क्या एक आत्मा की जगह दूसरी आत्मा को ले जाया जा सकता है?

हाल ही मेरे रिश्तेदारों के साथ एक ऐसा वाकया पेश आया, जिससे सवाल उठता है कि क्या यमदूत एक आत्मा की जगह दूसरी आत्मा को ले जा सकते हैं?
हुआ ये कि मेरे एक रिश्तेदार जयपुर से अहमदाबाद माइग्रेट हो रहे थे। सामान के साथ एक छोटे ट्रक में बैठ कर सफर कर रहे थे। रास्ते में उनकी छोटी बेटी अचानक अस्वस्थ हो गई। लगभग मरणासन्न हालत में आ जाने पर रास्ते में ही एक अस्पताल में भर्ती करवाया। मेरे रिश्तेदार की बुजुर्ग मां ने दुआ मांगी कि भगवान उसको तो उठा ले, लेकिन पोती को ठीक कर दे। अर्थात एक अर्थ में उन्होंने अपनी उम्र पोती को दान कर दी। इसे चमत्कार ही मानेंगे कि चंद घंटों में ही बुजुर्ग महिला की तो मौत हो गई, जबकि वह पूरी तरह स्वस्थ थी और उनकी पोती, जो कि मौत के करीब पहुंच चुकी थी, वह बिलकुल स्वस्थ हो गई।
इससे सवाल उठता है कि क्या यह महज एक संयोग है यानि कि ऊपर से ऐसा प्रतीत होता है कि बुजुर्ग महिला की दुआ कबूल हो गई, जबकि वास्तविकता ये थी कि बच्ची की जिंदगी अभी बाकी थी और वह केवल बीमार हुई थी और बुजुर्ग की आयु समाप्त हो गई थी। सवाल ये भी है कि क्या दुआ वाकई कबूल हो गई? यानि कि किसी की उम्र किसी और के शरीर में शिफ्ट हो सकती है? अर्थात कोई अपनी सांसें किसी और को दान में दे सकता है। हमारे यहां ऐसा सुनने को मिलता है कि कई लोग अपनी उम्र किसी प्रियजन को लग जाने की दुआ मांगा करते हैं। समझा यही जाता है कि वह औपचारिक दुआ मात्र होती है। उसके फलित होने को सुनिश्चित नहीं माना जाता। वह मात्र प्रियजन के प्रति दुआगो के अनुराग का द्योतक है। लेकिन ताजा घटना, यदि संयोग नहीं है तो इस बात की पुष्टि करती है कि यदि दुआ सच्चे दिल से की जाए तो वह कबूल भी हो सकती है। इसका अर्थ ये भी हुआ कि उस बुजुर्ग महिला की जितनी उम्र बाकी थी, वह पोती में शिफ्ट हो गई तो वह अब उतने ही साल जीवित रहेगी, क्योंकि उसकी सांसें तो समाप्त होने वाली थीं।
आपने कई बार ये सुना होगा कि यमदूत कभी गलती से किसी की आत्मा ले जाते हैं, मगर जैसे ही उन्हें पता लगता है कि त्रुटि हो गई है तो वे वापस शरीर में आत्मा को प्रविष्ट कर देते हैं, अगर उसका अंतिम संस्कार न हुआ हो। ताजा प्रसंग में संभव है ऐसा हुआ हो कि लेने तो वे बुजुर्ग महिला की आत्मा आए हों और गलती से वे बच्ची की आत्मा लेने लगे हों और वह मरणासन्न अवस्था में आ गई हो, लेकिन जैसे ही उन्हें गलती का अहसास हुआ, तुरंत बच्ची को छोड़ कर बुजुर्ग की आत्मा को साथ ले गए हों।
इस प्रसंग में एक बात ये भी गौर करने योग्य है कि बुजुर्ग महिला तनिक मंदबुद्धि थी। बेहद सहज व भोली-भाली अर्थात एकदम सच्ची इंसान। ऐसा संभव है कि भीतर से पवित्र इंसानों की इच्छा या दुआ शीघ्र मंजूर हो जाती हो।
-तेजवानी गिरधर
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