गोपालसिंह रावतपुरा
अजमेरनामा फलसूण्ड़ भिणियाणा तहसील मुख्यालय पर बाल श्रमिक अधिनियम की सरेआम धज्जियां उड़ रही है।देश की आजादी के ६५साल बाद भी मासूम बच्चों की गरीबी का सरेआम माखौल बनाकर शोषण किया जा रहा है।जिनके हाथों में कलम और पुस्तकें होनी चहिये मजबूरी एवं हालातों के चलते उन हाथों में कुदार फावडी़ या तगडी दिखती है।इसके अलावा भारी संख्या में मासूम बच्चे कचरों के ढेर पर अपना भविष्य तलाशते नजर आ रहे है।इस ओर ना तो समाज कल्याण और ना श्रम विभाग ध्यान दे रहा है।और ना ही प्रशासन कहने को तो भारत भले ही विकास की ओर अग्रसर है परन्तु नोनिहालों के एक बडे तबके को पढने लिखने के बजाये दो पैसे कमाकर पेट पालने की चिन्ता सताती दिखाई दे रही है।
इन बच्चों का शोषण कर होटलों रेस्टोरेन्टों चाय की थाडियों तथा अपनी दुकानों पर दिन भर की कडी मेहनत करवाकर चंद रूपये मेहनताने के रूप में थमा रहे है। यही नही काम ना करने पर इन चाय की थडियों पर बालश्रम करते मासूम बच्चों को ग्रहाकों द्वारा बेइज्जत भी किया जाता है। एक और जहां सरकार शिक्षा का अधिकार कानून बनाकर प्रत्येक बच्चों को शिक्षा से जोडने के लिऐ विधालयों में प्रवेश लेने वाले बच्चों के लिऐ निशुल्क पुस्तकें वितरित करने सहित कई घोषणाऐ कर रही है।
वही दूसरी ओर गांव में दर्जनों बच्चे अलसुबह ही चाहे गर्मी,बरसात सर्दी हो अपनी आजीविका के चक्कर में कमर तोड मेहनत में जुड जाते है।ऐसे बच्चों को तनिक भी विधालय का ज्ञान नही है।गौरतलब है कि ऐसे गरीब बेसहारा व मजदूरी करने वाले बच्चों का कसूर बस इतना है कि वे गरीब है या फिर उन्हे सरकारी योजनाओं की जानकारी का आभाव है।समाज कल्याण,श्रम विभाग एवं जिला प्रशासन की अनदेखी के कारण बाल श्रमिक अधिनियम की सरेआम धज्जियां उड रही है।