मेरा वास्तविक पुरस्कार मेरी मातृभाषा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता

नई दिल्ली बीकानेर/ 13 फरवरी/ साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के साहित्योत्सव के दूसरे दिन मुख्य पुरस्कार से सम्मानित रचनाकारों ने रचना प्रक्रिया और विभिन्न साहित्यिक मुद्दों पर अपनी बात रखी। लेखक सम्मिलन में कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने अपने उद्बोधन में कहा कि रचना की निरपेक्ष परख ही आलोचना का धर्म है। हर रचना एक नया आविष्कार है तो उसके लिए आलोचना को भी नए नए आयुधों का निर्माण करना चाहिए। डॉ दइया ने अपनी साहित्यिक यात्रा का श्रेय अपने साहित्यकार पिता सांवर दइया को देते हुए कहा कि मेरा वास्तविक पुरस्कार मेरी मातृभाषा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता होगी। उन्होंने भारतीय भाषाओं के मंच पर सभी भाषाओं के लेखकों से इस संबंध में सहयोग करने को कहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता अकादमी के उपाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध लेखक कवि डॉ. माधव कौशिक ने की तथा कार्यक्रम के आरंभ में सचिव के. श्रीनिवास राव ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए अकादेमी के कार्यों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा के परामर्श मंडल के संयोजक मधु आचार्य ‘आशावादी’, कहानीकार राजनी मोरवाल, कवि नवनीत पाण्डे, कहानीकार राजेन्द्र जोशी, कवयित्री रजनी छाबड़ा आदि उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि डॉ. नीरज दइया की राजस्थानी भाषा में पुरास्कृत कृति ‘बिना हासलपाई’ में आधुनिक राजस्थानी कहानी के समग्र मूल्यांकन के साथ ही पच्चीस कहानीकारों के कहानी विधा के अवदान को विवेचित किया गया है।

नवनीत पाण्डे

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