
मुख्य सचिव राजीव महर्षि ने हाईकोर्ट में पेश अर्जी में माना है कि वास्तव में मीणा व मीना एक ही हैं और दोनों शब्दों में अंग्रेजी व हिंदी में लिखने के कारण ही फर्क है। हिंदी में मीना व मीणा लिखने पर “मी” अक्षर समान है। अंग्रेजी में भी “एमआई” “मी” व “एमईई” “मी” लिखने पर उच्चारण में शब्द समान है। दूसरी तरफ अंग्रेजी में “एनए” का उच्चारण तो ना है, लेकिन हिंदी में बदलकर एक “ना” तो दूसरा “णा” हो जाता है।
यानी एमआईएनए का उच्चारण मीना और एमईईएनए का उच्चारण मीणा होता है। मुख्य सचिव (सीएस) का कहना है कि यह केवल स्पेलिंग का फर्क है, इसलिए बोलने में उच्चारण बदल रहा है, जबकि दोनों हैं एक ही। न ही आज तक किसी मीना जाति वाले ने मीणा उपनाम इस्तेमाल करने वालों के मीना जाति का नहीं होने की शिकायत ही की है।
सीएस ने यह अर्जी हाईकोर्ट जोधपुर में लंबित सुगनलाल भील की याचिका में 18 फरवरी, 2014 का आदेश वापस लेने के लिए दायर की है। इस आदेश से कोर्ट ने सीएस को मीणा-मीना विवाद को तय करने के निर्देश दिए थे।
अधिसूचना और कथन
केंद्र की 18 जून,1976 की अधिसूचना में अंग्रेजी में मीना लिखा है। अक्टूबर, 1979 के हिंदी वर्जन में भी मीना ही है। इस आधार पर कहा जा रहा है कि मीणा जाति एसटी नहीं है। सीएस का कहना है कि राजस्थान सरकार की 11 फरवरी, 1950 को अंग्रेजी की अधिसूचना में मीणा व हिंदी वर्जन में मीना शब्द है। संविधान के अनु.-342 के तहत जारी अधिसूचना में भील मीना व मीणा हैं व इन्हें एसटी माना है। जयपुर स्टेट की 12 अगस्त, 1943 की अधिसूचना में अंग्रेजी में मीना व हिंदी में मीणा है।
तो एसबी न करे सुनवाई
सीएस यह भी कहना है कि इस विवाद को सुलझाना राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का काम है। कैप्टन गुरविंदर सिंह मामले में डीबी यह विष्य सुन रही है। हाईकोर्ट एक सितंबर को मीणा-मीना विवाद के आपराधिक मामले में जयपुर-जोधपुर में विवाद से संबंधी सभी आपराधिक व सिविल याचिकाओं को वृहद पीठ में भेजने के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने को कह चुका है।
मीणा के मीना बनने पर लगी पाबंदी-
विवाद सामने आने के बाद मीणा उपनाम इस्तेमाल करने वालों ने मीना उपनाम से जाति प्रमाण-पत्र बनवाने शुरू कर दिए थे। सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग के प्रमुख सचिव ने 30 सितंबर को ऎसे प्रमाण-पत्र जारी करने पर पाबंदी लगा दी। मीणा जाति को एसटी श्रेणी से बाहर करने की मांग वाली कैप्टन गुरविंदर सिंह की याचिका में प्रार्थी ने हाईकोर्ट में ऎसे करीब 450 जाति प्रमाण-पत्र पेश किए हैं। याचिका में कहा है कि “मीना” एसटी है न कि “मीणा”। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार मिलती-जुलते नाम की जाति भी एससी या एसटी श्रेणी का लाभ नहीं ले सकती। http://news4rajasthan.com/