राजसमन्द, अजमेर, पाली व भीलवाडा को डार्क जोन घोषित करने की मांग
विद्यार्थी व शिक्षक के मध्य भाषा बनी अवरोध, नव पीढ़ी की हो रही नींव कमजोर
मगरा सब प्लान की आवश्यकता, आशापुरा योजना बने
मगरे के आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक उत्थान में निरन्तर सक्रिय मगरा विकास मंच ने मगरा क्षेत्र के राजसमन्द, अजमेर, पाली, भीलवाडा जिलों में बाहरी कर्मचारियों के विरोध के स्वर मुकर किये है। मगरा विकास मंच के अनुसार बाहरी कर्मचारी मगरा क्षेत्र व इन जिलों में सिर्फ और सिर्फ अपने स्वयं के फायदे यानि नोकरी हथियाने के लिए आते है। उन्हें क्षेत्र की कर्तव्य व सेवा से कोई लेना देना नही है । हाल ही में देखने मे आया है कि सबसे ज्यादा नाजायज फायदा क्षेत्र मे कार्यरत बाहरी शिक्षक उठा रहे है ।
सरकारी अधिकारियों की मदद व सांठ गाँठ से वह लोग नियमित रूप से विद्यालय में नही आते ।अनावश्यक छुट्टी (गोतावकाश) मारते है ।
पढाने का तरीका बिल्कुल भी सही नही है। छोटे बच्चों को उनकी भाषा समझ में नही आती है। छोटे बच्चों की स्थानीय भाषा भी बाहरी शिक्षक समझ नही पाते है। विद्यार्थी व शिक्षक के मध्य का समन्वय का सम्बंध टूट गया है। इससे नींव कमजोर हो गयी है और नव पीढ़ी के विद्यार्थी का भविष्य गर्त में चला गया है। मगरा क्षेत्र के सभी अधिकतर विद्यालय अध्यापक विहीन या बहुत कम अध्यापकों की समस्या से ग्रस्त है। यहाँ केवल बाहरी शिक्षक नोकरी हथियाने आते है और अपने क्षेत्र के बड़े नेताओं से सीधे अप्रोच लगाकर ट्रांसफर करा देते है। जिससे भारी विषमता पैदा हो रही है। बाहरी शिक्षकों के ट्रांसफर रोकने हेतु राजसमंद, अजमेर, भीलवाड़ा, पाली जिले को डार्क जोन घोषित कर कर ट्रांसफर पर पूर्ण रोक लगानी चाहिए ।वही उच्च क्लासों में भी बाहरी अध्यापक पुरे मनोयोग से नही पढ़ाते है। उनके शब्द है यहां के युवाओं को पढ़ाएंगे तो हमारे बच्चे कहा जाएंगे । कहने का मतलब बाहरी अध्यापको का तर्क है की हम इस क्षेत्र के विद्यार्थियो को पढ़ाएंगे तो हमारे बच्चे भविष्य में नोकरिया कैसे प्राप्त करेंगे। सभी स्थानीय शिक्षकों को बीएलओ , जनगणना , नोडल डाक आदि कार्य मे लगाया जाता है । बाहरी शिक्षकों को बड़ी अप्रोच के चलते ऐसे कार्यों से स्वतंत्र रखा जाता रहा है।
कोई भी विशेष अभियान व कार्यक्रम होने पर बाहरी लोग यह कह कर टाल देते हैं कि हम बाहर के हैं।आप लोकल ही यह कार्य कर दो ।ऐसा क्यों । वह भी स्थानीय अधिकारी द्वारा ऐसा कहा जाए तो फिर इस क्षेत्र का भगवान ही मालिक ।
क्षेत्र में बढ़ रही है विषमता , परिणाम हो सकते है घातक
मगरा क्षेत्र की रोजगार प्राप्ति की दृष्टि से दिन प्रतिदिन विषमता बढ़ती जा रही है। यदि इस और किसी ने ध्यान नही दिया तो घातक परिणाम देखने को मिल सकते है। जानकारों की माने तो के 2003 के बाद स्तिथिया तेजी से बदली है । पहले RPSC से भर्ती से पहली बार खतरनाक विषमता सामने आई। मगरे क्षेत्र के गिने चुने अभ्यर्थी चयनित हुए। इसके बाद क्षेत्र में सरकारी नोकरियो का टोटा सा हो गया। आज क्षेत्र के स्कूल बाहरी अध्यापको से भरे है और एक आध अध्यापक स्थानीय है जो पुराने है। मगरा विषमता की चरम सीमा पर पहुच चूका है। मगरा क्षेत्र में इसी विषमता के चलते सांप बिच्छू जैसी गेंगे पनप रही है। हो सकता है भविष्य में यह साफ बिच्छू बड़े होकर नक्सलवाद जैसी स्थिति पैदा कर दे।
जिस तरह गुर्जर आंदोलन में देवनारायण योजना के विस्तार पर दबाव डाला जा रहा है । इसी तरह अपने मगरा क्षेत्र में ट्राईबल सब प्लान (टीएसपी )की तर्ज पर मगरा विकास बोर्ड के अंतर्गत मगरा सब प्लान बनाया जाए । देवनारायण योजना की तर्ज पर मगरा योजना या आशापुरा योजना बनाई जाए । जिससे मगरा क्षेत्र के बाशिंदों को लाभ मिल सके।