पैली मायड़ भाषा नै मान्यता दिरावौ, फेर वोट मांगण आवौ

बीकानेर 4 सितंबर 2018। दीर्घ संघर्ष और 2003 में राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस सरकार द्वारा सर्वसम्मति से संकल्प पारित किए जाने के बाद भी बीते 15 वर्ष में राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं दिला पाने से रुष्ट अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता समिति ने राजनीतिक दलों के नेताओं तक साफ साफ शब्दों में संदेश प्रेषित कर दिया है कि पहले राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलावें उसके बाद ही वे राजस्थानी भाषा-साहित्य प्रेमी जनता से वोट मांगने का अधिकार रखते हैं। स्वयंभू नेता तो यह भी नहीं जानते कि विदेशों में राजस्थानी भाषा की महत्ता कितनी आंकी जाती है, पड़ौसी देश पाकिस्तान में राजस्थानी ‘‘कायदो’’ नाम से व्याकरण चलती है। अमेरिका की लाइब्रेरी आफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की समर्थ 13 भाषाओं में से एक मानते हुए पदमश्री कन्हैयालाल सेठिया की 75 मिनट की रिकॉर्डिंग कर संग्रह में रखी है। शिकागो विवि में दक्षिण एशियाई भाषा विभाग में भी राजस्थानी एक विषय के रूप में है। समिति पदाधिकारियों एवं साहित्य-रसिकों ने मंगलवार को होटल मरुधर हैरिटेज में प्रेसवार्ता आयोजित कर पत्रकारों को सत्ताधारी दल के चुनावी घोषणा पत्र की प्रति को साक्ष्य बनाते हुए कहा कि बड़े-बड़े वादे करने वालों ने प्रदेश में जन-जन की भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के विषय को ही भुला दिया है। जनप्रतिनिधियों के ऐसे रवैये से ही धीर-गंभीर प्रवृत्ति की जनता का धैर्य चुक जाता है और आंदोलन खड़े होते हैं जबकि समिति ऐसी स्थिति से बचने के लिए प्रयासरत है और शांतिपूर्ण व गरिमामय तरीके से नेताओं की इच्छाशक्ति को जगाने के लिए समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर गांधीवादी आंदोलन कर रही है । प्रेसवार्ता में समिति के प्रदेश महामंत्री मनोज कुमार स्वामी ने प्रदेश की सरकार के सेवानियमों की विसंगतियों को रेखांकित करते हुए कहा कि इस प्रदेश में रिक्त पदों पर दूसरे राज्यों के अभ्यर्थी तो आवेदन कर सकते हैं किंतु राजस्थान का प्रतिभावान अभ्यर्थी दूसरे प्रदेशों में रिक्तियां निकलने पर अपने अधिकार से वंचित रखा जाता है। यह प्रदेश के युवाओं के भविष्य और रोजगार के अवसरों को धूमिल करने वाला नियम है। राजस्थानी अकादमी से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार भरत ओला ने एक सवाल के जवाब में कहा कि विभिन्न बैनरों तले भाषा मान्यता के आंदोलन चल रहे हैं, इसे हम एक आंदोलन ही मानते हैं बस सुविधानुसार सभी राजस्थानी भाषा प्रेमी अपने अपने विभिन्न क्षेत्रों में मान्यता की मांग उठाते हैं। बीते दिनों दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर भाषा मान्यता आंदोलन में कई चेहरों के शामिल नहीं होने के सवाल को अप्रिय मानते हुए भरत ओला ने कहा कि भाषा मान्यता का आंदोलन हमारे लिए शक्तिप्रदर्शन नहीं है, दिल्ली आंदोलन को भी सभी का नैतिक एवं हार्दिक समर्थन प्राप्त था। समिति पदाधिकारियों ने पत्रकारों को समिति द्वारा मुख्यमंत्री राजस्थान सरकार को भेजे 16 सूत्रीय मांग पत्र की प्रति भी उपलब्ध करवाई। इस दौरान वरिष्ठ साहित्यकार सरदार अली परिहार, मधु आचार्य आशावादी ने भी भाषा मान्यता की मांग को सरकार द्वारा शीघ्र पूरा करने की आवश्यकता पर बल दिया।

– मोहन थानवी

error: Content is protected !!