पेट्रोल चाहे जितने का हो जाए, वोट तो मोदी को ही दूंगा?

-तेजवानी गिरधर-
हाल ही जब केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने चार साल पूरे किए तो स्वाभाविक रूप से कांग्रेस ने सरकार की उपलब्धि शून्यता पर हंगामा किया, जो कि विपक्ष का फर्ज भी है, मगर साथ ही भाजपा वाले, जिन्हें कि मोदी भक्त कहना ज्यादा उपयुक्त होगा, भी पूरा राशन पानी लेकर सोशल मीडिया पर तैयार थे। हर सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाती है, उसमें कुछ भी गलत नहीं है, मगर यदि दलीलें तर्क की पराकाष्ठा को पार कर जाएं तो उस पर ध्यान जाना स्वाभाविक ही है।

तेजवानी गिरधर
असल में भाजपा वाले भी ये जानते हैं कि जिन मुद्दों को लेकर मोदी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार पर काबिज हुए, उनमें सरकार पूरी तरह से विफल रही है। मगर वे तो इस बात से आत्मविमुग्ध हैं कि आज मोदी ने चार साल पूरे कर लिए और यह इच्छा भी बलवती है कि अगले साल के बाद आने वाले पांच साल भी मोदी ही राज करें, भले ही कोई उपलब्धि हो या नहीं। और जब विपक्ष सरकार की अनुपलब्धि पर सवाल करे तो पूरी ढि़ठाई के साथ ऐसे जवाब देना ताकि उससे केवल और केवल हिंदुत्व मजबूत हो व पक्के वोट नहीं बिखरें।
आप जरा तर्क देखिए:- पेट्रोल चाहे जितने का हो जाए, मगर मैं तो मोदी को ही वोट दूंगा। कल्पना कीजिए कि ये वे ही लोग हैं कि जो मात्र एक रुपया बढ़ जाने पर भी आसमान सिर पर उठा लेते थे, मगर आज जब पेट्रोल अस्सी को भी पार कर गया है तो इसमें उन्हें कुछ भी अनुचित नहीं लगता। वे जानते हैं कि पेट्रोल के दाम इतने ऊंचे होने और कमरतोड़ महंगाई के साथ अन्य अनेक मुद्दों पर सरकार की विफलता के कारण जनता पर छाया मोदी का जादू खत्म हो सकता है तो वे इसके लिए ऐसे तर्क जुटा रहे हैं ताकि मोदी का नशा बरकरार रहे।
एक बानगी देखिए:- मोदी ने महंगाई बढ़ा रखी है, व्यापार में दिक्कत है, जीएसटी रिटर्न भरने में परेशानी है, महंगा कर रखा है, आरक्षण खत्म नहीं किया, राम मंदिर नहीं बनवाया, 15 लाख नहीं दिए, अच्छे दिन नहीं आए, नोटबन्दी की वजह से जनता मरी, फलाना-ढ़ीकाना। इसलिए अब हम मोदी की दुकान बंद कराएंगे, आने वाले चुनाव में वोट नहीं देंगे।
बंधुओं, रही मोदी की दुकान बंद कराने की बात, तो आपको बता दें कि मोदी की उम्र अब 67 वर्ष है और उनके पीछे न परिवार है और बीवी-बच्चे। उन्होंने जिंदगी में जो पाना था वो पा लिया है। अब अगर आप वोट नहीं भी देंगे और वो हार भी जाएंगे, तब भी वो पूर्व प्रधानमंत्री कहलाएंगे, आजीवन दिल्ली में घर, गाड़ी, पेंशन, एसपीजी सुरक्षा, कार्यालय मिलता रहेगा। दस-पंद्रह साल जीकर चले जाएंगे। लेकिन सवाल ये उठता है कि आप क्या करेंगे? जब कांग्रेस+लालू+मुलायम+मायावती+ममता+केजरीवाल मिल कर इस देश का इस्लामीकरण और ईसाईकरण करेंगे, रोहिंग्याओं को बसाएंगे, भगवा आतंकवाद जैसे नए-नए शब्द बनेंगे और आतंकवादी सरकारी मेहमान बनेंगे। हिंदुओं का खतना करवाएंगे, मुसलमानों को आरक्षण देंगे, लव जिहाद को बढ़ावा देंगे, पप्पू देश लूट कर इटली घूमने जायेगा।
मोदी तो संतोष के साथ मरेंगे कि मैंने एक कोशिश तो की अपना देश बचाने की, लेकिन आप लोग तो हर दिन मरेंगे, और अंतिम सांस कैसे लेंगे? अपने बच्चों के लिए कैसा भारत छोड़ कर मरेंगे? जरा विचार कीजिए और तब निर्णय लीजिए।
ऐसी ही अनेक बानगियां पूरे सोशल मीडिया पर छायी हुई हैं, जिनमें सीधे-सीधे तर्क की बजाय कि भी प्रकार मोदी की भक्ति ही साफ नजर आती है।
कुल मिला कर इन तर्कों से समझा जा सकता है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी महंगाई है, कितनी बेरोजगारी है, लोग कितने परेशान हैं, उन्हें तो इस बात से मतलब है कि पहली बार सरकार पर काबिज भाजपा व हिंदुत्व को पोषित करने वाले मोदी कैसे सरकार में बने रहें। उन्हें इससे भी कोई मतलब नहीं कि अच्छे दिन आए या नहीं, चाहे बुरे से बुरे दिन ही क्यों आ जाएं, उन्हें तो केवल इससे सरोकार है कि मोदी ब्रांड के दम पर हिंदुत्व वाली विचारधारा सरकार पर सवार हो गई। इससे यह भी आभास होता है कि जनता से जुड़ी आम समस्याओं के निवारण में असफल होने के कारण उन्हें भाजपा सरकार के दुबारा न आने का अंदेशा है, लिहाजा आखिरी विकल्प के रूप में हिंदुत्व के नाम पर येन-केन-प्रकारेण धु्रवीकरण करना चाह रहे हैं। यदि वाकई मोदी सरकार की उपलब्धियां होतीं या फिर मोदी ने जिन जुमलों पर सवार हो कर सरकार पर कब्जा किया, उनके पूरा होने का बखान करते। तर्क के साथ बताते कि मोदी ने ये किया, वो किया। विपक्ष सरकार को विफल बताए, उस पर आप भरोसा करें न करें, खुद वे ही अप्रत्यक्ष रूप से बखान कर रहे हैं कि हां, मोदी असफल हैं, मगर चूंकि वे हिंदुत्व को पोषित कर रहे हैं, इस कारण उन्हें अगली बार भी प्रधानमंत्री बनाएं। यानि कि जनहित के मुद्दों से ध्यान हटा कर कोशिश यही की जा रही है कि किसी भी प्रकार हिंदुत्व के नाम पर लोगों को एकजुट किया जाए।
चलो, ये मान भी लिया जाए कि हर पार्टी को अपने हिसाब से जनता को आकर्षित करने का अधिकार है, चाहे हिंदुत्व के नाम पर चाहे जातिवाद के नाम पर, मगर असल सवाल ये है कि क्या यह वास्तविक लोकतंत्र है? जिसमें जनता की जरूरतों के मुद्दे तो ताक पर रखे जा रहे हैं और कोरी भक्ति के नाम पर तिलिस्म कायम किया जा रहा है।

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