जयपुर । जयपुर के साहित्यप्रेमियों के लिए आजयादगार शाम बन गयी। स्वेज फ़ार्म स्थित महिमा आइरिस पार्टी हॉल में साहित्य, संगीत और कलाओं को समर्पित संस्था अमराई का पहले काव्योत्सव का आयोजन हुआ। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष साकार श्रीवास्तव ‘फ़लक’द्वारा सभी आगंतुकों के स्वागत व उपस्थित साहित्यकारों द्वारा अपने ईष्ट का मानस वंदन के बाद काव्य सत्र का आरंभ हुआ। काव्यपाठ के प्रथम सत्र में महेंद्र कुमार कुरील डॉ एल एन शर्मा ‘निर्भय’, राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक मंच के अध्यक्ष प्रमोद कुमार वशिष्ठ,कविता मुखर, ज्योत्स्ना सक्सेना के दोहे और सी पी दायमा ने अपनी रचनाओं से आनंदित किया।
काव्य सत्र को छोटा- सा विराम देकर संस्था के अध्यक्ष ने अमराई के बारे में बताया। आज की भागदौड़ और तनाव भरे जीवन में से साहित्य, संगीत और कला के माध्यम से सृजन व उसकी अभिव्यक्ति से मन को ख़ुशी और सुकून यानि शान्ति मिले वहीं अमराई है । इसकी टैग लाइन ‘आये कुछ सुकून आये…’ यही बयॉं करती है। चूॅंकि साहित्य, संगीत व कलाएं अंत: चेतना की अभिव्यक्ति हैं अतः वह पंथ, संप्रदाय, विचारधाराओं, जाति, रंग, नस्ल इत्यादि से ऊपर है। अमराई बिना किसी भेदभाव के सभी का स्वागत करती है।
काव्य सत्र के दूसरे दौर में डॉ मंजुलता भट्ट , अरुण ठाकर की रचनाओं के बाद विनय कुमार शर्मा ‘अंकुश ‘ ने माहौल बदलते हुए हास्य रचना’अदरवाईज़ कोई और नहीं ‘से सभी को गुदगुदाया। कमल किशोर भारद्वाज ने प्रेरक कविता और कुसुम शर्मा अदिति ने शहीद को श्रद्धांजलि व प्रभात गुप्त ने ‘हम बदलते एक युग की दास्तां हैं रचना प्रस्तुत की। हास्य व्यंग्य के लिए सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कवि वरुण चतुर्वेदी ने तीखा कटाक्ष ‘कलियुग के नेता हैं ये’ और पैरोडी से सभी को हॅंसी से लोटपोट कर दिया। सत्र के अंत में साकार श्रीवास्तव ने ऊन- सलाई से स्वेटर बुनने और घर में सर्दी के पकवान बनाने वाली पीढ़ी के विलुप्त होने की सच्चाई उजागर करती रचना ‘ये दादियॉं ये नानियॉं’ सुनाई। कार्यक्रम के अंत को संगीत का रंग देते हुए कुंदनलाल शर्मा ने गाना ‘प्यासे पंछी’ और साधिका ने सुरीली ग़ज़ल ‘ख़्वाब था या ख़्याल था क्या था’ सुनाई पर उन्हें सभी की प्रशंसा मिली। सारा हॉल एक सुर में गाने लगा जब डॉली श्रीवास्तव ने ‘इक प्यार का नगमा, मौजों की रवानी है’ गाया। सभी को धन्यवाद ज्ञापन के साथ साकार श्रीवास्तव ने एक टेबल पर से कवर हटाया जिस पर पुस्तकें रखी थीं और कहा कि आप जो चाहें पुस्तक ले जाऍं और पढ़ने के बाद अगले कार्यक्रम में ले आऍं। आप चाहें तो आप भी वह पुस्तक जिसे आपने पढ़ लिया है और चाहते हैं और भी साथी पढ़ें, आप लाकर इनमें वृद्धि कर सकते हैं। यह एक प्रकार का चलता -फिरता पुस्तकालय है। इस विचार को सब ने बहुत पसंद किया।हॅंसी – ख़ुशी व हल्के फुल्के माहौल में नव वर्ष में मिलने की आशा में सभी ने विदाई ली।
