त्रिनेत्र गणेश के सानिध्य में कला शिविर एवं रणथंभोर के इतिहास पर सार्थक चर्चा

त्रिनेत्र गणेश मंदिर ट्रस्ट द्वारा 4 व 5 अप्रैल, शुक्रवार 2024 को होटल नेशनल रिसोर्ट, रणथंबोर रोड़, सवाईमाधोपुर में “धार्मिक चौपाल” में बुद्धि, कला, वाणी, विद्या के साथ धर्म व कर्म की समागम चौपाल कार्यक्रम आयोजित किया गया। हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि “शाश्वत” धर्म, कला, बुद्धि, ज्ञान और वाणी के समागम से ही लक्ष्मी मां का आगमन होता है।

इस शिविर में मेरी उपस्तिथि बहुत ही सुखद और आनंददायक रही इसके लिए आयोजकों में सर्वश्री महंत बृजकिशोर दाधीच जी, महंत संजय दाधीच जी, महंत उतराधिकारी निकुंज दाधीच एवं प्रधान सेवक हिमांशु गौतम जी का बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद। धर्म गुरुओं एवं इतिहासकारों द्वारा रणथंभोर के किले, त्रिनेत्र गणेश जी एवं मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ साथ रणथंभोर नेशनल पार्क में भ्रमण करना और हमारी गाड़ी के साथ साथ कुछ ही दूरी पर बारिश में भीगते हुए बाघिन सुल्ताना का चलना, और बार बार हमारी और देखना भी विस्मृत कर देनेवाला दृश्य था, उसका हमारी और चेहरा घूमते ही लगता था कि उसे अपने घर में हमारी उपस्तिथि अच्छी नहीं लग रही, निसंदेह यह उसकी स्वतंत्रता में दखल ही तो था। खैर … वापसी में सुल्ताना को अपने दोनो बच्चो के साथ देखना अत्यंत सुखद अनुभूति से भरे पल जीवनभर याद रहेंगे। आज से कई वर्षो पूर्व दो बार गया हूं, लेकिन बाघ बाघिन या उनके बच्चों के ऐसे साक्षात और इतने नजदीक से दर्शन पहली बार ही हुए।

इस अवसर पर आयोजित कला शिविर में बनी पेंटिंग्स की कार्यक्रम के समापन पर प्रदर्शनी भी लगाई गई जिसे देखने रणथंबोर के कला प्रेमीयों की भीड़ उमड़ पड़ी और सभी ने चित्रों की प्रशंसा भी बहुत की क्योंकि इस तरह के कला शिविर संभवतः कम ही लगते होंगे जिसमे आमजन की पहुंच हो। दूसरे कोई कला संस्था या अकादमियों द्वारा किए जाने वाले शिविरों में बने चित्रों को रणथंबोर के कला प्रेमियों एवं आम-जन की पहुंच नहीं रहती, यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है साथ ही कई ऐसे आयोजनों के बारे में जानकारी मुझे मिलती रहती है।

त्रिनेत्र गणेश मंदिर ट्रस्ट ने चित्रकारों को विषय भी दिए और अपनी भावना को उनके समुख कुछ इस तरह प्रस्तुत किया और लिखा कि :

ओ चित्रकार तू सनातन के चित्र उकेरे दे,
अधर्मी पन्नों पर धर्म के रंग बिखेर दे,
कलयुग मे हर इंसान पर छाया है अधर्म का रंग,
तू अधर्मी रंग को धर्म के रंग में रंग दे।

आइए अब मैं शिविर में प्रतिभागी चित्रकारों से आपका परिचय करवाता हूं, इस शिविर में देशभर के 9 चित्रकारों ने भाग लिया जिसमें जयपुर से सावित्री शर्मा, नीलू कांवरिया, भावना सक्सेना, कलकत्ता से मंजू भाटिया, उदयपुर से डॉ. चित्रसेन, दिल्ली से शैलेन्द्र सिंह, फरीदाबाद से राजीव सेमवाल, एवं हरियाणा से चित्रकार दंपति डॉ. राजेश एवं गीता जांगड़ा ने भाग लिया और अपनी कल्पना शक्ति से दिए गए विषयों धर्म, सात चक्र, योग, शिव परिवार व त्रिनेत्र गणेश पर आधारित चित्र बनाने थे जिसे सभी चित्रकारों ने भाव प्रधान रूप में अभिव्यक्त कर अपने-अपने चित्रों का सृजन किया।

सावित्री शर्मा ने अपने भावों को सृजित करते हुए अपने चित्र में चक्रों को योग द्वारा अपने मन को एकाग्रता की पराकाष्ठा पर ले जाकर सिद्धियों को प्राप्त कर उनके द्वारा परम ज्ञान को प्राप्त/अर्जित करने की विधा को चित्रित किया। पिछले कुछ समय से इन्हीं विषयों एवं रूढ़िवादी सामाजिक बुराइयों को अपने चित्रों में प्रमुखता से स्पष्ट रेखांकित कर चित्रण कर रही है।

