श्रीनवग्रह आश्रम का स्थापना दिवस समारोह मनाया

21 वीं सदी में आयुर्वेद ने काफी विश्वसनियता हासिंल की है- चोधरी
मोतीबोर का खेड़ा (भीलवाड़ा)-6 जुलाई
भीलवाड़ा जिले के मोतीबोर खेड़ा में संचालित श्रीनवग्रह आश्रम का स्थापना दिवस समारोह सादे तरीके से आश्रम संस्थापक हंसराज चोधरी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। आश्रम के चिकित्सकों की मौजूदगी में हुए कार्यक्रम में केंसर जैसे कई असाध्य रोगों के उपचार के लिए आश्रम की ओर से सेवा प्रकल्प जारी रखने का संकल्प लेते हुए कहा गया कि 21 वीं सदी में विश्व में आयुर्वेद के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है तथा आयुर्वेद ने अपनी ताकत से काफी विश्वनियता हासिंल की है। कोविड़ महामारी के दौरान भी आयुर्वेद की दवाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर सिद्व हो रही है। कोविड एडवाइजरी के चलते कार्यक्रम का आयोजन सादे समारोह में किया गया तथा केवल स्वयंसेवकों ने ही हिस्सा लिया। कार्यक्रम की शुरूआत भगवान धनवन्तरी की मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके किया गया।
आश्रम संस्थापक व सेवा संस्थान के अध्यक्ष हंसराज चोधरी ने आश्रम के स्वयसेवकों व चिकित्सकों का आव्हान किया कि परमार्थ के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। आश्रम की ओर से जो भी परमार्थ के कार्य किये जा रहे है यह परमात्मा की कृपा से ही संभव हो पाया है। इसे अगले वर्ष विस्तारित करने की योजना पर कार्य चल रहा है। अब विश्व के कई देशों से रोगी यहां पहुंच कर अपने अपचार के लिए दवा प्राप्त कर रहे है। कोरोना कोविड़ के लोकडाउन को छोड़कर अब पूर्ण सर्तकता व सावधानी से आश्रम के कार्य को सुचारू संचालित किया जा रहा है। यहां सरकार की एडवाइजरी का अक्षरशः पालन किया जा रहा है।
आश्रम संचालक हंसराज चोधरी ने कहा कि आज श्री नवग्रह आश्रम की ओर से आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति से सभी प्रकार के रोगों का उपचार किया जा रहा है। इसके अप्रत्याशित परिणाम सामने आ रहे है तथा इक्कीसवीं सदी में आयुर्वेद के प्रति देश ही नहीं दुनियां के लोगों का भी विश्वास जम रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि 21वीं सदी में भी पारंपरिक इलाज के तौर पर पहचान बनाने में कामयाब रहे आयुर्वेद ने काफी विश्वसनीयता हासिल की है। आयुर्वेद में ऐसी अनेक औषधीयों का जिक्र किया गया है, जिसमें पौधों से हासिल विभिन्न पदार्थो से कई बीमारियों का इलाज मुमकिन है और रायला के पास मोतीबोर का खेड़ा का श्रीनवग्रह आश्रम इसका उदाहरण है। प्राकृतिक औषधीयां इंसान के शरीर को भीतर से मजबूत बनाती हैं।
उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में औषधीय जड़ी-बूटियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और शायद इसीलिए इसे ‘बोटेनिकल गार्डेन ऑफ द वर्ल्ड’ यानी ‘विश्व का वनस्पति उद्यान’ कहा जाता है। भारत में आयुर्वेद का भविष्य इसलिए भी उज्ज्वल माना जा रहा है, क्योंकि औषधीय गुणों से भरपूर करीब 25 हजार पौधों में से महज 10 फीसदी को ही औषधीय कार्यो के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। भारत में पारंपरिक औषधीय पौधों की भरमार है। विकसित देशों में यदि हम अपनी आयुर्वेदिक दवाओं को पहुंचाना चाहते हैं, तो हमें पारंपरिक तरीकों मान्य तरीकों से दस्तावेजीकृत करना होगा। इस दिशा में भी नवग्रह आश्रम की ओर से कोरोना लोकडाउन में प्रयास शुरू किये गये है। साथ ही औषधीय पौधों को रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से मुक्त रखना होगा और दवाओं के निर्माण में भारी तत्वों का इस्तेमाल नहीं करना होगा। सुरक्षा और स्थायित्व समेत उसके रासायनिक गुणों की व्याख्या को मानकीकृत करते हुए हम पूरी दुनिया में आयुर्वेद को स्थापित करने में सक्षम हो सकते हैं।
