किसान और व्यापारी दोनों है गुस्से में

कम भावों के बावजूद महंगाई जस की तस

baran samacharफ़िरोज़ खान
बारा 08 जून। अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे किसान और व्यापारी इन दिनों अपने हालात पर इस कदर परेशान है कि जहां किसान अपनी जिंस के भाव को लेकर सरकार पर गुस्से में है। वहीं पिछले दो वर्ष से व्यापारियों पर हो रही ज्यादती के कारण व्यापारियों का गुस्सा भी परवान पर है। किसान इस बात को लेकर परेशान है कि उसकी खून पसीने से तैयार की गई कृषि जिंस को इन दिनों कोडियों के भाव पर बेचना पड रहा है। उसके लिए भी उसे दिनों दिन कतार में लग कर अपनी जिंस को बेचने के लिए मजबूर होना पड रहा है। कृषि जिंसो के हालात इस कदर खराब है कि गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष चाहे चना हो गेहूं, धनिया हो या मेथी, सोयाबीन हो या सरसों या फिर हो लहसुन, सबके भावों के हालात इस कदर खराब है कि लागत मूल्य भी किसान को नही मिल पा रहा है। गत वर्ष लहसुन जब उच्चतम 14000 प्रति क्विंटल पर बिक गया। इस समय दो हजार रूपए क्विंटल भी कोई खरीदने को तैयार नही है। इससे भी बुरे हालात प्याज के है जो खुली मंडियों में पांच रूपए प्रति किलों बेचने पर किसान विवश है। गत वर्ष सोयाबीन के भाव जहां 3800 के आसपास थे। सरसों के भाव 5100 तक पहुंच गए थे। दोनों फसलों के भाव एक हजार से पन्द्रह सौ रूपए प्रति क्विंटल कम हो गए जिसकी किसान को मार झेलनी पड रही है। एक तरफ किसान की कृषि जिंस को कोई खरीददार नही मिल रहा जो खरीदार मिल रहे है वह मनचाही कीमत पर माल खरीदकर किसानों का शोषण कर रहे है। तो दूसरी ओर किसानों के माल की इस तरह बेकद्री के बाद भी आमजन को जो लाभ मिलने वाला था वह कहीं नही मिल पा रहा। पन्द्रह रूपए किलो का आटा 22 रूपए किलो, 40 रूपए किलो के चने का बेसन 80 रूपए किलो, तेल सरसो, सोयाबीन के भाव गिरने के बाद भी 100-120 रूपए लीटर। कहां मिल पा रहा है आमजन को कृषि जिंसों के गिरे हुए भावों का लाभ। लोग को वहीं महंगे भावों पर खाद्यान्न खरीदने को मजबूर है। दूसरी ओर व्यापारी भी इन दिनों इस कदर परेशान है कि जहां उसे जीएसटी का भय सता रहा है वहीं पहले नोटबंदी की मार ने व्यापारियों को खोखला कर दिया। नवम्बर में हुई नोटबंदी से अभी व्यापारी उभर भी नही पाया कि सरकार ने कारोबार पर जीएसटी लगाकर व्यापारियों को इंस्पेक्टरीराज की ओर धकेल दिया। छोटे से छोटे व्यापारी को भी सरकार को हिसाब देने के लिए मजबूरी में मुनीम रखना पडेगा। प्रत्येक महीने में तीन बार रिटर्न, एक साल में 37 रिटर्न कहां तक व्यापारी दे पाएगा। व्यापारियों का कहना है कि सरकार को जीएसटी लगाना था तो प्रारंभिक इकाई पर ही जीएसटी लगा देना चाहिए था। प्रत्येक स्तर पर जीएसटी व्यापारियों को परेशानी में डालने वाला कदम है। पहले से ही इंस्पेक्रीराज का खामियाजा व्यापारी भुगत रहा है। खाद्य विभाग, एक्साइज विभाग, वाणिज्य कर विभाग, शाॅप एक्ट, श्रम विभाग, फूड विभाग, माप एवं तोल बाट विभाग आदि से जूझ रहा था। गौरतलब है कि वर्तमान भाजपा सरकार ने शासन में आने से पहले देश व प्रदेश के मतदाताओं से वायदा किया था कि वह किसी भी हालत में कारोबारी क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व जीएसटी को नही घुसने देंगे लेकिन सरकार ने तीन साल में ही पूरे व्यापार क्षेत्र में जीएसटी व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमन्त्रित कर मतदाताओं के साथ वादाखिलाफी की। वहीं भाजपा ने किसानों को उत्पादन पर वाजिब मुनाफा जोडते हुए किसान को उसकी जिंस का बेहतर मूल्य दिलाने का वादा किया था, लेकिन यहां भी राज्य व केन्द्र सरकार पूरी तरह फेल नजर आ रही है। अब ऐसे हालात में व्यापारी और किसान जाएं तो कहां जाए। अपने आपको ठगे हुए महसूस कर रहे है।

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