*”सेहत” से खिलवाड़ वाली “बर्फ” बिकती है “बेधड़क”*….

*भारी पड़ेगी “अनदेखी” स्वास्थ्य विभाग की*

सुशील चौहान
भीलवाड़ा। बाजार में “गन्ने का रस” पियें या “सोड़ा” से गला तर करें, बर्फ का “गोला” खाएं या शादी समारोह में और बाजार में “गोल गप्पे” ठड़े पानी के साथ खाएं। इसमें जो भी “बर्फ” आपके गले की “गर्मी” मिटाकर आपको “ठंडी” का अहसास करा रही “बर्फ” असल में “खाने लायक” है ही नहीँ। जनता की सेहत की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार “स्वास्थ्य विभाग” भी इस बात को अच्छी तरह जानता है और मानता भी है कि यह बर्फ खाने लायक नहीं है। फिर भी सरे बाजार बिक रही है। लोग खरीद रहे है और बाजार की ठंडी चीज़ बेचने वाले व्यापारी इसका उपयोग कर रहे है। आपको बतादे कि यह बाजार में मिलने वाली और दुकानों में आपके ठंडे पेय में मिलाएं जाने वाली “बर्फ” आपकी “जान” की “दुश्मन” है। पता चला तो इस बारे में बात की “फ़ूड इंस्पेक्टर” देवेंद्र सिंह से। उन्होने भी स्वीकार किया कि यह बर्फ “अखाद्य” है मतलब खाने लायक नहीं। तो सवाल भी किया कि फ़िर “बिक” कैसे रहा है। आमजन के स्वास्थ्य से “खुलमखुल्ला” खिलवाड़ क्यों ?
जवाब तो मिला लेकिन “सरकारी तर्ज़” पर। खाद्य निरीक्षक महोदय ने खुलासा किया कि यह बर्फ खाने लायक नहीं है इसका नोटिस बर्फ की फैक्ट्री में लगाते है। इसके बाद वह “बेचे” ओर जनता “गटके” तो इसके लिए हम “कसूर वार” नहीं। अब बर्फ ख़रीदने वाला तो फैक्ट्री जाता नही। गंदे नालों के ऊपर तख्ते रख कर कारोबारी बर्फ बेचते है। बेचने वाले दुकानदार को वो बर्फ कौनसा “अपने” घर के लोगों को खिलाना है। ग्राहक को ही तो “ठंडा” करने है और अपनी “जेब गर्म” तो बर्फ खाने लायक है या नहीं । उसे क्या लेना देना। अब “दूषित” भी है तो बिकेगी तो खरीदेंगे भी। मतलब जानलेवा बर्फ को न तो बनाने से कोई रोकने वाला। न बेचने वालों को टोकने वाला और न ही गले से नीचे उतारने वालों को कोई समझाने वाला। जानकर बता रहे है कि “घर में शुद्ध पानी से फ्रीज़” में जमा बर्फ ही खाने लायक हैं । अब यह बात “स्वास्थ्य विभाग” दुकानदारों ओर जनता को “कब तक” बता पायेगा यह देखने वाली बात है।
अब जरा नजर डाले उन फैक्ट्री पर जहां आपके गले को गर्मी से राहत पहुंचाने के लिए तैयार की जाती बर्फ। दिन भर धूल मिट्टी से पानी छन कर आता हैं। जिन सांचों में बर्फ जमाई जाती हैं वो लोहे के बने होते। जिनमें पानी के कारण जंग लग जाती हैं।इसी जंग लगे पात्र में बनती हैं बर्फ। अब वहां से छोटे टेम्पो में जो लोहे का होता हैं उसमें लाते हैं। यानी यही जंग लगी बर्फ आपके गले को तर करती हैं।स्वास्थ्य विभाग को सब पता होने के बाद भी *मौन* हैं। सरकार ने शुद्ध के लिए युद्ध अभियान की घोषणा कर रखी हैं लेकिन शहर कहीं भी इस अभियान की झलक तक नजर नहीं आती हैं। बर्फ तो एक हिस्सा हैं। बाकी मावा, देशी घी,खाध्य तेल,मिठाइयां शुद्ध से युद्ध अभियान से *कोसों दूर* हैं।
– *सुशील चौहान*
– *9829303218*
– *स्वतंत्र पत्रकार*
– *पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका*
– *वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब,भीलवाड़ा*
– *sushilchouhan [email protected]*

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