घुड़दौड़ और लाटरी से जुदा है सट्टा व शर्त

-horse-racing-and-lottery-are-different-from-fixingनई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट तो 17 साल पहले ही सट्टे और शर्त को जुआ घोषित कर चुका है। लेकिन बहस इसे कानूनी जामा पहनाकर अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर चल रही है। एक वर्ग जिसमें कुछ राजनेता भी शामिल हैं सट्टेबाजी को कानूनी बनाने की वकालत कर रहे हैं जबकि कानूनविदों को इसका कानूनीकरण जम नहीं रहा है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि संविधान में दी गई वेलफेयर स्टेट की परिभाषा राज्य को इसकी अनुमति नहीं देती। वेलफेयर स्टेट का मतलब है जनता के हित में काम करना, न कि उसका उल्टा। सट्टा, लाटरी और घुड़सवारी एक बार फिर चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि सट्टेबाजी को कानूनी करने की बात चल रही है और पंजाब कैबिनेट ने लाटरी और घुड़सवारी के कानून को हरी झंडी दे दी है।

पैसा और नैतिकता की प्रतिस्पर्धा में नैतिकता ही मुंह की खाती रही है। शर्त, सट्टा, लाटरी और घुड़दौड़ देखने में भले ही एक सी प्रकृति के दिखते हों। लेकिन लाटरी और घुड़दौड़ कानून की परिभाषा में अपनी प्रकृति बदल चुके हैं। ये जुआ नहीं हैं। खेल हैं, राजस्व और मनोरंजन का साधन हैं। जबकि शर्त और सट्टा अभी भी कानूनन अपराध है।

सट्टा, लाटरी और घुड़दौड़ कानून में कहां ठहरता है, इसे देखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों को खंगालना होगा। तमिलनाडु में घुड़दौड़ को जुआ मानकर रोक लगाई तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। डॉ. केआर लक्ष्मणन बनाम तमिलनाडु केस में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ घुड़दौड़ पर फैसला दिया बल्कि इस बात पर भी विचार किया कि क्या जुआ की प्रकृति वाले व्यापार और व्यवसाय, रोजगार की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(जी)) में आते हैं।

कोर्ट ने बांबे बनाम आरएमडीसी के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जो काम आसानी से पैसा बनाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे, जिसमें लाभ पाना भाग्य के भरोसे हो और जिसमें गाढ़ी कमाई अविवेकी और अदूरदर्शी तरीके से डूबती हो, लोग कर्ज में आ जाते हों और मन की शांति चली जाती हो, संविधान निर्माताओं की मंशा ऐसे काम को रोजगार के मौलिक अधिकार में शामिल करने की नहीं रही होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,रोजगार का मौलिक अधिकार लोगों को जुआ खेलने की आजादी नहीं देता। इसके बाद कोर्ट ने घुड़दौड़ को जुए की परिभाषा से बाहर मानते हुए व्यवस्था दी कि घुड़दौड़ में सिर्फ भाग्य का मामला नही होता, कौशल भी शामिल होता है। इसलिए उसे जुआ नहीं कहा जा सकता। जुआ वह खेल या कार्य है जो सिर्फ भाग्य पर निर्भर होता है। लाटरी पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले आए। 1998 में केंद्र सरकार लाटरी रेगुलेट करने का कानून लाई।

इसी बीच यूपी ने अपने राच्य में नागालैंड लाटरी पर रोक लगा दी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाटरी एक तरह से जुआ की प्रकृति की ही चीज है। पूरे देश में व्यापार की संविधान में मिली छूट का लाभ लाटरी को नहीं मिलेगा क्योंकि लाटरी व्यापार नहीं है। हालांकि संविधान पीठ इससे पूर्व राच्य सरकारों की लाटरियों को कानूनी मान्यता दे चुकी थी लेकिन प्राइवेट लाटरी गैरकानूनी घोषित हो गई थीं। वकील डीके गर्ग का कहना है कि ‘पंजाब हाई कोर्ट में याचिका लंबित है, जिसमें राच्य के हर तीसरे व्यक्ति के नशे की चपेट में होने की बात कही गई है। इसे कुछ हद तक सही मानें तो लाटरी और भी बर्बादी है।’ जबकि पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढी का कहना है कि किसी को जबरदस्ती नैतिकता में नहीं बांधा जा सकता।

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