नीलू कांवरिया ने कहा कि मैंने अपने चित्र में शरीर में स्थापित चक्रों को योग के माध्यम से जागृत किया जाए तो असाधारण सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है वर्तमान परिपेक्ष में बिना प्रकृति के सानिध्य और संरक्षण के यह संभव नहीं है।

मंजू भाटिया : ने अपने चित्र में रणथंबोर में “त्रिनेत्र गणेश जी” की स्वयंभू प्रकट हुई प्रतिमा, जिसमें भगवान गणेश अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान है। अपने चित्र के मध्य में त्रिनेत्र रूप में गणेश दोनों पत्नियों रिद्धि व सिद्धि के साथ दोनों पुत्रों शुभ व लाभ के साथ उनके वाहन मूषक को भी दर्शाता है। मैंने कल्पनिक भगवान गणेश की पूर्ण प्रतिमा को अपनी कला द्वारा चित्रित करने का प्रयास किया है। तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है इसमें लाल रंग (जैसा करोली के पत्थर) मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है इसलिए लाल रंग का उपयोग मैंने अपनी चित्र अभिव्यक्ति में किया है।

भावना सक्सेना : ने अपने चित्र के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आयोजकों द्वारा धर्म एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस शिविर का आयोजन किया है, जिसमें हम चित्रकारों की धर्म गुरुओं के सानिध्य में सनातन धर्म और संस्कृति की कथाओं को कैनवास पर चित्रित करना है। मैंने फड़ शैली में नंदी के स्वरूप में ताड़कासुर वध हेतु शिव पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के जन्म का उपाय बनाना, पार्वती द्वारा की सुई तपस्या, शिव द्वारा ली गई पार्वती की परीक्षा तथा शिव-पार्वती के विवाह के अवसर पर शिव की बारात के प्रसंगों को दर्शाया गया है। मैंने इस शिविर में वेद के ज्ञाताओं और धर्म गुरुओं द्वारा वेद एवं उपनिषदों पर विस्तापूर्वक हुई चर्चा से मुझे भी बहुत ज्ञान अर्जित किया है। साथ ही त्रिनेत्र गणेश जी एवं रणथंभोर किले और यह कि संस्कृति के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिली। शिविर में प्रतिभागिता के लिए मिले आमंत्रण मैं बहुत प्रसन्न हूं और अपने चित्रों को और अधिक श्रेष्ठता से चित्रित करने को हमेशा प्रयासरत रहूंगी।

डॉ. चित्रसेन, उदयपुर : ने अपने चित्र के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि मैं बचपन से ही अपने दादाजी और पिताजी को घर मोहल्ले और हवेलियों में चित्राम परंपरा में काम करते देखा और वहीं से मन में चित्र बनाने की प्रेरणा पैदा हुई। बचपन से ही मन में मेवाड चित्राम व हवेलीचित्रण और यहाँ की चित्रण परंपरा में बनने वाले विभिन्न चित्रों का अभ्यास रहा और यही मेरे कंटेंपोरेर पेंटिंग के विषय हैं जिनको मैं अभी नये माध्यमों और कई तकनीक के साथ भी नए प्रयोग कर रहा हूँ साथ ही अपने चित्रों में यथार्थ रूप में भी उपयोग कर रहा हूँ।

शैलेन्द्र सिंह, दिल्ली ने बताया कि मेरे चित्र की संकल्पना भी “त्रिनेत्र गणेश जी” पर ही आधारित है, मैंने रणथंभोर किले में विराजे त्रिनेत्र गणेश जी जो अपने आशीर्वाद से हर जगह सकारात्मक ऊर्जा फैलाते हैं, उन्हें समकालीन शैली के साथ पृष्ठभूमि में चित्रित किया है।

हिसार से जांगड़ा दंपत्ति राजेश ने अपने चित्र में शिव-पार्वती सहित गणपति को सहज भाव से उकेरा और गीता ने अपने चित्र में गणपति के त्रिनेत्र स्वरूप को चित्रित किया।

राजीव सेमवाल, फरीदाबाद, ने अपने चित्र के बारे में बताया कि उनके चित्र का विषय शिव परिवार है जो उन्होंने पेन और इंक द्वारा चित्रित किया है, मैंने शिव परिवार को प्रकृति के साथ अपनी विशिष्ट शैली द्वारा चित्रित किया है। अपने चित्रों के माध्यम से मैं “स्वस्थ जीवन के लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्राकृतिक धरोहर” को बचाने के लिए मैं आम-जन को प्रेरित कर सकूं।

