बीकानेर, 29 जुलाई 2017। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गच्छाधिपति, आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सागर सूरिश्वरजी ने कहा है कि जैन धर्म में खरतरगच्छ का अपना एक गौरवभरा अतीत है। अतीत की रोशनी हमें अनादिकाल तक रोशन करती रहेगी। संघ में अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने अपनी बौद्धिक प्रतिभा, अनूठी क्षमता व समर्पण से इतिहास का नवसर्जन किया। हमें उनसे प्रेरणा लेकर वीतराग परमात्मा के शासन व खरतरगच्छ संघ के महापुरुषों से प्रेरणा लेकर बेहतर वर्तमान का निर्माण करना है। हमारे महापुरुषों की ओर से प्रतिष्ठित थाती, इतिहास व संस्कृति को कायम रखना है।
आचार्यश्री शनिवार को बागड़ी मोहल्ले की ढढ्ढा कोटड़ी में ’’खरतरगच्छ दिवस’’ पर विशेष प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जिन शासन की धुरा को समन्वित रूप से थामे रखने में आदिकाल से खरतरगच्छ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आदि पुरुष आचार्य जिनेश्वरसूरि ने शिथिलाचार के विरुद्ध शुद्ध चारित्र धर्म का क्रांति बिगुल फूंका, उसी के फलस्वरूप खरतरगच्छ का प्रार्दुभाव ग्यारवीं सदी में हुआ। खरतरगच्छ यानि शास्त्रीय प्ररुपणाओं का मूल्य और महत्व देने वाला गच्छ। ज्ञान, ध्यान और चारित्र के अमृत जल से शासन की जड़ों का सींचने वाला गच्छ।
गच्छाधिपति ने कहा कि खतरगच्छसंघ में एक से बढ़कर एक धुरन्धर विद्वान, चारित्राप्रिय और क्रियानिष्ठ महापुरुष हुए जिन्होंने अपने दिव्य साधना बल और प्रचण्ड पुरुषार्थ से गच्छीय गरिमा के अमिट शिलालेख अंकित किए। नव अंगों पर वृत्ति रचने वाले अभय देव इसी गच्छ में हुए तो एक साथ सर्वाधिक बारह सौ दीक्षाएं करवाने का गौरव जिनदत्त सूरिश्वर के नाम है। उन्होंने कहा कि जगह जगह पर ज्ञान भंडारों की स्थापना करने वाले जिनभद्र इसी निर्मल नदी की एक धारा है तो आठ अक्षर के आठ लाख से अधिक अर्थ करने वाले समयसुंदरोपाध्य भी खतरगच्छ की प्रखर परम्परा में हुए। अभयदेव सूरि, जिनवल्लभ सूरि, दादा गुरुदेव जिनदत्त सूरि, दादा गुरुदेव जिन कुशल सूरि यदि हजारों-लाखों परिवारों को जैन धर्म में दीक्षित नहीं करते जो संभवतः जैन संघ आज इतना व्यापक नहीं होता । खरतरगच्छ के गौरव पुरुषों ने बादशाह अकबर से लेकर शताधिक राजाओं एवं राज मान्य पुरुषों को प्रतिबोध दिया, यह उनके प्रभुत्व का साक्ष्य है।
इस अवसर पर वीडियों के माध्यम से पावर प्रजेन्टेशन के माध्यम से साहित्यकार मुनि मनित कुमार ने दादा गुरुदेव की स्तुतियों को सामूहिक रूप से करवाते हुए खरतरगच्छ संघ के आदि आचार्यश्री जिनेश्वर सूरि से लेकर अब तक के आचार्यों, चारों दादा गुरुओं, खरतरगच्छीय पट्ट परम्परा, विशिष्टताओं, शासन प्रभावक कार्यो, आश्चर्यजनक घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सागर सूरिश्वर की ओर