मुआवज़ा राशि देने में बरत रही कोताही
· सभी सिलिकोसिस पीड़ितों को मिले खाध्य सुरक्षा और पेंशन का लाभ
· एक तय समय सीमा में हो जांच, मिले प्रमाण-पत्र व मुआवज़ा
· जिला स्तर पर हो मेडिकल बोर्ड का प्रावधान
· खदान मालिकों पर लगे अंकुश – वेट ड्रिलिंग, सक्शन डीवाइसेज़ और मजदूरों को मास्क उपलब्ध कराने की हो अनिवार्यता
· सिलिकोसिस की रोकथाम एवं क्षतिपूर्ति देखने के लिए एक संयुक्त टास्क फाॅर्स गठित हो
जयपुर, 14 जून / बूंदी जिले के तालेडा ब्लॉक के धनेश्वर गाँव के भवाना भील की सिलिकोसिस बीमारी के चलते सात माह पहले मौत हो गयी. नियमानुसार इलाज के दौरान एक लाख रूपए की सहायता राशि उन्हें मिली लेकिन मृत्यु के बाद तीन लाख रुपये मुआवजा राशि के रूप में जो उनके परिवार को मिलने चाहिए थे वह आज तक नहीं मिले. भवाना की साठ वर्षीया पत्नी प्रेम देवी पिछले सात माह से इस मुआवज़ा राशि को प्राप्त करने के लिए दर-दर भटक रही है. बूंदी जिले की ही सुगना देवी को तो अपने सिलिकोसिस-ग्रस्त पति के इलाज के लिए एक लाख रुपये की सहायता राशि भी नहीं मिली और एक महीने पहले उनके पति तेजकरण की मौत हो गयी. जोधपुर के शेरगढ़ तहसील के जेठाराम को गत वर्ष 25 जुलाई को ही सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित होने का प्रमाण-पत्र मिल गया था. वह अपना इलाज भी करवा रहे हैं लेकिन अभी तक एक लाख रुपये की सहायता राशि उन्हें नहीं मिली.
प्रदेश के कई जिलों जैसे अजमेर, सिरोही, उदयपुर, बूंदी, कोटा, करौली, जोधपुर, नागौर, बारां आदि से 100 से भी अधिक सिलिकोसिस पीड़ित आज यहाँ शहीद स्मारक पर ‘जवाब दो’ धरने में स्वास्थ्य एवं विशेषतः सिलिकोसिस के मुद्दे पर हुई जनसुनवाई में जुटे जहाँ उन्होंने अपनी व्यथा बयां की. जनसुनवाई में आये इन सिलिकोसिस पीड़ितों का कहना था कि हमारे जिलों में सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित लोगों के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है. यह बीमारी भयावह रूप ले चुकी है. कई सिलिकोसिस पीड़ितों को सिलिकोसिस-ग्रस्त होने के प्रमाण पत्र ही नहीं मिल पा रहे हैं तो कई लोग ऐसे हैं जिन्हें प्रमाण-पत्र मिलने के बावजूद इलाज के दौरान मिलने वाली सहायता राशि नहीं मिली है.
मौत हुई 24 की, मुआवज़ा मिला एक को
खान श्रमिकों के मुद्दों पर काम करने वाले सरफ़राज़ शेख ने बताया कि पिछले छः महीनों में सिरोही जिले के विभिन्न क्षेत्रों में 484 श्रमिकों की जांचें हुईं जिनमें 245 लोग सिलिकोसिस से पीड़ित पाए गए. इनमें से अब तक 145 लोगों को ही सिलिकोसिस ग्रसित होने के प्रमाण-पत्र मिल पाए हैं. इनमें से सिर्फ़ एक ही व्यक्ति को मुआवज़ा मिला है जबकि इस दौरान 24 पीड़ितों की मौतें हो चुकी हैं.
समय पर मिले मुआवज़ा तो करवाएं इलाज
जोधपुर जिले में वर्ष 2010 से लेकर अब तक 2047 सिलिकोसिस के मामले देखने में आये हैं. इनमें से सिर्फ 463 पीड़ितों को ही अब तक सहायता राशि मिली है. 1274 ऐसे लोग हैं जो आज तक सहायता राशि मिलने की बाट जोह रहे हैं. इनमें से 307 मामले तो पिछले तीन महीनों के हैं. खान श्रमिकों के साथ काम करने वाले महेंद्र ने बताया कि इस दौरान 182 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन इनमें से सिर्फ 82 मृतकों के परिवारों को ही अब तक सहायता राशि मिली है.
बारां जिले के किशनगंज ब्लॉक में निवासरत खैरुआ समाज सबसे ज्यादा सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित है. इस ब्लॉक के पींजना, खैरपुर, बजरंगगढ़, हथियादेह और बिलासगढ़ व शाहाबाद ब्लॉक के स्वांस गाँवों के खैरुआ समाज के लोग अधिकांशतः खनन कार्यों में जुड़े हुए हैं. क्षेत्र में कार्यरत संकल्प संस्था के गजराज मेहता ने बताया कि उन्होंने पिछले एक वर्ष में 80 परिवारों का सर्वे करवाया और उनमें से 12 लोग सिलिकोसिस पीड़ित पाए गए. इनमें से मात्र दो लोगों को प्रमाण-पत्र मिला है लेकिन मुआवज़ा राशि के लिए ये पीड़ित इंतज़ार कर रहे हैं. बाकी दस पीड़ितों को अभी तक प्रमाण-पत्र भी नहीं मिल पाया है.
जन सुनवाई में पैनल वक्ता के तौर पर भागीदारी निभा रहे खान श्रमिकों के मुद्दों पर कार्यरत राना सेनगुप्ता ने कहा कि यहाँ आज सिर्फ वे सिलिकोसिस पीड़ित आ पाए हैं जो चलने-फिरने और बात करने की स्थिति में हैं वरना तो हजारों ऐसे पीड़ित हैं जिन्होंने इस बीमारी के चलते खाट पकड़ ली है और जो कुछ बोल पाने की स्थिति में भी नहीं है. जन स्वास्थय अभियान, पुणे के डॉ. अभय शुक्ला ने कहा कि मैं ये जानकर हैरान हूँ कि राजस्थान में सिलिकोसिस के इतने भयावह हालात हैं और इससे भी चौंकाने वाली बात है कि सरकार इन सब विषयों को लेकर इतनी असंवेदनशील है कि सिलिकोसिस के प्रमाण-पत्र मिलने के बावजूद कई महीनों तक पीड़ितों को सहायता राशि नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि सरकार एक समय सीमा बनाकर इन सब मामलों का निस्तारण करे.
सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान की ओर से
मुकेश – 9468862200, कमल – 9413457292,
बाबूलाल नागा – 9829165513