काश! परिन्दों के भी वोट होते…तो बाघ-मोर की संख्या कम न होती

jaipur newsजयपुर। राजनेता चुनाव में मत प्राप्त करने के लिये तरह-तरह के प्रलोभन देकर दर-दर शीश नवा याचना कर वोट मांग रहे हैं। जीतने के बाद विकास के झूठे वादे कर सब्जबाग भी दिखा रहे है। मेनका गांधी के वन्य जीव संरक्षण संगठन पीपुल फॉर एनीमल्स के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल के घोषणा पत्र में प्रकृति, पर्यावरण, पृथ्वी, पानी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी के संरक्षण के लिये कोई ठोस जिक्र तक नहीं है। जाजू ने आगे कहा कि वोटों की राजनीति के चलते समूचे देश में प्राकृतिक विनाश के कारण अनेक आपदाओं से रूबरू होना पड़ रहा है। भारत सरकार ने 1988 में राष्ट्रीय वन नीति बनाकर 33 प्रतिशत धरती को वनो से आच्छादित करने का वादा किया था। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण भारत सरकार के बजट में वनों को बढ़ाने व वनों व वन्य जीवों को बचाने के लिए टोटल बजट का 1 प्रतिशत भी बजट नहीं है। जापान की मदद से भारत में वनों के लिए पिछले कई वर्षों से कागजों में काम हो रहा है।  वहीं प्रमाणित आंकड़ो के अनुसार विभाग की मिलीभगत से 20 लाख हेक्टेयर वनभूमि पर लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। जाजू ने आगे कहा कि यदि वास्तविक अतिक्रमण पर नजर डाली जाए तो लगभग 1 करोड़ हेक्टेयर वनभूमि पर अतिक्रमण है।  दूसरी ओर वोटों की खातिर देश मंे करोड़ों हेक्टेयर वनभूमि वनाधिकार कानून 2006 के अन्तर्गत पट्टे दे दिये गये हैं। राष्ट्रीय पशु बाघ जिसकी संख्या 1951 में 40 हजार थी जो घटकर सरकारी आंकड़ों में 1706 व वास्तविक संख्या 1000 के लगभग ही है। राष्ट्रीय पक्षी मोर की संख्या अत्यधिक शिकार व मोर पंखो की बिक्री व परिवहन पर छूट के चलते 40 प्रतिशत रह गई है। राष्ट्रीय वृक्ष बरगद भी पहले से कम दिखाई देने  लगे हैं। वन्य जीव प्रेमी जाजू ने कहा कि काश ! परिन्दों के भी वोट होते तो निश्चित रूप से राजनेता शायद इनके संरक्षण के लिए कुछ उपाय भी करते व वोट प्राप्त करने के लिए इन्हें आरक्षण देने का वादा भी करते व बाघ और मोरों की संख्या में भी कमी नहीं होती।

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