आपदा में भी रिश्तों की मजबूत डोर को संभाल रहे हैं जांबाज

29_06_2013-flood2सुमन सेमवाल, देहरादून। केदारघाटी में तबाही के बाद आपदा राहत के लिए सेना, आइटीबीपी और एनडीआरएफ के जांबाजों को हर मोर्चे पर इम्तिहान भी देना पड़ा। इम्तिहान कभी मौसम की चुनौती का, तो कभी जान हथेली पर रखकर काम करने का। गुरुवार को गढ़ी कैंट स्थित जीटीसी हेलीपैड पर अपने जांबाज साथियों को अन्तिम सलामी देने पहुंचे सेना के पायलटों ने ऑपरेशन सूर्य होप के अनुभव साझा किए।

सरकार सबक लेने के मूड में नहीं, जल्दबाजी में आ सकती है तबाही

कर्नल सुनित सोहल के मुताबिक वह उस अनुभव को कभी नहीं भूल पाएंगे, जब उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर एक महिला व बच्ची को आपदाग्रस्त क्षेत्र से बाहर निकालने के लिए हेलीकॉप्टर में सवार कराया। उसमें अन्य महिलाएं व बच्चे भी सवार थे। लगातार मुश्किल हो रहे हालात में हर किसी को अपनी जान की फिक्र थी, मगर उस महिला ने हेलीकॉप्टर में बैठने से इन्कार कर दिया। उनका पति तब वहीं मुसीबत में फंसा था, महिला को लाख समझाया गया कि उनके पति को बाद में ले आएंगे, पर वह नहीं मानी और हेलीकॉप्टर से नीचे उतर गई। आपदा के समय भी रिश्तों की ऐसी मजबूत डोर देखकर मजबूरन जोखिम उठाकर उसके पति को भी ओवरलोड के बावजूद हेलीकॉप्टर में बैठाना पड़ा। आपदा पीड़ितों की भावनाओं का आदर करते हुए हमारे जांबाजों ने एक नहीं, कई बार इस तरह का जोखिम उठाया।

सरकार नहीं सरकार के बेटे आए थेदेहरादून बल्लूपुर चौक निवासी ले. कर्नल संजय गैरोला ने भी कई बार ऐसी उड़ान भरी जब परिस्थितियां विपरीत थीं। समय कम था और उन्हें कई लोगों की जान बचानी थी, लिहाजा सेना ने 19, 20 व 21 जून तक आठ-आठ घंटे की उड़ान भरी, जबकि सामान्यत: एक दिन में चार घंटे ही उड़ान भरी जा सकती है। ले. कर्नल अनुज रामपाल बताते हैं कि बचाव व राहत कार्य में सबसे बड़ा अड़ंगा था मौसम। कई बार तो दोपहर भोजन के समय मौसम खुल पाता था और सभी जवान भोजन छोड़कर आपदा पीड़ितों की मदद को दौड़ पड़ते थे। हालांकि वह आपदा पीड़ितों की सेवा कर खुद बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

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