सब्जी में बाल निकलने का वहम

एक पुरानी कहावत है- वहम का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था। ज्ञातव्य है कि हकीम लुकमान बहुत प्रसिद्ध हकीम थे, जिनके पास हर मर्ज का इलाज था। मगर बताते हैं कि वे भी वहम अर्थात भ्रांति का इलाज नहीं कर पाते थे। इस सिलसिले में मुझे एक किस्सा याद आता है। बचपन में मैं जब भी खाना खाने बैठता था तो मुझे पहले से वहम होता था कि सब्जी में बाल होगा ही। और दिलचस्प बात है कि वाकई सब्जी में से बाल निकलता ही था। और जैसे ही बाल निकलता, मैं खिन्न हो जाता था। इस पर मेरी मां कहा करती थी कि यह तुम्हारा वहम है, तुम दिल ये यह वहम निकाल दो, फिर देखो सब्जी से बाल नहीं निकलेगा। हालांकि वह वहम बहुत देर से निकला, मगर जब निकला तो पाया कि वाकई सब्जी से बाल निकलना बंद हो गया। मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि केवल वहम मात्र से सब्जी में बाल कैसे आ जाता था? वह स्वसम्मोहित अवस्था थी या वहम करने से वाकई बाल सब्जी में आ जाता था। वैसे सब्जी अथवा रोटी में बाल आने की वजह ये होती है कि जिन महिलाओं के बाल झडते हैं, रोटी बनाते वक्त उसमें बाल गिरने की आषंका रहती है। आपने देखा होगा कि रेस्टोरेंट्स में षैफ सिर को ढक कर रखते हैं, ताकि बाल भोजन में न गिरे। इसी प्रकार रेस्टोरेंट में दीवारों पर स्लोगन लिखा होता है कि डोंट कॉंब, अर्थात यहां कंघी न कीजिए, अन्यथा भोजन में बाल गिर सकता है।

 

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