बीकानेर / 23 अप्रैल/ विश्व पुस्तक और प्रकाशनाधिकार दिवस पर मुक्ति संस्था द्वारा कवयित्री रजनी छाबड़ा का एकल कविता पाठ और उनकी कविताओं पर चर्चा का कार्यक्रम उनके निवास पर आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात व्यंग्यकार-कहानीकार बुलाकी शर्मा ने की तथा मुख्य अतिथि कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया थे।
मुक्ति के सचिव एवं कार्यक्रम के समन्वयक व मुख्य वक्ता कवि-कहानीकर राजेन्द्र जोशी ने कहा कि वर्तमान दौर में किताबें पढ़ना, उन्हें प्रकाशन करना-कराना और प्रकाशनाधिकार के प्रति पूरी दुनिया में लोगों के बीच जागरूकता के लिये यूनेस्को द्वारा प्रतिवर्ष 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक और प्रकाशनाधिकार दिवस मानया जाता है। यह सुखद संयोग है कि थार मरूस्थल की गोद में स्थित साहित्यिक-सांस्कृतिक राजधानी बीकाने को अपनी कर्मस्थली मान लंबे समय तक अध्यापन से जुड़ी रहने वाली और हाल में बेंगलूरु निवासी कवयित्री रजनी छाबड़ा हमारे समय की चर्चित रचनाकार हैं। जोशी ने कवियत्री रजनी छाबड़ा का विस्तार से परिचय देते हुए उनकी सृजन-यात्रा पर प्रकाश डालते हुए उन्हें बहुकलाओं और विधाओं में प्रवीण बताया। जोशी ने कहा कि रजनी जी कविता और साहित्य लेखन के साथ सामाजिक कार्य के रूप में अंक ज्योतिष से भी देश की सेवा कर रही हैं।
रजनी छाबड़ा ने अपनी सृजन प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए बताया कि उनके लिए कविता लिखना नित्यकर्म नहीं है हां वे कविताओं की रचना भूमि में विचरती हुई जब कभी भावों के आवेग को महसूस करती हैं तब कविता अपने आप कागज पर उतरती है। कविता लिखना उन्हें सुख देता है और जब भी वे कविता लिखती है तो उन्हें महसूस होता है कि उन्होंने खुद को लिखा है, रजनी छाबड़ा का मानना है कि किसी काव्य रचना में रचनाकार का अंश-दर-अंश खुद को लिखना ही जीवन की सार्थकता है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रख्यात व्यंग्यकार-कहानीकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि रजनी छाबड़ा की कविताओं में स्त्री मन की अपने परिवेश और घर-परिवार के साथ सार्थकता से अपने संसार के प्रति विभिन्न अनुभूतियां प्रकट होती है। कवयित्री की चिंता और चिंतन जीवन को निर्बाध गति से जीने का संदेश कहा जा सकता है।
मुख्य अतिथि कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने कहा कि रजनी छावड़ा की कविताओं में बगैर वैचारिक उलझाव के सहजता-सरलता में जीवन का उद्घाटित सच हमारा ध्यानाकर्षित करता है। वर्तमान समय में लिखी जा रही कविताओं में उन्होंने स्त्री मन को प्रामाणिकता से साथ अभिव्यक्त किया है। इस अवसर पर कवि-अनुवादक रवि पुरोहित ने रजनी छाबड़ा को स्त्री मन की निश्छल भावनों की कवयित्री बताते हुए कहा कि उनकी कविता में हिंदी-उर्दू से जिस काव्य भाषा का स्वरूप उभरता है उससे वे अलग से पहचानी जा सकती है।
कार्यक्रम में कवयित्री रजनी छाबड़ा ने अपनी प्रकाशित काव्य कृतियों ‘होने से न होने तक’ एवं ‘पिघलते हिमखंड’ से लगभग दो दर्जन कविताओं का वाचन किया।
(राजेंद्र जोशी)