वेटरनरी विश्वविद्यालय में शीतकालीन प्रशिक्षण

उष्ट्र, अश्व, भेड़ व गर्दभ के राष्ट्रीय संस्थानों में प्रायोगिक और वैज्ञानिक कार्यों का किया अध्ययन

IMG_1286बीकानेर, 7 नवम्बर। वेटरनरी विश्वविद्यालय में देश के 25 वैज्ञानिकों ने देशी पशुओं के नस्लों के संरक्षण और संवर्द्धन के शीतकालीन प्रशिक्षण में राष्ट्रीय उष्ट्र, अश्व और भेड़ व ऊन अनुसंधान संस्थानों का भ्रमण कर प्रायोगिक अनुसंधान और वैज्ञानिक पालन-पोषण कार्यों का अध्ययन किया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् पोषित 21 दिवसीय शीतकालीन प्रशिक्षण में 10 राज्यों के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। वेटरनरी विश्वविद्यालय के पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभागाध्यक्ष और प्रशिक्षण निदेशक प्रो. एस.सी. गोस्वामी ने बताया कि प्रशिक्षण के नवें दिन मंगलवार को राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. यशपाल ने गर्दभों (डंकी) के संरक्षण व उपयोग बाबत वैज्ञानिक व्याख्यान प्रस्तुत किया। राजुवास एपेक्स सेन्टर के प्रमुख वैज्ञानिक प्रो. ए.के. कटारिया ने देशी पशुओं की विभिन्न नस्लों में होने वाली बीमारियों और महामारियों से बचाव के उपायों की जानकारी दी। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान के निदेशक डॉ. एन.वी. पाटिल और अश्व अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. एस.सी. मेहता व डॉ. आर.ए. लेघा ने केन्द्र में इनके संवर्द्धन और संरक्षण के प्रायोगिक वैज्ञानिक कार्यों से अवगत करवाया। इससे पूर्व संभागियों को केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान में भेड़ पालन के विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं और संरक्षण उपायों के बारे में निदेशक डॉ. ए.के. पटेल और डॉ. एच.के. नरूला ने अपने यहां भ्रमण के दौरान जानकारी दी। संभागियों ने लोट्स डेयरी संयंत्र में जाकर डेयरी उद्यमियों से मुलाकात की। देशी गौ वंश संरक्षण में डेयरी के योगदान पर व्याख्यान का भी आयोजन किया गया। संभागियों ने वेटरनरी विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों का जायजा लिया। हिसार कृषि विश्वविद्यालय जैव तकनीकी विभाग के प्रमुख डॉ. त्रिलोक नंदा, उष्ट्र शल्य चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. टी.के. गहलोत, अश्व अनुसंधान विशेषज्ञ डॉ. टी.आर. टलुराई और हरा चारा उत्पादन और संरक्षण पर डॉ. दिनेश जैन के व्याख्यान आयोजित किये गए।
समन्वयक
जनसम्पर्क प्रकोष्ठ

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