सुप्रीम कोर्ट ने तीस साल के लिए की जलमहल की लीज

jalmahalजयपुर। जलमहल लीज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लीज की अवधि 30 साल कर दी है। लीज पहले 99 साल के लिए थी। धरोहर बचाओ समिति की अपील पर न्यायमूर्ति ज्ञानसुधा मिश्र की पीठ ने यह फैसला सुनाया। इस मामले में राज्य सरकार को कोई भी फैसला करने के लिए अधिकृत किया गया है। सरकार चाहे तो लीज रद्द भी कर सकती है, अदालत इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जलमहल के पास की 100 एकड़ जमीन में से भी करीब 13.15 एकड़ जमीन को कम कर दिया है। इस तालाब की जमीन का कोई नहीं उपयोग कर सकता। साथ ही भराव क्षेत्र की 14 एकड़ जमीन पर कोई निर्माण नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने 99 साल की लीज अवधि को 30 साल करते हुए कहा कि यह आदेश की तिथि से प्रभावी होगी। साथ ही कहा कि 30 साल की अवधि के बाद भी यदि लीज का नवीनीकरण होता है तो जलमहल रिसोर्ट को प्राथमिकता दी जाएगी और यदि लीज की अवधि नहीं बढ़ाई जाती है तो उस स्थिति में सरकार कंपनी को प्रोजेक्ट पर खर्च की गई राशि मुआवजे के तौर पर देगी। दरअसल 2005 में तत्कालीन सरकार ने जलमहल रिसॉर्ट प्राइवेट लिमिटेड की यह जमीन 99 साल के लिए लीज पर दी थी। इसका धरोहर बचाओ समिति सहित कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने विरोध किया था। मामला अदालत में पहुंचा, तो हाइकोर्ट ने 17 मई 2012 को इस लीज को स्थगित कर दिया। मामले में आइएएस विनोद जुत्शी, आरएएस हृदयेश कुमार,  आरटीडीसी के तत्कालीन एमडी राकेश सैनी और जवाहरात कारोबारी नवरत्न कोठारी पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था। नवरत्न कोठारी फिलहाल जमानत पर हैं। उनकी गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोई ने रोक लगा रखी है।

जलमहल की सौ एकड़ जमीन को निजी कंपनी को 99 साल की लीज पर सौंपा गया था। इस जमीन पर सात सितारा होटल सहित अन्य निर्माण किए जा रहे थे। इसकी वजह से झील की भराव क्षमता कम हो गई थी। जलमहल की जमीन लीज पर देने के खिलाफ एडवोकेट भगवत गौड़ सहित अन्य संगठनों ने याचिका दाखिल की थी। झील मामले की सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने जमीन को लीज पर देने को गलत ठहराते हुए सभी निर्माण हटाकर पूर्व के स्वरूप में लौटाने के आदेश दिए थे। इसके खिलाफ कंपनी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल थी।

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