जयपुर की गीतेश मित्तल, ने बताया, टैरो पद्धति में 78 कार्ड्स होते है, जिसमे बनी इमेज और सिंबोल्स के आधार पर गाइड किया जाता है। इस पद्धति के माध्यम से व्यक्ति के विचारों में जागरूकता लाने के लिए बताया जाता है कि हमें क्या करना चाहिए, हमें अपनी अवेयरनेस कैसे बढ़ानी चाहिए। क्योंकि हम सब जानते हैं कि कर्म प्रधान यह हमारा युग चल रहा है अगर हमने अपने कर्मों में परिवर्तन नहीं किया तो हम अपना भाग्य नहीं लिख सकते, क्योंकि भाग्य कहीं भी लिखा हुआ नहीं है उसको लिमिटेड कर दिया गया है और पूर्व जन्म में किए कर्मो के आदर पर, ईश्वर ने अपने हाथ में पिछले कर्मों के बेस पर आपका भाग्य बना दिया और आगे के लिए ईश्वर ने कहा कि आप स्वयं ही अपने कर्मों को अगर बदल सकते हैं तो आपका भाग्य अच्छा हो जाता है आप अच्छे कर्म करते आ रहे हैं तो आगे अच्छे से अच्छा होगा। तो एक्चुअली टैरो विधा द्वारा आपको डिसीजन मेकिंग में आपको यह बताता है कि आपको क्या करना चाहिए जिससे आपका भाग्य और अच्छा हो जाए तो हमें यह अवेयरनेस लोगों की सोच में लानी है कि “भाग्य कहीं कुछ भी नहीं होता उसके लिए आपको स्वयं के विचारों में परिवर्तन कर कर्म करना पड़ता है।”

रणथंभोर किले के इतिहास पर लगभग तीन घंटे चली चर्चा में मुख्य वक्ताओं में डॉ. आरती भदोरिया, धीरेन्द्र सिंह जादौन, पंडित संदीप बर्वे एवं राजकुमार चौहान ने अपने अपने विचार रखें। डॉ. आरती भदोरिया ने गणेश जी की महिमा पर प्रकाश डाला और किले की सांस्कृतिक विरासत के कई रहस्यों से पर्दा उठाते हुए इस विरासत को बचाएं रखने की आवश्यकता पर विस्तारपूर्वक अपनी बात कही। धीरेन्द्र सिंह जादौन ने रणथंभोर में हाड़ा वंश के पूर्व के राजा-महाराजाओं के शासन काल पर प्रकाश डालते हुए सार्थक जानकारी से सभी का ज्ञानवर्धन किया। पंडित संदीप बर्वे ने इस अवसर पर गजानन को शक्ति और क्रिया शक्ति का उपासक बताते हुए कहा कि पुरुष और नारी दोनों के समाहित किए हुए है इसलिए हर कार्य में शुभ माने गये है। उन्होंने बताया की पृथ्वी पर सबसे पहले जल आया और उसी से पृथ्वी पर जीवन का विस्तार हुआ, और प्रलय भी जल से ही होगी इसी के साथ वेद एवं उपनिषदों पर भी विस्तारपूर्वक अपनी बात रखी। इसके उपरांत राजकुमार चौहान ने रणथंबोर पर 9 वीं शताब्दी पूर्व के शासकों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस किले के निर्माण में आई सी एक राजवंश का अधिपत्य नहीं रहा, परन्तु इसके निर्माण पर कोई संशय नहीं होना चाहिए की इसे चौहान वंश के हाड़ा राजाओं ने बनवाया, या इसका वर्तमान स्वरूप उनके शासन काल में पूर्ण हुआ। इस ऐतिहासिक चर्चा का संचालन ट्रस्ट के प्रधान सेवक हिमांशु गौतम ने किया।

शाश्वत कला सम्मान कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि पंडित सुधीर व्यास, विशिष्ठ अतिथि मुख्य महंत नीरज, महंत बृजकिशोर दाधीच, महंत संजय दाधीच एवं प्रधान हिमांशु गौतम ने सभी चित्रकारों के साथ संदीप सुमहेन्द्र, गीतेश मित्तल एवं राजकुमार चौहान को भी अपने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए शॉल ओढ़ाकर सम्मान-पत्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

संदीप सुमहेन्द्र
चित्रकार एवं कला समीक्षक एवं
अध्यक्ष, कलावृत्त – ए क्रिएटिव आर्टिस्ट फोरम
ईमेल : [email protected]
मोबाइल : 91+98294 37374

Leave a Comment

This site is protected by reCAPTCHA and the Google Privacy Policy and Terms of Service apply.

error: Content is protected !!