अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग उन्नीस
श्री गजेन्द्र के. बोहरा
पत्रकारिता व समाजसेवा के क्षेत्र में श्री गजेन्द्र के. बोहरा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पत्रकारिता में तो उन्होंने लंबा सफर तय किया ही है, सामाजिक व स्वयंसेवी संगठनों के साथ काम करने का भी उनका अच्छा खासा अनुभव है। विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में भी दखल रखते हैं। एनएसयूआई से आरंभ राजनीतिक सफर अब उन्हें अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी में सक्रिय सदस्य तक ले आया है। सक्रिय राजनीति में भले ही किसी बड़े मुकाम तक न पहुंचे हों, मगर दिग्गज मंत्रियों से निजी रसूखात के चलते स्थापित नेताओं तक के कान कतरते हैं। यदि चंद शब्दों में उनके व्यक्तित्व को समेटने की कोशिश करूं तो इतना ही काफी है कि वे हरफनमौला इंसान हैं। मजाक में मित्र मंडली उन्हें अजमेर की ‘दाई’ की उपमा देती है। आप समझे, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिसमें उनका दखल न हो। जानकारियों का खजाना भी कह सकते हैं उन्हें। दैनिक न्याय से आरंभ उनकी पत्रकारिता दैनिक भास्कर तक पहुंची। इतना ही नहीं, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में पैर पसारते हुए उन्होंने भास्कर टीवी में बतौर प्रभारी काम किया। जीवट से काम करने की प्रवृत्ति के दम पर उन्होंने बेरोजगार मित्र नामक अपने पाक्षिक समाचार पत्र को राज्य स्तर पर पहचान दिलाई है। उनकी अपनी खुद की प्रिटिंग यूनिट भी है। क्वालिटी प्रिटिंग में भी उन्होंने अपनी अच्छी साख कायम की है।
शहर के विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक संगठनों में भी अपने मधुर व्यहवार व कार्यकुशलता के चलते अलग पहचान है। सेवा को समर्पित महावीर इंटरनेशनल में उत्कृष्ट सेवाओं के फलस्वरूप ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय सचिव पद से नवाजा गया। हाल ही में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में 02 अक्टूबर को 44वीं बार रक्तदान किया। स्वेच्छिक रक्तदान के चलते राज्य स्तर पर भी सम्मानित किया जा चुका है। सजगता के चलते अब तक चार देहदान करवाने का श्रेय भी इनके खाते में दर्ज हैं। आज भी अनवरत कई सामाजिक संस्थाओं से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं।
अब बात करते हैं, उनकी भाषा-शैली की। संयोग से मेरे पास उनका वह आलेख है, जो उन्होंने दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर रचित गौरव ग्रंथ में प्रकाशित होने आया था, मगर प्रकाशन की आपाधापी में गंभीर त्रुटिवश वह रह गया। इस आलेख को पढ़ कर आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि भाषा-शैली पर उनकी कितनी गहरी पकड़ है। इस बहाने उनका वह आलेख भी सार्वजनिक हो जाएगा, जिसे उन्होंने बड़े मनोयोग से तैयार किया था।
*पेश है वह आलेख :*
‘वह दिन’ जिसने जीवन का लक्ष्य तय कर दिया…
मैं अपनी रोजमर्रा की डाक देख रहा था, तभी वह पत्र मेरे सामने आया, जिसमें मुझे स्थानीय लेकिन देश की पत्रकारिता जगत में अग्रणी स्थान पर स्थापित दैनिक समाचार पत्र ‘दैनिक नवज्योति’ के प्रधान सम्पादक दीनबन्धु चौधरी से संबंधित संस्मरण, आलेख के रूप में उपलब्ध कराने का स्नेहिल आमंत्रण दिया गया था। आलेख को श्री दीनबंधु चौधरी गौरव ग्रंथ में स्थान दिए जाने का उल्लेख भी पत्र में था।
इस स्नेहिल आमंत्रण ने मुझे इतना अभिभूत कर दिया कि मेरा दृष्टि-पटल अश्रु ओस कणों से अवरुद्ध हो गया। इन्हीं अश्रु ओस कणों से बने झीने पर्दे पर वह दृश्य उभरने-मिटने लगे, जिन्होंने मेरे जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर दिया था…
अजमेर रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म संख्या एक, स्थानीय समाजसेवियों, पत्रकारों और राजनेताओं के साथ कर्मचारी संगठनों और व्यवसायिक संस्थानों के प्रमुख व्यक्तियों से जैसे भर गया था। 1986 के जुलाई माह के उस दिन, दोपहर दस्तक देने लगी थी। सभी की उत्सुक निगाहें उस तरफ टकटकी लगाए थीं, जिधर दिल्ली से आने वाली उस ट्रेन को आना था, जिस ट्रेन से ‘दैनिक नवज्योति’ के प्रबन्ध सम्पादक वरिष्ठ पत्रकार दीनबंधु चौधरी, अपना सोवियत रूस का प्रवास पूरा कर लौट रहे थे।
