ग्रामसभाओं को मिला शराबबंदी लागू करने का अधिकार

राजस्थान के आदिवासी बहुल जिलें सिरोही, प्रतापगढ़, उदयपुर, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले की पंचायत समितियों में लागू होने वाले ‘पेसा कानून’ से ग्रामसभाओं को कई शक्तियां मिलेगी।

ग्रामसभाओं को दिए जाने वाले अधिकारों में मद्य निषेध लागू करने तथा शराब की बिक्री और उपयोग को विनियमित करने का अधिकार भी शामिल है। ग्रामसभा के दो-तिहाई सदस्य वोट देकर शराब की दुकान को बंद करवाना चाहे तो तहसीलदार ग्रामसभा में वोटिंग करवाने के बाद जिला कलेक्टर को अपनी रिपोर्ट भेजेगा।

जिला कलेक्टर अपनी टिप्पणी के साथ यह रिपोर्ट आबकारी आयुक्त को भेजेगा। आबकारी आयुक्त रिपोर्ट पर आवश्यक कार्रवाई कर कलेक्टर के माध्यम से ग्रामसभा को सूचित करेगा और अगले सार से शराब की सम्बन्धित दुकान बंद कर दी जाएगी।

जन्म, नामकरण, संस्कार, सगाई, विवाह, किसी विवाद को सुलझाने के दौरान, मृत्यु भोज, होली और दीपावली पर्व सरीखे विशेष अवसरों पर आदिवासी समुदाय की परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ग्रामसभाएं देशी शराब की मात्रा की सीमाएं तय करने के लिए सक्षम होंगी। तारीख वार इसकी सीमा तय कर सकेंगी। साधारण अनुज्ञा नहीं दी जाएगी।

सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने, शराब के नशे में महिलाओं के साथ झगड़ा करने एवं पत्नी की पिटाई करने वाले पति से जुर्माना वसूलने के लिए ग्रामसभा संकल्प पारित कर सकेंगी। ऐसे मामलों में ग्रामसभा में महिलाओं की ओर से व्यक्त किए जाने वाले विचारों को निर्णायक माना जाएगा।

गौरतलब है कि गुजरात से सटे राजस्थान के आदिवासी इलाकों में पिछले कुछ समय से अवैध शराब का कारोबार भी काफी बढ़ा है,इसका कारण गुजरात में शराब बंदी है। राज्य आदिवासी इलाके में अन्य प्रदेशों से लाकर शराब रखी जाती है और फिर यहां से आवश्यकतानुसार गुजरात भेजी जाती है।

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