न्यायिक निर्णयों में समानरूपता होनी चाहिए ताकि वकील, मुवक्किल, राजकीय अधिकारी व अन्य पक्षकार उसी के अनुरूप कार्य कर सके
(राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर का मामला)
जयपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के मुख्य न्यायाधीश श्री नवीन सिन्हा व श्री विजय कुमार व्यास ने पाथेय वेतन पर प्रधानाध्यापकों की पदावनति करने के मामले में एकल पीठ के निर्णय को निरस्त करते हुए राज्य सरकार निदेशक माध्यमिक शिक्षा व अन्य शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिया है कि मुख्य पीठ जोधपुर द्वारा इस मामले से सम्बन्धित अन्य याचिका में वरिष्ठता/ दक्षता सूची दिनांक 1-9-2015 के बारे में प्रस्तुत आक्षेप का निस्तारण कर चार माह में अन्तिम वरिष्ठता सूची जारी करे तथा अपीलार्थीगण की भी वरिष्ठता निर्धारित करे। उल्लेखनीय है कि अपीलार्थीगण हरीश पारीक व अन्य के द्वारा एकल पीठ के निर्णय को चुनौती देते हुए विशेष अपील याचिका माननीय न्यायालय के समक्ष अपने अधिवक्ता डी.पी.शर्मा के प्रस्तुत की गई। जिसके अनुसार अपीलार्थीगण प्रधानाध्यापक के पद पर लम्बे समय से कार्यरत है तथा उन्हें नियमानुसार वेतन नहीं दिया जा रहा और अब राज्य सरकार ने उन्हें पदावनति कर पुनः मूल पद पर प्रस्थापित करने के आदेश दिये है। जबकि विपक्षी विभाग द्वारा नियमानुसार पदोन्नति की प्रक्रिया पूर्ण नहीं की गई। नियमानुसार प्रत्येक वर्ष पद का निर्धारण होना आवश्यक है तथा उसके अनुसार विभागीय पदोन्नति समिति द्वारा पदोन्नत किया जाना आवश्यक है। खण्डपीठ ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के पश्चात् अपना मत व्यक्त किया कि एकल पीठ द्वारा निर्णय के प्रारम्भिक पेराग्राफ में यह अंकित किया कि मुख्य पीठ द्वारा समान प्रकृति के मामले में निर्णय हो चुका है जिसके तहत यह व्यवस्था थी कि अपीलार्थीगण पदावनति सम्बन्धी एतराज प्रस्तुत करे तथा सम्बन्धित अधिकारी उस पर निर्णय लेकर चार सप्ताह में अपीलार्थीगण को अवगत कराये। खण्डपीठ का यह मत था कि न्यायालयों के निर्णय में समानरूपता होनी आवश्यक है ताकि वकील, राजकीय अधिकारी व अन्य व्यक्ति यह जान सके कि कानून की सही स्थिति क्या है और उसके अनुरूप वकील अपने मुवक्किल को राय दे सके एवम् सम्बन्धित अधिकारी उसके अनुरूप कार्य कर सके। न्यायालय ने इसी आधार पर एकल पीठ के निर्णय को निरस्त करते हुए उक्त आदेश पारित किया।