प्रेम का पर्व होली के रंगों में रंगा ज्ञानविहार परिवार

जयपुर । पश्चिमी संस्कृति की आबोहवा के चलते लोकपर्व होली के रस्मोरिवाज विलुप्त होते रहे हैं। वे भी क्या दिन थे जब होली के रंग व गीत की गूंज देर रात तक सुनाई देती थी, वह अब धीरे-धीरे कम होने लगी है। लोग अबीर,गुलाल लगा कर एक दूसरे के गले लगा आपसी प्रेम और उत्साह का संचार करते थे।
कुंठा व तनाव से मुक्ति का प्रतीक यह त्योहार वास्तविक उद्देश्य से दूर मात्र खानापूर्ति बनकर रह गया है। त्योहारों को मनाना हमारी संवेदनशीलता का प्रतीक है। त्योहार हर्ष, ख़ुशी प्रकट कर मानवता होने का प्रमाण है। ज्ञानविहार मात्र एक संस्था ही नहीं परिवार है। जहां एक दूसरे के हर्ष विशाद, सुख -दुख, उपलब्धि को सब आपस मे साझा कर एक दूसरे का संबल बढ़ाते है।
इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर ज्ञानविहार में फूलों की होली व गुलाल की होली हर्षोल्लास के साथ मनाई गई जिसमें सभी स्टाफ ने एक दूसरे को गुलाल लगाकर बधाई दी।

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