटी क्रांतिकारी अभिनंदन करती है।

– इस वीरतापूर्ण हमले से यह सच्चाई फिर साबित हुई कि जुल्म करने वाले फासीवादियों को जनता माफ नहीं करती-चाहे वे कितने बड़े तीसमारखां क्यों न हों।

-आपरेशन ग्रीनहंट के लिए अमेरिकी साम्राज्यवादी न सिर्फ मार्गदर्शन और मदद दे रहे हैं, बल्कि अपने विशेष बलों को तैनात करके उसका संचालन भी कर रहे हैं।

-छत्तीसगढ़ में क्रांतिकारी आंदोलन के दमन की नीतियों में भाजपा-कांग्रेस में कोई मतभेद नहीं है।

-जनता अपराजेय है। मुट्ठी भर लुटेरे और उनके चंद पालतू.. आखिरकार इतिहास के कूड़ेदान में ही फेंक दिए जाएंगे।

-हमारे हमले को लोकतंत्र पर हमला कहा जा रहा है। क्या यह लोकतंत्र कर्मा-पटेल जैसे शासक वर्ग के गुर्गो पर ही लागू होता है? बस्तर के गरीब आदिवासियों, बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं पर नहीं?

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