भारत में हार्ट फेलियर के बढ़ते मामलों का प्रबंधन

जयपुर, 30 सितंबर, 2021: कोविड महामारी की दूसरी लहर के महीनों बाद भारत में हार्ट फेलियर के मरीज अभी भी झटके महसूस कर रहे हैं। हेल्थकेयर सेवाएं जब संक्रमण फैलने से निपटने पर केंद्रित हैं तब कार्डियोवैस्‍कुलर बीमारियों के लिए देखभाल बेहद अस्त व्यस्त रही है और इसमें हार्ट फेलियर के मामले शामिल हैं। भारत की रिपोर्ट है कि मार्च 2020 में पिछले साल के मुकाबले 30 प्रतिशत से कम कार्डिएक इमरजेंसी ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों में पहुंची।
हार्ट फेलियर धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है। इसमें हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हृदय ने काम करना बंद कर दिया है ना ही इसका यह मतलब है कि शरीर का यह अंग जरूरत भर खून नहीं पंप कर पा रहा है। भारत में हार्ट फेलियर करीब 8 से 10 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है। इससे मोटे तौर पर देश भर में 1.8 मिलियन लोगों को अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है। इसके अच्छे-खासे बोझ के बावजूद लोग स्थिति को आमतौर पर नहीं जान पाते हैं और इसे ठीक से नहीं समझते हैं।

फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हॉस्पिटल, जयपुर के डायरेक्‍टर डॉ. संजीब रॉय ने कहा, “भारत में हार्ट फेलियर के बढ़ते मामलों को देखते हुए, इसे सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य की प्राथमिकता मानना बहुत जरूरी हो गया है। हमारे अस्‍पताल में हर महीने 50 साल से कम उम्र के लगभग 10-15% मरीजों में हार्ट फेलियर का पता चलता है। इस स्‍थायी बीमारी पर जागरूकता बढ़ाना यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्‍यक है कि इसकी चेतावनी के संकेतों को समझा जाए और इसका शीघ्र निदान हो तथा नियंत्रण आसान हो। हालांकि, इसके इलाज की एक और बाधा, जिसे दूर करना जरूरी है, वह है उपचार का ठीक से पालन न होना। जयपुर में हार्ट फेलियर के 30-40% मरीज उपचार के लिये बताई गई गाइडलाइन को एक साल के भीतर ही छोड़ देते हैं। ऐसा करने से दूसरी परेशानियाँ हो सकती हैं और अस्‍पताल में भर्ती होने का जोखिम बढ़ जाता है। जागरूकता और सहयोग से बीमारी पर जल्‍दी और प्रभावी नियंत्रण और उपचार का पालन आसान हो सकता है। इस प्रकार हार्ट फेलियर के मरीज लंबा जीवन जी सकते हैं और उनमें प्रतिकूल लक्षण कम होंगे।’’

युवा भारतीयों के बीच बढ़ते मामले
भारतीयों में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां पश्चिम के लोगों के मुकाबले कम से कम एक दशक पहले होती हैं और यह उनका सबसे उत्पादक वर्ष होता है।[1] इस चिन्ताजनक प्रवृत्ति के कई कारण हैं। इनमें तनावपूर्ण जीवनशैली, आहार संबंधी खराब आदतें, शराब या नशे की लत तथा पर्याप्त शारीरिक गतिविधि की कमी। हार्ट फेलियर के लक्षणों को शुरू में ही पहचान लेना जरूरी है। आम लक्षणों में सांस फूलना, थकान, एड़ी, पैरों या पेट में सूजन और सोने में मुश्किल। अन्य संकेतों में रात में खांसी, घरघराहट, भूख न लगना और तेज धड़कन आदि शामिल हैं।

ट्रिकल डाउन इफेक्ट: एनसीडी और कोविड हार्ट फेलियर के बड़े जोखिम
हाइपरटेंशन जैसे तेजी से बढ़ते एनसीडी के मामले और डायबिटीज भारत में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या के रूप में उभरे हैं। हार्ट फेलियर के मामले बढ़ने में इसका भी योगदान है। डायबिटीज के मरीजों में हार्टफेलियर का विकास होने का जोखिम दूसरों के मुकाबले दूने के करीब होता है। भारत में जब डायबिटीज के मरीजों की संख्या दुनिया भर में दूसरे नंबर पर है और यह महामारी के कार्य नियमित देखभाल बाधित होने तथा जीवनशैली में बदलाव के अलावा है। इससे डायबिटीज के मरीजों का ग्लूकोज कंट्रोल प्रभावित हुआ है। ऐसे में डायबिटीज के मरीजों को चाहिए कि हार्ट फेलियर के नियमित स्क्रीनिंग में तुरंत शामिल हों। हार्ट फेलियर का कारण मायोकार्डिटिस या हृदय की मांसपेशियों का सूजन (मायोकार्डियम) हो सकता है। कोविड मायोकार्डिटिस के लिए एक गंभीर जोखिम घटक है। इससे किसी भी व्यक्ति का मायोकार्डिटिस का जोखिम 15.7% तक बढ़ सकता है। बुजुर्ग मरीजों और पुरुषों में यह ज्यादा प्रमुखता से देखा जाता है।

रूटीन चेक-अप के दौरान समय पर बीमारी का पता चल जाने से बीमारी का प्रबंध तत्काल शुरू किया जा सकता है।

हार्ट फेलियर का प्रबंध
हार्ट फेलियर के मरीज के जीवन की गुणवत्ता डिप्रेशन और किडनी की समस्या वाले मरीज से भी बुरी होती है। बीमारी का प्रभावी प्रबंध आवश्यक है खासकर भिन्न स्थितियों के शुरुआती चरण में ताकि स्वास्थ्य से संबंधित ज्यादा जटिलताओं को रोका जा सके।
समग्र उपचार में नॉन-फार्माकोलॉजिकल और फार्माकोलॉजिकल प्रबंध दोनों शामिल है। जीवनशैली और आहार संबंधी सिफारिशों में धूम्रपान छोड़ना, तनाव मैनेज करना, तरल पदार्थों का पर्याप्त सेवन, नमक कम खाना, टीकाकरण और आपकी कामकाजी क्षमता पर आधारित व्यायाम शामिल हैं। हालांकि, हार्ट फेलियर के उपचार के मार्ग में एक सामान्य बाधा मरीज द्वारा उपचार का पालन नहीं करना है जबकि नतीजे हासिल करने के लिए यह आवश्यक है।
वर्ल्ड हार्ट डे के मौके पर हार्ट फेलियर की इस बढ़ती समस्या को समझने और नियमित जांच, डायग्‍नोसिस तथा रोग प्रबंधन की तात्‍कालिक आवश्यकता पर जागरूकता बढ़ाना अत्‍यावश्‍यक है।

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