हंसराज चोधरी ने जोर देकर कहा कि मानव इतिहास के शुरुआती दौर से ही जड़ी-बूटियों (हर्बल्स) के माध्यम से कई संक्रामक रोगों का इलाज किया जाता रहा है। एस्टेरेसिया, एपोकिनोसिया, सोलेनेसिया, पीपरेसिया और सेपोटेसिया समेत अनेक औषधीय पौधे हैं, जिन्हें बहुत से वैज्ञानिक शोधों के माध्यम से बीमारियों में इलाज में सक्षम बताया गया है और इनके महत्व को रेखांकित किया गया है। नयी दवाओं के विकास में औषधीय पौधों की अहम भूमिका देखी गयी है. पौधों से बायोएक्टिव तत्वों (गुणकारी चीजों) को निकालने के लिए सक्रिय यौगिक (एक्टिव कंपाउंड) को मानक विधियों के तहत प्रयोग में लाना चाहिए और बायोएक्टिव तत्वों का संपूर्ण अध्ययन होना चाहिए। भारत में तकरीबन 70 फीसदी आधुनिक दवाएं प्राकृतिक उत्पादों से बनायी जाती है। पारंपरिक दवाएं और विदेशी बाजारों की मांग के अनुरूप दवाएं बनाने में भी औषधीय पौधे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, इसके उभरते हुए वैश्विक कारोबार में भारत का हिस्सा बहुत कम (महज 1.6 फीसदी) है। वैश्विक बाजार की प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए औषधीय पौधों में मौजूद क्षमताओं का इस्तेमाल करना होगा और इसकी वैज्ञानिक पद्धति को वैधता प्रदान करनी होगी।
चोधरी ने कहा कि आधुनिक चिकित्सा शैली के सहारे किसी सामान्य बीमारी से तुरंत राहत पा लेते हैं, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स को देखते हुए दुनियाभर में वैकल्पिक चिकित्सा को लोग जोर-शोर से अपना रहे हैं। भारत में वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में आयुर्वेद सबसे प्रभावी पद्धति मानी जाती है। प्राचीन संस्कृति आधारित चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियां सदियों से स्वास्थ्य रक्षा में सहायक साबित हुई हैं। 21वीं सदी में भी पारंपरिक इलाज के तौर पर पहचान बनाने में कामयाब रहे आयुर्वेद ने काफी विश्वसनीयता हासिल की है। आयुर्वेद में ऐसी अनेक औषधीयों का जिक्र किया गया है, जिसमें पौधों से हासिल विभिन्न पदार्थो से कई बीमारियों का इलाज मुमकिन है। वर्तमान में कोरोना महामारी के दौरान भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आयुर्वेद कारगर साबित हुआ है।
चोधरी ने कहा कि भारत, मिस्र और सूडान में करीब 79 फीसदी ग्रामीण आबादी पारंपरिक औषधीयों का इस्तेमाल करती है। भारत और चीन में कॉलरा और मलेरिया से ग्रस्त मरीजों में से करीब 60 फीसदी आयुर्वेदिक विधि से रोगनिदान का तरीका अपनाते हैं। सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में तकरीबन 60 फीसदी लोग पारंपरिक औषधीयों का इस्तेमाल करते हैं। मानव सभ्यता के विकास के दौरान पायी गयी पौधों की ढाई लाख प्रजातियों में से केवल दस हजार पौधों का ही औषधीय गुण जाना गया और इस मकसद से उन्हें इस्तेमाल में लाया जा रहा है। बंजर भूमि में ऐसे बहुत से पौधे पाये जाते हैं, जिनसे बड़ी मात्र में हाइड्रोकार्बन पैदा होता है। चोधरी ने कहा कि प्रकृति ने इंसान को बहुत सी अद्भुत चीजें प्रदान की हैं। यह हम पर निर्भर है कि हम उसमें से कितना ग्रहण कर पाते हैं। पश्चिमी देशों में लोग कृत्रिम दवाओं की क्षमता एवं उसके साइड इफेक्ट से भली-भांति परिचित हैं। इसलिए इन देशों में प्रकृति और प्राकृतिक दवाओं की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है।
कार्यक्रम में डा. प्रदीप, डा. शिवप्रकाश, ड. गोविंद, डा. धमेंद्र ने आयुर्वेद के महत्व को प्रतिपादित करते हुए आज के दौर में आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय से सकरात्मक रूख अख्तियार करने पर जोर दिया।
आश्रम के प्रवक्ता महिपाल चोधरी ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि आश्रम में वर्तमान में प्रतिदिन केंसर जैसे असाध्य रोगों का उपचार किया जा रहा है। अब वहां पर मरीजों की संख्या में वृद्वि को देखते हुए अब केंसर के अलावा अन्य बिमारियों के उपचार के लिए सेवा कार्य प्रांरभ कर दिया गया है। इसके अलावा नवग्रह आश्रम गौदर्शन गौशाला का संचालन शुरू होने स ेअब बिलौना का घी व गौमूत्र भी उपलब्ध कराये जा रहे है। चरणसिंह चोधरी ने सभी का स्वागत किया।

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