अजमेर में अमन को भंग नहीं किया जा सकेगा

सबके हित जुड़े होने के कारण है अजमेर में सांप्रदायिक सौहार्द्र
महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का सालाना उर्स एक माह बाद ही है। इस बीच दरगाह शरीफ में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए कोर्ट में अर्जी पेश होने के कारण पूरा देश उद्वेलित है। सारे न्यूज चैनल्स पर गरमागरम बहस हो रही है। आशंका के बादल छाये हुए हैं। मगर जानकार मानते हैं कि बहस-मुबाहिसा कितना भी हो, यहां के अमन-चौन को भंग नहीं किया जा सकेगा।
वस्तुतः दरगाह पूरी दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है। जाहिर तौर पर उसमें ख्वाजा साहब की शिक्षाओं की भूमिका है। साथ ही हिंदुओं की उदारता, कि वे अपने धर्म के प्रति कट्टर नहीं और अन्य धर्मों के प्रति भी पूरा सम्मान भाव रखते हैं। यदि वजह है कि इस दरगाह में साल भर में आने वाले जायरीन में हिंदुओं की तादाद भी काफी है। ऐसे में यह संदेश जाना स्वाभाविक है कि यह मरकज सांप्रदायिक सौहार्द्र का समंदर है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ये है कि जब जब भी देश भर में किसी वजह से सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ा और दंगे हुए, अजमेर शांत ही बना रहा।
असल में सुकून की बड़ी वजह है, सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का हित साधन। उर्स मेले में आने वाले लाखों जायरीन यहां के अर्थ तंत्र की धुरि हैं। मेला ही क्यों, अब तो साल भर यहां जायरीन का तांता लगा रहता है। भरपूर खरीददारी के कारण आम दुकानदार की अच्छी कमाई होती है। सैकड़ों होटलों का साल भर का खर्चा अकेले उर्स मेले के दौरान निकल जाता है। छोटी छोटी मजदूरी करने वाले भी इस दौरान खूब कमाते हैं। रहा सवाल खादिमों का तो वे सूफी मत को मानने वाले होने के कारण उदार प्रवृत्ति के हैं, मगर साथ ही उनकी आजीविका ही जायरीन पर टिकी हुई है। हालांकि अब खादिम भी अन्य व्यवसाय करने लगे हैं, फिर भी उनकी मुख्य आजीविका का जरिया खिदमत से होने वाली अच्छी आय ही है। स्वाभाविक रूप से जब वे दिल खोल कर खर्च करते हैं तो उसका लाभ आम दुकानदार को होता है। दरगाह शरीफ में लाखों रुपए का गुलाब चढ़ता है, जिसकी खेती पुष्कर में अधिसंख्य हिंदू करते हैं। समझा जा सकता है कि जिस शहर में जायरीन या पर्यटक कह लीजिए, के आगमन से अर्थ चक्र घूमता हो, वहां स्वाभाविक रूप से सभी का हित इसमें जुड़ा हुआ है कि यहां शांति कायम रहे। यहां शांति रहेगी तो बाहर से आने वाला भी बेखौफ आएगा। इसका यहां हर वर्ग को ख्याल रहता है। जब भी कोई छुटपुट घटना होती है तो सभी की कोशिश रहती है कि विवाद जल्द निपटा लिया जाए।
इन सबके बावजूद अजमेर को सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील माना जाता है, उसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर का आंतकवाद। इसी कारण दरगाह की अतिरिक्त सुरक्षा की जाती है। एक बार तो दरगाह में बम ब्लास्ट भी हो चुका है, जिसके आरोपियों को हाल ही सजा सुनाई गई है। इस घटना के बाद अब यहां सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। उससे आभास ये होता है कि यहां खतरा है, मगर सच्चाई ये है कि अजमेर का नागरिक आम तौर पर शांति पसंद है। वह किसी उद्वेग में नहीं बहता। शहर के ऐसे शांत मिजाज के कारण एक बार अजमेर आ चुके अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद अजमेर में ही बसना पसंद करते हैं।
बहरहाल, चाहे जिस वजह से अजमेर सुकून भरी जगह हो, मगर इसी वजह से यह सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बना हुआ है।

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