चुनावी सरगरमी के दौरान जैसे ही यह खबर आई कि नारायण दत्त तिवारी, पत्नी उज्जवला और बेटे रोहित शेखर संग अमित शाह के घर पहुंचे, जहां रोहित शेखर ने भाजपा की सदस्यता ली और कहा कि वे भाजपा के लिए प्रचार करेंगे, तो सोशल मीडिया भद्र-अभद्र टिप्पणियों से अट गया। हालांकि पूर्व तिवारी के भी भाजपा में शामिल होने की चर्चा हो रही थी, लेकिन उन्होंने अभी भाजपा ज्वाइन नहीं की है। कहने भर को भले ही तिवारी भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, मगर इस सवाल का क्या जवाब है कि उनके बेटे को भाजपा ज्वाइन करनी थी तो वे साथ क्यों गए? जाहिर सी बात है, रोहित शेखर को जानता कौन है? उसे तो दुनिया ने तब जाना, जब उसकी मां उज्जवला ने यह उजागर किया कि रोहित तिवारी जी का बेटा है। न केवल कहा, बल्कि बाकायदा डीएनए टेस्ट से यह साबित किया कि तिवारी ही उनके बेटे के पिता हैं। यानि कि रोहित की पहचान तिवारी की ही वजह से है, कि वह एक पूर्व मुख्यमंत्री का बेटा है। स्पष्ट है कि भाजपा तिवारी को चाहने वालों के वोट बटोरना चाहती है। चलो ऊंचे आदर्शों वाली भाजपा ने तो ऐसा वोट की खातिर किया, मगर सवाल ये उठता है कि हमारी सोसायटी को आखिर हो क्या गया है? तिवारी जैसे भी समाज में प्रतिष्ठित हैं, तभी तो उनकी राजनीतिक वैल्यू कायम है। अफसोस।
-तेजवानी गिरधर
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