वे उस मीडिया टीम के विशेष आमंत्रित सदस्य थे, जो भारत के प्रधानमंत्री के साथ सोवियत रूस के दौरे पर जाने के लिए चुनी गई थी। निश्चित रूप से शहरवासियों के लिए वह दिन अजमेर के गौरवशाली इतिहास में एक पृष्ठ और संकलित करने वाला दिन था, इसका प्रमाण अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म एक पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा, शहरवासियों का वह हुजूम था जिसका मैं भी एक हिस्सा था।
मेरी उत्सुक और कौतुहल भरी निगाहें, कभी उस हुजूम में मौजूद जाने-पहचाने चेहरों के इर्द-गिर्द जायजा लेती थीं और फिर उसी दिशा में जा टिकती थीं, जिधर से दिल्ली से आने वाली ट्रेन एक नए सूर्य की तरह उदित होने वाली थी। मैं देख रहा था, समझ रहा था कि उस हुजूम में मौजूद हर शख्स की हालत लगभग मेरे जैसी ही थी। उन सभी में और मुझ में या मेरी सोच में, शायद एक फर्क जरूर था। वह फर्क था कि सभी को इंतजार था ट्रेन के आने का, जबकि मेरी आंखों में एक सपना तैरने लगा था। मैं उस सपने में खो गया। दूर से आ रहा और ट्रेन को ला रहा इंजन धीरे-धीरे नजदीक आ रहा था। कुछ सौ मीटर की दूरी से दिखाई देने वाली ट्रेन की रफ्तार इतनी धीमी थी, जैसे वह सैकड़ों मील की दूरी तय कर थक गई हो। दूसरी तरफ मेरे दिल की धड़कनों की रफ्तार इतनी बढ़ गई थी, जैसे वह उछल कर सीने से बाहर आ जाएगी। खून की रफ्तार इस कदर बढ़ गई थी, कि कनपटियों में फड़क रही नसों की धमक मेरे कानों में हथौड़े की तरह गूंज रही थी। धीरे-धीरे ट्रेन का इंजन मेरे सामने से गुजरा और ट्रेन के डिब्बे एक के बाद एक मेरे सामने से गुजरने लगे। फिर वह डिब्बा मेरे सामने आकर रुक गया, जिसके दरवाजे पर मैं अपने आपको खड़ा देख रहा था। स्टेशन के प्लेटफार्म पर हुजूम हाथ हिला-हिला कर मेरा अभिवादन कर रहा था। मैं भी मुस्कुराते हुए उनका अभिवादन स्वीकार कर रहा था। उस हुजूम ने ट्रेन के उस डिब्बे के उस दरवाजे को इस तरह घेर लिया था कि मुझे दरवाजे से उतरना मुश्किल हो गया था। कुछ ही पलों में मुझे कुछ लोगों ने कंधों पर उठा कर ट्रेन के डिब्बे से नीचे उतारा और प्लेटफार्म पर ही मुझे कंधों पर लेकर नाचने लगे। बड़ी मुश्किल से मेरे पैरों ने प्लेटफार्म की जमीन को छुआ। मैं कह नहीं सकता कि कंधों से उतरने में मेरी भूमिका कितनी थी और हुजूम की कितनी। उसके बाद दौर शुरू हो गया गले मिलने, बधाई और शुभकामनाओं के साथ माला पहनाने का सिलसिला। मुझे इतना मौका भी नहीं मिल रहा था कि मैं मालाओं में निरंतर डूबते जा रहे चेहरे को अपने हाथों से निजात दिला सकूं। मैं कुछ भी देख पाने में असमर्थ था और मेरी नाक फूलों की सुगंध से भर रही थी। तभी अचानक मेरे कानों में मेरे ही नाम की गूंज सुनाई दी। मैं अपने सपने से उबरने लगा। अब मेरे सामने जो चेहरा फूलों से ढका जरूर था, लेकिन वह चेहरा मेरा नहीं, दीनबंधु चौधरी साहब का था। उन्होंने मुझसे पूछा ‘गजेन्द्र कैसे हो…?’
मैं चौंक कर अपने आप में लौटा। मैंने मुस्कराते हुए अपने हाथों में ली हुई माला उन्हें आदरपूर्वक पहनाते हुए कहा- मैं ठीक हूं ‘सर’। मैंने झुक कर चरण स्पर्श कर मन ही मन फैसला किया कि ‘मैं भी अपने आपको पत्रकारिता के उस मुकाम तक पहुंचाने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ूगा।’ निश्चित रूप से वह दिन मेरी जिन्दगी का अहम दिन बन गया। सच कहूं तो उस पूरे कार्यक्रम के दौरान और क्या कुछ होता रहा, मुझे सिलसिलेवार याद नहीं रहा। याद रहा तो बस इतना कि मुझे अपने आपको पत्रकारिता के प्रति इस कदर समर्पित कर देना है कि ज्यादा नहीं तो उस पायदान तक तो मुझे पहुंचना ही है, जहां मुझे, मेरे परिजन और मित्र मुझे पत्रकार के रूप में एक पहचान दे सकें। आज मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मेरी समर्पित भावना ने मुझे इस लायक बना दिया कि आज मेरे परिजन और मित्र मुझे किसी बिजनेसमैन के रूप से ज्यादा पत्रकार के रूप में मान्यता देते हैं।
सच कहूं तो मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में यह स्थान दिलाने मेें मेरे श्रम और समर्पण से ज्यादा, वह स्मरणीय दिन है, जो मेरे लिए उस दिन अनुकरणीय बन गया और आज भी है।

मैं समझता हूं कि यह आलेख उन लोगों से उनको रूबरू करवाने के लिए काफी है, जो कि उन्हें परिपूर्ण पत्रकार में रूप में नहीं जानते हैं।
– तेजवानी गिरधर
7742067000

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