प्रेंक वीडियो के नाम पर परोसी जा रही है अश्लीलता

tejwani girdhar

इन दिनों यूट्यूब पर प्रेंक वीडियो खूब चलन में हैं। प्रेंक का मतलब होता है शरारत या मजाक। कई लड़के-लड़कियों ने इसे धंधा बना रखा है। वे इसमें विज्ञापन डाल कर कमा रहे हैं। धंधे तक तो ठीक है, मगर इनमें से कई ने इसे अश्लीलता परोसने का जरिया बना लिया है, जिसे देख कर नए युवक-युवतियां आकर्षित होती है। कुछ ने अपने लाखों फॉलोअर्स के नाम पर ब्लैकमेलिंग का कारोबार भी कर रखा है।
यूं प्रेंक वीडियो मनोरंजन के लिहाज से ठीक है। कोई बुराई नहीं। मगर अधिसंख्य प्रेंक वीडियो प्रेम प्रसंग, ब्रेक अप व शरीर बेचने पर बनाए जा रहे हैं। यह सच है कि ब्वॉय फ्रेंड व गर्ल फ्रेंड की कल्चर पाश्चात्य संस्कृति की देन है, जिसने हमारे महानगरीय परिवेश को बुरी तरह से प्रभावित कर रखा है। इसमें प्रेम के नाम पर शारीरिक शोषण के अलावा कुछ भी नहीं। आए दिन ब्वॉय फ्रेंड्स व गर्ल फ्रेंड्स के नए जोड़े बनते हैं, लीव इन रिलेशन तक पहुंचते हैं और बेक अप भी हो जाता है, मानो गुड्डे-गुड्डियों का खेल हो। हो सकता है कि प्रेंक वीडियो बनाने वालों का यह तर्क हो कि वे तो दर्पण की भांति हमारी संस्कृति का दिग्दर्शन मात्र करवा रहे हैं, मगर सच्चाई ये है कि यह संस्कृति अभी महानगरों तक ही सीमित है, उसे ये वीडियो के जरिए गांव-गांव तक अभी परोस रहे हैं। अर्थात इस कुसंस्कृति को गांवों तक स्वाभाविक रूप से पहुंचने में संभव है दस-बीस साल लगें, मगर ये उसे अभी से सर्व कर रहे हैं, जिसका कुप्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता। जगजाहिर है कि नए युवक-युवतियां अच्छाई की बजाय बुराई को जल्द अपनाती हैं। दिखाने को भले ही यह इस रूप में गिनाई जा रही हो कि वे तो समाज की इस बुराई को उजागर कर रहे हैं, मगर वस्तुतरू वे इसका प्रचार कर रहे हैं। कई प्रेंक तो इतने घटिया व अश्लील होते हैं कि उन्हें देख कर घिन आने लगती है। भाभी, साली, चाची व दोस्त की बीवी जैसे मर्यादित रिश्तों को इतने घटिया तरीके से पेश किया जा रहा है, मानो इन रिश्तों में अश्लीलता व यौन शोषण एक स्वाभाविक बात हो। मगर वीडियो बनाने वाले लड़के-लड़कियां बड़ी बेशर्मी से इनको शूट कर यूट्यूब पर डाल रहे हैं। ऐसे कई वीडियो तो पोर्न की श्रेणी के होते हैं, मगर उन पर कोई नियंत्रण नहीं। अनेकानेक वीडियो ऐसे हैं, जो गार्डन में शूट किए जाते हैं और उनमें किसी भी अनजान लड़के या लड़की को मजाक व शरारत का शिकार बनाया जाता है। शरारत जब मार-पिटाई तक पहुंच जाती है तो उसे मजाक बता कर इतिश्री कर ली जाती है। कानूनी पेच से बचने के लिए वे प्रेंक के शिकार लड़के-लड़की को इस बात के लिए रजामंद कर लेते हैं कि उन्हें वीडियो यूट्यूब पर डाउनलोड करने में कोई ऐतराज नहीं। कुल मिला कर यह दर्शाया जा रहा है, मानो लड़कियां केवल यौनेच्छा पूर्ति का साधन हों। मजाक के नाम पर बदचलन लड़कियां भी ऐसा ही दर्शाती हैं कि प्रकृति ने उन्हें जो विशेष शारीरिक संरचना दी है, उसका आजीविका के लिए उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है।
यूट्यूब पर लाखों फॉलोअर्स वाले प्रेंक वीडियो मेकर खुले आम धमकी देते भी दिखाई दे जाएंगे। एक तरह से वे ब्लैकमेल कर रहे होते हैं। संभव है इस गोरखधंधे में ऐसे प्रकरण भी हों, जो लाइव आने की बजाय अंदर ही अंदर ब्लैकमेल की वजह बन रहे हों। मगर हमारे कानून की मजबूरी ये है कि जब तक कोई शिकायतकर्ता न हो, कोई कार्यवाही नहीं होती। आपको अजमेर का बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड याद होगा, जिसमें काफी समय तक इसलिए कार्यवाही नहीं हो पा रही थी, क्योंकि यौन शोषण की शिकार लड़कियां लोकलाज व बदनामी के डर से सामने ही नहीं आ रही थीं।
मजाकिया वीडियो का चलन मारवाड़ी, हरयाणवी व पंजाबी भाषा में भी आ गया है। उनमें से कुछ तो नैतिकता की सीख के लिए होते हैं, मगर अधिसंख्य में वही घटियापन दिखाई देता है। एक-दो ऐसे वीडियो मेकर ऐसे हैं, जिनका काम ही है, जहां लड़की दिखी, वहीं लाइन मारना और अश्लील शरारत करना। समझ में ही नहीं आता कि आखिर मनोरंजन के नाम पर किस प्रकार खुलेआम कुसंस्कृति की ओर धकेला जा रहा है।

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