लाडनूं। सुधर्मा सभा मे चातुमार्सिक प्रवास के दौरान प्रवचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि समता से अहिंसा की साधना की जा सकती है। भगवान महावीर के जीवन दर्शन को साधना का पथ बताते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने उनके द्वारा किये गये तप को समता की साधना बताया। आचार्य श्री ने कहा कि जैन शासन में अहिंसा पर सूक्ष्म विवेचन किया गया है। धर्म के आधार बताते हुए आचार्य श्री ने कहा अहिंसा, संयम एवं तप को धर्म का आधार बताया है। इसके आधार पर ही साधना के पथ पर आगे बढा जा सकता है।
आचार्य श्री ने श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा का उल्लेख करते हुए दिगम्बर आचार्य विद्यानन्द जी के साथ समय समय पर हुई वार्ता का उल्लेख किया। उन्होनें कहा कि सभी प्राणियों को अपने समान समझकर आचरण करने वाला व्यक्ति की सही मायने में धार्मिक हो सकता है।
इस अवसर पर आचार्य श्री ने ज्ञान की चर्चा करते हुए कहा कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के वद्र्वमान ग्रंथागार में महत्वपूर्ण ग्रंथ एवं हस्तलिखित प्राचीन पाण्डुलिपियां सहित साहित्य का बडी मात्रा में संग्रह है, ज्ञान के आराधक व्यक्ति को इसका उपयोग करना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री ने कहा कि वे दक्षिण भारत की यात्रा करना चाहते है। उन्होनें कहा कि वहां पर तीन चातुर्मास करने की भी संभावना है। ज्ञात रहे आचार्य श्री का आगामी चातुर्मास दिल्ली में होगा। कार्यक्रम के दौरान दिगम्बर समाज से जुडे अनेक लोगों ने भाग लिया। कार्यक्रम मेें साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा, मंत्री मुनि सुमेरमल आदि ने भी संबोधित किया।
-डॉ वीरेन्द्र भाटी मंगल,
जनसम्पर्क समन्वयक,
जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं
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