डॉ. तैस्सितोरी की मूर्तिस्थल उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व पर कार्यक्रम

press-note-13-12-2016-photo-2बीकानेर/ 13 दिसम्बर/ सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर के तत्वावधान में इटली मूल के राजस्थानी विद्वान डॉ. एल. पी. तैस्सितोरी की 126 वीं वर्षगांठ पर स्थानीय म्यूजियम परिसर डॉ. तैस्सितोरी की मूर्तिस्थल उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व पर कवि-कहानीकर राजेंद्र जोशी की अध्यक्षता में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कहानीकार-व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा, विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध संगीतज्ञ डाँ.मुरारी शर्मा, समाजसेवी जमनादास सेवग के साथ कार्यक्रम के आरंभ में सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, साहित्यकारों एवं शोधार्थियों ने डॉ. तैस्सितोरी की मूर्ति पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित किए। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बुलाकी शर्मा ने कहा कि इटली निवासी विद्वान डॉ. तैस्सितोरी बीकानेर में रहते हुए राजस्थान के इतिहास, संस्कृति, साहित्य तथा पुरातत्व संबंधी शोध कार्य में तत्पर रहे। डॉ. शर्मा ने कहा कि उन्होनें यहां http://www.cialisgeneriquefr24.com/cialis-prix-quebec/ के ऐतिहासिक साहित्य हस्तलिखित ग्रन्थ, शिलालेख एवं जैन साहित्य को एक सूत्र में पिरो कर साहित्य मर्मज्ञों के लिए प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि बीकानेर के भ्रमण और यहां के इतिहास को पढ़ने से स्पष्ट हो गया कि यहां साहित्यक जागरूकता वर्तमान में भी है , और पूर्व में भी रही है ऐसे में बीकानेर की माटी से प्रेरणा लेकर डॉ. तैस्सितोरी ने राजस्थानी भाषा के लिए कार्य किया । जोशी ने कहा कि बीकानेर से लगाव होना अपने आप में किसी घटना से कमतर नहीं है । विशिष्ट अतिथि डॉ. मुरारी शर्मा ने कहा कि उदीने एवं बीकानेर को जुड़वां शहर के रूप में स्थापित करने के लिए नगर निगम एवं नगर के साहित्यकारों एवं कला साहित्य एवं संस्कृति जगत के लोगो को प्रयास करने की जरूरत है । समाजसेवी जमनादास सेवग ने कहा कि शोधार्थियों को डॉ. तैस्सितोरी के शोध कार्य का अध्ययन करना चाहिए और उनके द्वारा किए गये शोध से अपने द्वारा किये जाने वाले शोध को गुणवत्तायुक्त बनाया जा सकता है । उन्होंने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी भाषा के प्रति जुड़ाव के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में याद किए जाएगें । इस अवसर पर संस्कृतिकर्मी राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि अब समय आ गया है , जब राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल जानी चाहिए। वरिष्ठ चित्रकार मुरली मनोहर माथुर ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी राजस्थानी लोकगीतों के प्रेमी थे वे मूमल, मरवण, पद्मिनी आदि कथाएं और गीत सुनते और रात-रात भर गांवों में रहकर वहां की भाषा और संस्कृति का अध्ययन करते रहे है। भगवान दास पड़िहार ने कहा कि इटली निवासी डॉ. तैस्सितोरी राजस्थानी संगीत के भी प्रेमी थे । बी. एल. नवीन ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी ने अपनी मेहनत व लगन के बल पर राजस्थानी भाषा की व्याकरणात्मक अन्य साहित्यक कृतियों को सम्पादित किया । कार्यक्रम में साहित्यकार मौईनुद्दीन कोहरी, महावीर इन्टरनेशनल के उपाध्यक्ष देवेन्द्र कोचर, पुरुषोत्तम सेवग आदि अनेक वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व पर विचार रखे ।

मुरारी शर्मा

error: Content is protected !!