लालू यादव को झटका, केस दूसरे कोर्ट में ट्रांसफर करने की याचिका खारिज

2नई दिल्ली। चारा घोटाला मामले में राजद प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने झारखंड हाईकोर्ट में अर्जी लगाकर अपना मुकदमा दूसरी अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की थी। उनके इस अर्जी को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। गौरतलब है कि लालू प्रसाद पर चल रहे मुकदमे पर सीबीआइ की विशेष अदालत 15 जुलाई को फैसला सुनाने वाली है।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पर दर्ज मुकदमे [आरसी 20 ए/96] को चारा घोटाला मामले में सीबीआई की विशेष अदालत 15 जुलाई को फैसला सुनाएगी। अदालत ने इस मामले में सुनवाई पूरी कर ली है। बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्रा सहित इस मामले में 45 आरोपी हैं। लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्रा सहित मामले के सभी 45 आरोपियों को अदालत में मौजूद रहने के निर्देश दिए गए हैं। आइए नजर डालते हैं कब और कैसे चारा घोटाले की शुरुआत हुई।

मामला झारखंड के चाइबासा [तब बिहार का हिस्सा] कोषागार से वर्ष 1996 में गलत तरीके से 37.70 करोड़ रुपये निकालने से जुड़ा है। इस मामले में नाम आने के बाद लालू को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। पटना हाईकोर्ट के आदेश पर इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। अप्रैल 2000 में इस मामले में लालू और जगन्नाथ समेत कुल 56 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से 8 की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई। इनमें से एक ने अपराध स्वीकार कर लिया और 2 सरकारी गवाह बन गए। इस मामले में करीब 350 गवाहों के बयान दर्ज हुए हैं।

दरअसल, यह घोटाला बिहार के दामन पर लगा एक ऐसा दाग है जिसको मिटा पाना असंभव है क्योंकि मामला सिर्फ चारे का नहीं है। असल में, यह सारा घपला बिहार सरकार के खजाने से गलत ढंग से पैसे निकालने का है। कई वर्षो में करोड़ों की रकम पशुपालन विभाग के अधिकारियों व ठेकेदारों ने राजनीतिक मिलीभगत के साथ निकाली।

घोटाले की जांच जब हुई तो बाद में पता चला राज्य के नेता, ठेकेदार और सरकारी पशुपालन विभाग के अधिकारी दीमक की तरह बिहार के खजाने को चट कर रहे हैं। शुरुआत छोटे-मोटे मामलों से हुई, लेकिन बात बढ़ते-बढ़ते तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार तक जा पहुंची। इस घोटाले के आरोपी एसबी सिन्हा के बयान के अनुसार चारा घोटाले का पैसा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी मिला था।

एसबी सिन्हा के बयान से पूरे बिहार में इस सच को जानने के लिए बेताब हो गए। उन्होंने बताया था कि 1995 के लोकसभा चुनाव में चारा घोटाले के आरोपी विजय कुमार मल्लिक द्वारा एक करोड़ रुपये नीतीश कुमार को भिजवाया गया। यह पैसा उन्हें दिल्ली के एक होटल में दिया गया। नीतीश ने पैसे लेकर धन्यवाद भी कहा। कुछ दिनों बाद फिर घोटाले के आरोपी एसबी सिन्हा ने नौकर महेंद्र प्रसाद के हाथ 10 लाख रुपये पटना में विधायक सुधा श्रीवास्तव के घर पर नीतीश कुमार के लिए भेजे।

घोटाले के आरोपी आरके दास ने भी कोर्ट में दिए बयान में बताया था कि उसने पांच लाख रुपये नीतीश कुमार को दिए हैं। नीतीश कुमार 1995 में समता पार्टी के नेता थे। वह एसबी सिन्हा को कहते थे कि पैसा नहीं देने पर मामला उजागर कर दिया जाएगा। तत्कालीन विधायक शिवानंद तिवारी, राधाकांत झा, रामदास एवं गुलशन लाल अजमानी को भी पैसा देने की बात सामने आई है।

हालांकि इस मामले में पिछले वर्ष 27 नवंबर को अदालत ने नीतीश कुमार और शिवानंद तिवारी को पर्याप्त सबूत नहीं होने के अभाव में आरोप से मुक्त कर दिया। यह मामला एक-दो करोड़ रुपये से शुरू होकर अब 37.70 करोड़ रुपये तक पहुंचा है और कोई पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि घपला कितनी रकम का है क्योंकि यह वर्षो से होता रहा है और बिहार में हिसाब रखने में भी भारी गड़बड़ियां हुई हैं।

मामले के जाल में फंसे लालू यादव को इस सिलसिले में जेल जाना पड़ा, उनके खिलाफ सीबीआई और आयकर की जांच हुई, छापे पड़े और अब भी वे कई मुकदमों का सामना कर रहे हैं। आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सीबीआई ने राबड़ी देवी को भी अभियुक्त बनाया है।

घपले की पोल बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए। रातों-रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई सौ कर्मचारी गिरफ्तार कर लिए गए, कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और राज्य भर में दर्जन भर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

सीबीआई ने अपनी शुरुआती जांच के बाद कहा कि मामला उतना सीधा-सादा नहीं है जितना बिहार सरकार बता रही है। सीबीआई का कहना था कि चारा घोटाले में शामिल सभी बड़े अभियुक्तों के संबंध राष्ट्रीय जनता दल और दूसरी पार्टियों के शीर्ष नेताओं से रहे हैं और उसके पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि काली कमाई का हिस्सा नेताओं की झोली में भी गया है।

सीबीआई के अनुसार, राज्य के खजाने से पैसा कुछ इस तरह निकाला गया-पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने चारे, पशुओं की दवा आदि की सप्लाई के मद में करोड़ों रुपये के फर्जी बिल कोषागारों से वर्षो तक नियमित रूप से भुनाए। विपक्ष ने कड़े तेवर के बाद जांच अधिकारियों का कहना था कि बिहार के मुख्य लेखा परीक्षक ने इसकी जानकारी राज्य सरकार को समय-समय पर भेजी थी, लेकिन बिहार सरकार ने इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। राज्य सरकार की वित्तीय अनियमितताओं का हाल ये था कि कई-कई वर्षो तक विधानसभा से बजट पारित नहीं हुआ और राज्य का सारा काम लेखा अनुदान के सहारे चलता रहा है।

सीबीआई का कहना है कि उसके पास इस बात के दस्तावेजी सबूत हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को न सिर्फ इस मामले की पूरी जानकारी थी, बल्कि उन्होंने कई मौकों पर राज्य के वित्त मंत्रालय के प्रभारी के रूप में इन निकासियों की अनुमति दी थी।

जांच के दौरान सीबीआई ने ये दावा भी किया लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी अपनी घोषित आय से अधिक संपत्ति रखने के दोषी हैं। सीबीआई का कहना रहा है कि ये सामान्य आर्थिक भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि व्यापक षड्यंत्र का मामला है जिसमें राज्य के कर्मचारी, नेता और व्यापारी वर्ग समान रूप से भागीदार है। मामला सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल तक सीमित नहीं रहा। इस सिलसिले में बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र को गिरफ्तार किया गया। राज्य के कई और मंत्री भी गिरफ्तार किए गए। सीबीआई के कमान संभालते ही बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई और छापे मारे गए।

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