पशुधन/ पशुपालकों के हित में 100 करोड़ का प्रावधान

( मोहन थानवी )
खुरपका और मुंहपका मतलब घाव करे गंभीर…
( पशुपालकों के लिए ही नहीं; आम आदमी के लिए भी जरूरी है पशुओं का स्वस्थ रहना )

मोहन थानवी
मोहन थानवी
पशुओं के स्वास्थ्य पर केवल पशुपालक ही ध्यान देते हों; ऐसा कतई नहीं है। सरकार भी अपने खजाने का मुंह पशुधन के लिए खोलती रहती है। सरकार ने 100 करोड़ रुपए उपलब्ध करवा कर मंशा रखी है कि 2016-17 के दौरान राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत (एफएमडी-सीपी के अंतर्गत नॉन कवर) राज्‍यों में एफएमडी टीकाकरण प्रारंभ किया जाए ।
दरअसल खुरपका और मुंहपका रोग सभी संवेदनशील खुरवाले पशुओं को प्रभावित करने वाला, आर्थिक रूप से अत्‍यधिक हानि पहुँचाने वाला संक्रामक वाइरल रोग है। इस रोग से पशुओं के ग्रसित होने के फलस्वरूप पशुपालकों के साथ साथ आम जन को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। कारण साफ है – पशु के बीमार होने पर उसकी उपयोगिता प्रभावित होगी; उत्पादन कम होगा। महंगाई बढ़ेगी। सबकी जेब पर भार बढ़ेगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अनुमानों के अनुसार दूध तथा मीट के कारण वार्षिक रूप से 20,000 करोड़ रुपए तक की प्रत्‍यक्ष हानि होती है। यदि कार्य क्षमता में कमी; गर्भपात, अनुवर्ती बांझपन तथा बंध्‍यता (जिसके कारण बाद में दूध उत्‍पादन में कमी हो जाती है) के कारण होने वाली अप्रत्‍यक्ष हानियों को जोड़ा जाए तो ये हानियां कहीं अधिक होंगी।

खुरपका तथा मुंहपका रोग के कारण होने वाली आर्थिक हानियों को रोकने के लिए 10वीं योजना अवधि से एक अवस्थिति विशिष्‍ट ‘खुरपका तथा मुंहपका रोग नियंत्रण कार्यक्रम(एफएमडी-सीपी)’ नामक कार्यक्रम कार्यान्‍वयनाधीन है।

कम हुआ रोग का प्रकोप :–
धीरे-धीरे एफएमडी-सीपी को 11वीं तथा 12वीं योजना अवधि के दौरान विस्‍तारित किया गया। अत: आज की स्थिति के अनुसार इसके अंतर्गत 13 राज्‍यों तथा 6 संघ राज्‍य क्षेत्रों के 351 जिले, नामत: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्‍ट्र, केरल, तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश, कर्नाटक, गोआ, राजस्‍थान, बिहार, पुदुचेरी, दिल्‍ली, अंडमान और निकोबार, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव और लक्षद्वीप आते हैं। शेष राज्‍यों को चरणबद्ध रूप से कवर करने के लिए इस कार्यक्रम के क्षेत्र को विस्‍तारित किया जाएगा ताकि संसाधनों की उपलब्‍धता के आधार पर एमएमडी-मुक्‍त जोन के सृजन हेतु इच्‍छ‍ित परिणाम प्राप्‍त करने के लिए भौगोलिक रूप से सन्निहित क्षेत्र बनाया जा सके। राज्‍यों में एफएमडी-सीपी के ठोस कार्यान्‍वयन से रोग का प्रकोप, विशेषरूप से एफएमडी-सीपी राज्‍यों में, काफी कम हो गया है। उदाहरण के तौर पर 2012 में देश भर में 879 एफएमडी के प्रकोप सूचित किए गए थे, जो 2015 में कम होकर 109 रह गए।

ये है संकल्पना :–
इस रोग के नियंत्रण की आर्थिक महत्‍ता को देखते हुए विभाग ने अगले कुछ वर्षों में ‘’एफएमडी मुक्‍त भारत’’ की संकल्‍पना की है। तथापि, 16 राज्‍यों और 1 संघ राज्‍य क्षेत्र को अभी भी छमाही अंतराल वाले सघन एफएमडी टीकारण कार्यक्रम के अंतर्गत कवर किया जाना शेष है। अत: अब यह निर्णय लिया गया है कि 2016-17 के दौरान राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत इन राज्‍यों में एफएमडी टीकाकरण प्रारंभ किया जाए।

इन्हें किया टीकाकरण का आग्रह :–
प्रारंभत: 16 राज्‍यों तथा एक संघ राज्‍य क्षेत्र, अर्थात् असम, अरूणाचल प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, जम्‍मू और कश्‍मीर, झारखंड, मध्‍य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्‍तराखंड, पश्चिम बंगाल तथा संघ राज्‍य क्षेत्र चंड़ीगढ़ के लिए आरकेवीवाई के अंतर्गत एफएमडी नियंत्रण हेतु 100.00 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। राज्‍य-वार आबंटन के बारे में संगत राज्‍य सरकारों तथा राज्‍यों को पहले ही सूचित किया जा चुका है तथा उनसे अनुरोध किया गया है कि आरकेवीवाई के अंतर्गत सहायता प्राप्‍त करके एफएमडी टीकाकरण प्रारंभ करें।

error: Content is protected !!