ऐसे यह सवाल मौजूं है कि क्या जिस प्रकार तीर्थराज पुष्कर में नहाना धार्मिक लिहाज से पवित्र माना जाता है, क्या उसी प्रकार आनासागर में जायरीन का नहाना भी एक पवित्र कृत्य है? इस मुद्दे पर जरा गहराई से विचार करें तो तीर्थराज पुष्कर में स्नान की तो महिमा शास्त्रों में भरी पड़ी है और वहां श्रद्धालु मुख्य रूप से नहाने ही आते हैं। दूसरी ओर यह सच है कि दरगाह में जियारत करने वाले गरीब जायरीन अनेक वर्षों से परंपरागत रूप से आनासागर में नहाते हैं, मगर उसकी कोई धार्मिक महत्ता है, इस बारे में अब तक कोई जानकारी उभर कर नहीं आई है। हां, यह तर्क जरूर दिया जाता है कि किसी जमाने में स्वयं ख्वाजा साहब इसी आनासागर में वजू किया करते थे, इस कारण यहां नहाना पवित्र कृत्य है। इसमें कोई दो राय नहीं कि गरीब जायरीन आनासागर में ही नहाने के बाद जियारत करने जाते हैं, मगर इसकी कोई धार्मिक महत्ता भी है या फिर यह महज एक सामान्य स्नान ही है, यह विवाद का विषय हो सकता है। एक तर्क ये भी है कि यदि वाकई इसका धार्मिक महत्व होता तो जियारत करने के लिए आने वाले हर आम ओ खास जायरीन यहा स्नान करते। केवल गरीब जायरीन ही क्यों स्नान करते हैं?
खैर, आनासागर में स्नान भी तीर्थराज पुष्कर की तरह पवित्र है या नहीं, इस विषय से हट कर विचार करें तो यह मुद्दा तो है ही कि यदि प्रशासन आनासागर में नहाने की व्यवस्था पूरी तरह से समाप्त करने जा रहा है तो उसने यहां नहाने को प्रतिदिन आने हजारों गरीब जायरीन के नहाने की वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार क्यों नहीं किया? क्या वह यह तर्क दे कर बच सकता है कि गरीब जायरीन कहां नहाएंगे, इसकी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है, वे चाहें तो आसपास बने सुलभ कॉम्पलैक्स में नहा सकते हैं। इसमें विचारणीय ये है कि क्या गरीब जायरीन पर नहाने के लिए पैसे देने का बोझ डालना उचित है? और अगर इसे नजरअंदाज भी किया जाए तो क्या हजारों जायरीन के अनुपात में सुलभ कॉम्पलैक्स बनाने पर विचार किया गया है? क्या यह जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं है कि वह कोई व्यवस्था लागू करने के साथ ही उसकी वैकल्पिक व्यवस्था भी करे। माना कि आनासागर में नहाने का धार्मिक महत्व होने की कोई लिपिबद्ध जानकारी कहीं नहीं भी मिल रही, तो भी अगर गरीब जायरीन के लिए आनासागर में नहाना आस्था का मामला है तो प्रशासन को जरूर उनकी आस्था का ख्याल रखना ही चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
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