सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी है निम्बाहेड़ा की राधा भुआजी

भीलवाड़ा-
भीलवाड़ा जिले के मोड का निम्बाहेड़ा में राधा भुआ सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी हुई है। राधा भुआ को लोग वहां प्रेम से जीजा भी बोलते है। मीरां जैसी भक्ति मां राधा भुआ इन दिनों छापरवाले बाबा के यहां पर दीन दुखियों की सेवा का केंद्र बिंदू बनी है। राधा भुआ की साधना का ही परिणाम है वहां छापरवाले बाबा के मार्फत अपने यहां पहुंचने वाले हर व्यक्ति के दुख दर्द का निवारण कर उसको सही करने का प्रयास करती है। राधा भुआ इंसानियत को सर्वोपरी मानती है तथा मजहबी फेर से वो काफी परे है। उनका बस एक ही सपना है कि व्यक्ति व्यक्ति में प्रेम बढे तथा आपसी समन्वय से क्षेत्र में शांति रहे और कोई भी उनके पास आने वाला रोगी न रहे।
राधा भुआ का जन्म से जो दुःखों का साया रहा वो लंबे समय तक रहा। उनके जन्म के 9 दिन बाद मां का साया उठ गया। अभी दो दि नही बीते तो विछोह में उनके पिता भी चल बसे। उनका लालन पालन उनकी मौसी ने किया। मौसी उसे अपने गांव मोड का निम्बाहेड़ा ले आयी। बचपन में ही राधा भुआ का मन सांसारिक मोह माया से दूर सा हो गया था। उनका अधिकांश समय मंदिरों या सूफी संत छापरवाल बाबा के यहां बीतने लगा। समय बीतता गया और जवानी की दहलीज पर आने पर उनकी मौसी ने अपने ही गांव में उसकी शादी करा दी। सब कुछ सही चल रहा था, राधा भुआ की पुत्री का 16 वर्ष की आयु में अचानक निधन हो गया। उसके बाद छापरवाल बाबा के यहां उनकी सन्निकटता बढ़ती गयी।
बाबा की खिदमत करते रहने के फलस्वरूप बाबा का उनको पूरा आर्शिवाद मिलने लगा। राधा भुआ का अधिकांश समय भी वहीं बीतने लगा। उनका सांसारिक मोह व पारिवारिक मोह भी समाप्त हो गया। आज भी राधा भुआ एक गुफा से कमरे में ही रहती है जहां बिजली भी नहीं है। वो अपना सभी कार्य वहीं पर संपादित करती है तथा दिन रात बाबा की साधाना में तल्लीन रहती है। बाबा की खिदमत में आने वाला कोई दुखी दर्दी अपने मन की बात राधा भुआ को बताते है तो राधा भुआ साधना के बल पर बाबा से अपने आध्यात्मिक संपर्को से उसका रास्ता बता देती है। ऐसे वहां आने वाले लोगों को बाबा का आर्शिवाद मिलता जा रहा है तथा वहां आने वाले भक्तों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
राधा भुआ की खिदमतगार मदीना रंगरेज बताती है कि छापरवाल बाबा के आर्शिवाद से राधा भुआ आज वहां पहुंचने वाले प्रत्येक व्यक्ति को राह दिखाने का काम करती है। उनकी नजर में धर्म, संप्रदाय, मजहब से उपर इंसानियत है। उन पर सूफी संत का प्रभाव साफ दिखता है। सादा जीवन उच्च विचार को आत्म सात करते हुए आज भौतिकवादी युग में भी वो केवल एक कमरे में निवास करती है, जहां साधना किया जाना भी वहीं पर होता है। वहां आने वाले हर व्यक्ति का भला हो, उसका उद्वार हो यही चिंता राधा भुआ की रहती है। लोग वहां अब अपनी बिमारियों के निवारण के लिए भी आने लगे है। मदीना रंगरेज बताती है कि राधा भुआ की वाणी का ही चमत्कार है कि आज उनके द्वारा कहा गया हर शब्द सच साबित हो रहा है। बाबा की असीम कृपा से उनके द्वारा कहा गया वाक्य होना ही होता है। भक्त जो मूंह से अपनी बात नहीं रख सकते है लिखकर भी भुआ को दे जाते है जिन पर साधना के दौरान राधा भुआ बाबा के आर्शिवाद से मार्गदर्शन करती है। यहां दिन भर साधना, दुआओं का दौर देखा जाता है। यहां आने वाले से कोई भी राशि की मांग नहीं की जाती है। राधा भुआ के आर्शिवाद व उनके निर्देशन में लंगर खाना यानि सदाव्रत भोजन की व्यवस्था के लिए आश्रम का निर्माण कराया जा रहा है।
यहां यह बताना समीचीन होगा कि कुछेक वर्षो पूर्व राधा भुआ ने किसी कारण से छापरवाल बाबा की समाधि के पास ही अपनी जीवित समाधि की तैयारी कर ली थी पर भक्तों के अनुरोध ओर अचानक वहां पहुंचे एक सिद्व पुरूष के निर्देश पर उन्होंने समाधी लेने के बजाय लोगों की सेवा करने का संकल्प लेकर वहां पर एक कमरे में रहना स्वीकार किया था।

– मूलचन्द पेसवानी

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