..तब जलती चिता में ऑपरेशन कर बच्चे को जिंदा बचाया था

1मथुरा [जासं]। भारत में चिकित्सा सर्जरी का इतिहास बहुत उन्नत था। दो हजार साल पहले भी सर्जरी होती थी। 1927 में मथुरा में मिली गांधार शैली की एक मूर्ति इसका सुबूत दे रही है। इसमेंदो हजार वर्ष पूर्व जलती चिता में ऑपरेशन कर मृत महिला के शरीर से बच्चे को जिंदा बचाते हुए दिखाया गया है।

वैसे तो ब्रज भूमि के गर्भ से मिली सभी मूर्तियां अनमोल हैं, लेकिन राजकीय संग्रहालय में रखी मूर्ति में एक गर्भवती महिला का शव जलती चिता पर रखा है। इसमें शव का ऑपरेशन कर बच्चे को बचाते हुए दिखाया गया है। इस मूर्ति के संबंध में यह कहानी प्रचलित है कि एक बार भगवान बुद्ध भ्रमण कर रहे थे, तभी जैन समाज के शुभद्र नामक व्यक्ति ने बुद्ध भगवान के पैर छुए। बुद्ध ने आशीर्वाद दिया कि उसे तेजस्वी संतान होगी। शुभद्र ने यह बात परिजनों को बताई। इससे जैन समाज नाराज हो गया और कहा कि यह बच्चा अच्छा नहीं होगा। आखिर शुभद्र बाजार से गर्भ समापन की दवा लाकर पत्‍‌नी को खिला दिया। इससे पत्‍‌नी की मौत हो गई। महिला कोमुखाग्नि देते समय भगवान बुद्ध उधर से ही निकल रहे थे। जब शव के बारे में जानकारी मिली, तो उन्हें याद आया कि शुभद्र को उन्होंने आशीर्वाद दिया था। उन्होंने तुरंत उस समय के शल्य चिकित्सक जीवक को बुलवाया। शल्य चिकि त्सक नेजलती चिता पर सफल ऑपरेशन कर मृत महिला के शरीर से बच्चा निकाला, जिसका नाम ज्योतिष पड़ा। इस बच्चे की परवरिश राजा बिंबसार ने की, जो आगे चलकर बड़ा तेजस्वी बना।

पूर्व वीथिका सहायक शत्रुघ्न शर्मा बताते हैं कि इस मूर्ति का उल्लेख संग्रहालय के पूर्व डायरेक्टर स्व. आरसी शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक द स्प्लेंडर ऑफ मथुरा आ‌र्ट्स एंड म्यूजियम में है।

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