से संघ के गौरव को बढ़ाने के लिए किए गए कार्यों से भी अवगत करवाया। पावर प्रजेन्टेशन के दौरान मुनिश्री मनित प्रभ सागर के नेतृत्व में ’’सूरि जिनेश्वर अधिपति, गण खरतर आधार। राजा दुर्लभ ने कहा, खरा शुद्ध आचार। ’’ व ’’ सुमिरण से संकट मिटे, मणिधारी शुभ नाम,ध्यावे जो गुरुदेव को, बनते बिगड़े काम’’ व आदि स्तुतियों को उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक सस्वर गाया।
मुनिश्री ने कहा कि खरतरगच्छ के हुए आचार्याें व महापुरुषों ने सैंकड़ों राजाओं को प्रभावित किया, जिसने सिद्धान्तों और शास्त्रों में कभी समझौता नहीं किया और तीर्थ निर्माण, जैन निर्माण, संत निर्माण और ग्रंथ निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विधि पक्ष, सुविहित मार्ग और राजगच्छ के नाम से पूर्वकाल में विख्यिात यह गच्छ शुरू से ही व्यसन मुक्ति, जीवन शक्ति और शासन भक्ति का संदेश देता रहा है। मुनि विरक्त प्रभ सागर व साध्वीश्री प्रिय स्वर्णनांजनाश्रीजी ने भी खरतरगच्छ की विशिष्टताओं से अवगत करवाया। जैन श्वेताम्बर तपागच्छ के मुनिश्री पुण्डरीक रत्न विजय भी समारोह में विशेष रूप में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय व परिस्थितियों में सम्प्रदाय व गच्छ से ऊपर उठकर भगवान महावीर के सिद्धान्तों को सामूहिक रूप से प्रतिष्ठत करने की आवश्यकता है।
समारोह में गुरुवार को भगवान नेमीनाथ के जीवन आदर्शों पर आधारित ढाई घंटें के नाटक का निर्देशन करने वाली मुंबई की डाॅ.प्रेमलता ललवानी व बाबूलाल ललवानी का अभिनंदन मनोज सेठिया आदि ने किया।
पंचाहिन्का महोत्सव-आचार्यश्री मणि प्रभ सागर सूरिश्वरजी के सान्निध्य में महामृत्युंजय तप मासक्षमण की तपस्या के उपलक्ष्य में शनिवार को रांगड़ी चैक के सुगनजी महाराज के उपासरे में श्री पाश्र्वनार्थ पंच कल्याणक पूजा भक्ति संगीत कि साथ आयोजित की गई। पूजा का लाभ राजेन्द्र कुमार, ऋषभ कुमार लूणिया परिवार ने लिया। रविवार को महोत्सव के तहत उपासरे में ही दोपहर दो बजे पंच परमेष्ठि पूजा होगी।
पति-पत्नी ने की तपस्या- आचार्यश्री के सान्निध्य में 11 गणधर की तपस्या करने वाले गुलाब चंद खजांची व उनकी पत्नी ने 7 दिन की तपस्या की। शनिवार को तपस्या का पारणा जैन विधि अनुसार किया गया। आचार्यश्री की निश्रा में आठ दिन की तपस्या करने वाली मधु मुसरफ पत्नी संदीप मुसरफ की शोभायात्रा रविवार को सुबह आठ बजे बेगाणी मोहल्ले से रवाना होकर विभिन्न जैन बहुल्य मोहल्लों में होते हुए व जैन मंदिरों में दर्शन करते हुए ढढ्ढा कोटड़ी पहुंचेगी, जहां तपस्वी आचार्यश्री सहित चतुर्विद संघ से आशीर्वाद लेगी। जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के पूर्व मंत्री गेवर चंद मुसरफ ने बताया कि औद्योगिक क्षेत्र के भोमिया भवन में तपस्या पारणे व साधार्मिक वात्सल्य का आयोजन रखा गया है।
– मोहन थानवी