बीकानेर, 27 जुलाई 2017। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संध केगच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सागर सूरिश्वरजी नेगुरुवार को बागड़ी मोहल्ले की ढ्ढढा कोटड़ी में श्रावक-श्राविकाओं के प्रश्नो का उत्तर देते हुए व प्रशमरति ग्रंथ कावाचन विवेचन करते हुए कहा कि अन्नदान, नेत्रादान,रक्तदान व देहदान आदि सभी प्रकार के दान पुण्य करतेवक्त व्यक्ति की भावना व भाव शुद्ध व उत्तम होने चाहिए।
गच्छाधिपति ने कहा कि अच्छे कार्य करते वक्तबुरे विचार आने पर कर्मों का बंधन हो जाता है तथा अच्छेकार्यों का वास्तविक लाभ व्यक्ति को नहीं मिलता। पुण्यकार्यों में भाव व भावना महत्वपूर्ण है। काम,क्रोध, लाभ, मोहआदि से वशीभूत होकर दान व सेवा कार्य से कोई प्रतिफलनहीं मिलता वहीं पाप का बंधन बंधता है। भाव व भावना केअनुसार ही व्यक्ति पुण्य व सेवा कार्यों से कर्मों की निर्जराकरता है।
आचार्यश्री ने कहा कि अनुकंपा जैन दर्शन काप्राण है। अनुकंपा के माध्यम से जैन धर्मावलम्बी अहिंसापरमोधर्म के नियमों की पालना करता है तथा हर प्राणी कासंभव दुख दूर करने व जीवन दान के लिए संकल्प के साथकार्य करता है। कोई व्यक्ति किसी को सेवा का मौका देता हैतब वह उस पर उपकार करता है। दुखी व्यक्ति के दुख कोदूर करने के भाव व्यक्ति में होने चाहिए।
चातुर्मास व्यवस्था कमेटी के अशोक पारख नेबताया कि आचार्यश्री शुक्रवार को सुबह नौ से दस बजे तकढ्ढढा कोटड़ी में भगवान नेमीनाथ के जन्म कल्याणक परविशेष प्रवचन करेंगे। शाम को ढढ्ढा कोटड़ी में भगवाननेमीनाथ के जीवन आदर्शों पर आधारित नाटक का मंचनकिया जाएगा। शनिवार को जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ दिवसमनाया जाएगा तथा 30 जुलाई को आचार्यश्री बालिकाओं केलिए विशेष प्रवचन करेंगे। गुरुवार को साध्वीश्री प्रियमुद्रांजनाश्रीजी की महामृत्युंजय तप मसाक्षमण तपस्या केउपलक्ष्य में 56 दिवसीय पंचाहिन्का महोत्सव 29 जुलाई से2 अगस्त तक आयोजित किया जाएगा। महोत्सव के दौरानसुगनजी महाराज के उपासरे में विशेष पूजाएं होगी। तपस्वीसाध्वीजी की शोभायात्रा व तप अभिनंदन समारोह एकअगस्त को होगा। पांच दिवसीय कार्यक्रमों में हिस्सा लेने केलिए देश के विभिन्न इलाकों से श्रावक-श्राविकाएं बीकानेरपहुंचने शुरू हो गए है। गुरुवार को साध्वीश्री के 25 दिन कीतपस्या की अनुमोदना जयकारों से की गई।
– मोहन थानवी