उष्ट्र पालन : चुनौतियां एवं सम्भावनाएं‘ विषयक प्रशिक्षण का समापन

बीकानेर, 16 फरवरी। भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में आत्मा परियोजना के तहत दो दिवसीय उष्ट्र पालन व्यवसाय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुक्रवार को समापन हुआ। 15 फरवरी से प्रारम्भ हुए ‘उष्ट्र पालन ः चुनौतियां एवं सम्भावनाएं‘ विषयक इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिले के सुरधना गांव के 36 पशुपालकों, किसानों ने भाग लिया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में विषय-विशेषज्ञ वैज्ञानिकों द्वारा उष्ट्र प्रजनन, जनन, पोषण, नस्ल सुधार, शरीर क्रिया विज्ञान, खाद्य प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य एवं इसके प्रबन्धन, चारा उत्पादन, ऊँटनी के दूध एवं इससे निर्मित उत्पादों, मानव स्वास्थ्य में दूध की उपयोगिता आदि विभिन्न पहलुओं पर महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक एवं तकनीकी रूप से उष्ट्र पालन व्यवसाय को लेकर प्रशिक्षित किया गया साथ ही पशुधन के रखरखाव आदि में आने वाली समस्याओं को खुले मन से मंच पर रखने, अकाल आदि आपात समय में पशुधन का महत्व समझने तथा प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान को अन्य किसानों तक संप्रेषित करने हेतु प्रोत्साहित किया गया।
कार्यक्रम समापन के अवसर पर आत्मा परियोजना के नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक एवं कार्यवाहक निदेशक ने पशु पालकों, किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि पशु पालक, वैज्ञानिक तौर पर किए गए अनुसंधान को परखते हुए इसे व्यवसाय के नए स्वरूप में अपनाएं। ऊँटनी के दूध से विकसित मूल्य-सवंर्धित उत्पाद बनाकर किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, साथ ही वे अपनी स्वयंसेवी संस्थाओं का पंजीयन करवाते हुए ब्रांडेड उत्पाद निर्मित कर अधिक लाभ पा सकते हैं। उन्होंने पशुपालकों की जागरूकता के महत्त्व पर बल देते हुए कहा कि भारत सरकार की कई ऎसी योजनाएं एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ लेना चाहिए। इस अवसर पर प्रगतिशील पशुपालक उम्मेद सिंह ने भी अपने विचार रखे। प्रशिक्षण अधिकारी डॉ.मतीन अंसारी ने कार्यक्रम के उद्देश्य एवं महत्त्व पर प्रकाश डाला।

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